- मूर्तिकार अरुण का दावा- मुझे लगा ये मेरा काम नहीं है! अन्दर जाकर मूर्ती बहुत बदल गई
(मनोज इष्टवाल)
जो हाथ बस कुछ ही घंटो में किसी भी मूर्ती को मूर्त रूप देने के महारथी हैं, उस मूर्तीकार अरुण योगीराज को रामलला की मूर्ती बनाने में 07 माह का समय लगा। अरुण योगिराज ने कहा कि मूर्ती बनाना उनका पारिवारिक पेशा है और 300 बर्ष से उनका परिवार यही काम करता आ रहा है लेकिन मैं अचम्भित हूँ कि जो मूर्ती मैंने रामलला की बनाई है वह प्राण प्रतिष्ठा के बाद ऐसे लग रही है कि यह मूर्ती मैंने नहीं बनाई बल्कि मूर्ती में बदलाव आ गया है।
रामलला की अद्भुत छवि की चर्चा चारों ओर हो रही है लेकिन इस मूर्ति को आकार देने वाले अरूण योगीराज ने एक न्यूज़ चैनल को हैरान कर देने वाला बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि उन्हें रामलला की ऐसी मूर्ती बनानी थी जिसकी उम्र पांच बर्ष के आस-पास हो। उन्होंने कहा मैं दो घंटे में किसी भी पत्थर पर कोई भी चेहरे उकेर सकता हूँ लेकिन इस मूर्ती को बनाने के लिए उन्हें कई महीने लग गए। उन्होंने कहा कि आखिर एक लड़की को देखकर उन्होंने आखिर मैंने मूर्ती को मूर्तरूप देना शुरू किया। उन्होंने बताया कि जब वह मूर्ति तैयार कर रहे थे तो हनुमान जी हर रोज मूर्ति के दर्शन करने आते थे। इस मूर्ती को बनाते समय वह सिर्फ वह अपनी बेटी से बात कर लिया कर लेते थे लेकिन अन्य किसी से बात नहीं करते थे।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद से रामलला के दर्शन के लिए लाखों भक्त हर रोज मंदिर में जा रहे हैं। इस बीच मंदिर में रामलला की मूर्ति की स्थापना के बाद उसका स्वरूप देखकर खुद उसे बनाने वाले मूर्तिकार योगीराज हैरान हैं। मूर्तिकार योगीराज ने कहा कि मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि ये वही मूर्ति है जो मैंने बनाई थी। उन्होंने बताया कि मूर्ती लेकर जब वह राममहल पहुंचे और मूर्ती को प्रतिस्थापित करने में उन्हें कई दिन लगने थे इसलिए वे 10दिन तक मंदिर के गर्भ-गृह में रहा, लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जिस तरह मूर्ती में बदलाव आये हमारी पूरी टीम हैरान रह गयी। मुझे मूर्ती में ऐसे बदलाव नजर आये कि मैं स्वयं विश्वास नहीं कर पाया कि यह मेरी बनाई मूर्ती है।
07 माह की अपनी यादें ताजा करते हुए उन्होंने बताया कि मूर्ती बनाने वाले समय इन सात महीनों में वे प्रॉपर सो नहीं पा रहे थे। उन्हें लगता था कि हनुमान जी आकर रोज उनके काम की जांच परख कर रहे हैं। वैसे भी रोज शाम पांच बजे एक बंदर आकर खिड़की से झांककर मूर्ती को निहारता और चला जाता।
एक टीवी चैलन को दिए इंटरव्यू में योगीराज ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब मैं गर्भगृह में गया तो वहां मूर्ति को देखते ही लगा कि ये मेरी बनाई मूर्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि मूर्ति का स्वरूप एकदम बदला सा लग रहा था। योगीराज ने कहा कि रामलला की मूर्ति गर्भगृह में जाते ही उसकी आभा ही बदल गई और वो बोलती हुई लग रही थी।
योगिराज बेहद प्रसन्न मन से कहते हैं कि उनके वंशज पिछले 300 साल से भी अधिक समय से विश्वकर्मा का काम करते आ रहे हैं लेकिन उन्हें भगवान रामलला की मूर्ती का ऐसा दुर्लभ काम मिलेगा , उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने कहा कि “मूर्ती बनाते समय मैंने हमेशा महसूस किया है कि भगवान राम मुझे और मेरे परिवार को हर बुरे समय से बचा रहे हैं और मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह वही हैं, जिन्होंने मुझे इस शुभ कार्य के लिए चुना है।”