1. रूपकुंड का छोरा ‘परू’..
(केेेशव भट्ट की कलम से यात्रावृत्त)
चमोली जिले में एतिहासिक धार्मिक राजजात यात्रा का एक पड़ाव है लोहाजंग. नौटी से शुरू होने वाली यह पदयात्रा करीब 280 किलोमीटर चलकर सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडों, लोहाजंग, वाण, बेदिनी, पातर नचौणियाँ, बगुवावासा, रूपकुण्ड, शिला-समुद्र, होमकुण्ड से चंदिन्याघाट, सुतोल, घाट होते हुए नन्दप्रयाग और अंततः वापस नौटी में ही समाप्त होती है. मुन्दोली-लोहाजंग से वाण घाटी के बीच दर्जनों गांव रास्ते के ऊपर-नीचे बिखरे हुए से हुए हैं. यहां के ज्यादातर युवा खेती-बाड़ी और मजदूरी के अलावा ट्रैकिंग के क़ारोबार से जुड़े हैं. लगभग डेढ़ सौ लोग गाइड या पोर्टर के काम से अपनी रोजी-रोटी जुटाते हैं.
इस बार अदृश्य-अनोखी कोरोना बीमारी ने दुनिया भर में करोड़ों लोगों की आजीविका छीनी और महीनों तक घरों में कैद होने को मजबूर किया. इस दौरान अपना अशांत मन हिमालय की कंदराओं में विचरता रहता था. पिंडारी, सुंदरढूंगा, पंचाचूली बेस कैंप… हर ओर जाने के लिए दिल मचलता था लेकिन इन जगहों में सिर्फ मन से ही जाना संभव था. जगह-जगह रास्ते-पुल गायब थे. सामान्य दिनों में भी ये रास्ते अकसर मरम्मत के मोहताज रहते हैं, इस बार महामारी का बहाना जो था.
पुराने पथारोही मित्र हरीश जोशीजी की ओर से उकसाने की कोशिशें लगातार जारी थीं. अंतत: रूपकुंड यात्रा के लिए मैंने उन्हें अपनी सहमति दे दी. हरीश जोशी उर्फ ‘हरदा’ यूं तो रेलवे में काम करते हैं लेकिन जरूरतमंदों की मदद में कभी पीछे नहीं रहते. सितंबर के अंतिम सप्ताह में उनका फोन आया- “रूपकुंड यात्रा के लिए मेरे साथ करीब बारह-एक लोग तैयार हैं. तुम कितने हो?'” मैंने जवाब दिया, “बच्चों ने तो आने से मना कर दिया था. रिटायर्ड फौजी उर्फ मास्सैप समेत हम पांच जन हैं.” अगले दिन उन्होंने कनफर्म किया, “ट्रैक के लिए लोहाजंग के यात्रा प्रायोजक प्रदीप कुनियाल से बात हो गई है. सारी ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी है. अपना इंतजाम खुद करने के बजाय इस बार फ्री होके जाने का मन है. जिम्मेदारी के बोझ तले प्रकृति को देखना-समझना बहुत कम ही हो पाता है. इस बार ट्रैकिंग का पूरा आनंद उठाएंगे..”
उनकी बातों को ठुकराने की गुंजाइश नहीं थी. 5 अक्टूबर की शाम को सभी को लोहाजंग पहुंचना था. 5 अक्टूबर की सुबह हरदा अपने दो बच्चों को लेकर दिल्ली से चल पड़े. रेलवे, प्राइवेट, एसडीआरफ-एयर फोर्स के जवानों समेत कुल बीस लोगों की उनकी टीम थी. शाम छह बजे लोहाजंग में मिलना तय हुआ. और इधर हम सब संशय में थे कि आज जाना हो पाता है या अगली सुबह निकलें.
जारी…