Sunday, September 8, 2024
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राइफलमैन जसवंत सिंह को पहले भगोड़ा किया घोषित! चीन द्वारा कटे सर को सम्मान देने के बाद भी परमवीर की जगह दिया गया महावीर चक्र..!

राइफलमैन जसवंत सिंह को पहले भगोड़ा किया घोषित! चीन द्वारा कटे सर को सम्मान देने के बाद भी परमवीर की जगह दिया गया महावीर चक्र..!

(मनोज इष्टवाल)

वो सचमुच ऐसा एक गढ़वाली योद्धा रण बांकुरा था जिसने 72 घंटे तक अकेले 300 चीनी सैनिकों के साथ मोर्चाबंदी कर दुश्मनों के दांत खट्टे किये लेकिन सरकार व फ़ौज द्वारा सहयोग न करने पर आखिर लड़ते-लड़ते अपनी चौकी पर दम तोड़ दिया जिसका सिर काटकर चीनी सैनिक बाद में चीन ले गए और इस वीर को भारत सरकार ने तब भगोड़ा घोषित कर दिया। क्या आप जानते हैं कि यह माँ का सपूत कोई और नहीं बल्कि तीलू रौतेली का वंशज बीरोंखाल विकासखंड का बाडियूँ गॉव निवासी राइफलमैन न. 4039009RFN जसवंत सिंह गोर्ला था ! जिसने अदम्य साहस का परिचय देते हुए चीनी सेना की एक पूरी बटालियन को अपनी चौकी पर 72 घंटे रोके रखा।


1962 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी सच्चाई बहुत कम लोगों को पता हैं। उन्होंने अकेले 72 घंटे चीनी सैनिकों का मुकाबला किया और विभिन्न चौकियों से दुश्मनों पर लगातार हमले करते रहे। जसवंत सिंह से जुड़ा यह वाकया 17 नवंबर 1962 का है, जब चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए नूरानांग पहुंच गई। इसी दिन नूरानांग में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू हुई ।
गढ़वाल राइफल के फोर्थ गढ़वाल में तैनात राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले नूरानांग का मोर्चा संभाला और लगातार तीन दिनों तक वह अलग-अलग बंकरों में जाकर गोलीबारी करते रहे और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। शैला और नूरा नाम की दो लड़कियों की मदद से जसंवत सिंह द्वारा अलग-अलग बंकरों से जब गोलीबारी की जाती तब चीनी सैनिकों को लगता कि यहां भारी संख्या में भारतीय सैनिक मौजूद हैं। इसके बाद चीनी सैनिकों ने अपनी रणनीति बदलते हुए उस सेक्टर को चारों ओर से घेर लिया। तीन दिन बाद जसवंत सिंह चीनी सैनिकों से घिर गए। शैला और नूरा नामक इन दो वीर बालाओं को भी इतिहास हमेशा याद रखेगा क्योंकि भारत माँ की सिर्फ ये ही दो ऐसी बेटियाँ थी जिन्होंने चीन की सेना के आगे झुकना पसंद नहीं किया जबकि तत्कालीन समय में देश की दिल्ली स्थित कमरों में बैठे नेताओं ने चीन के इस हमले से भौंचक भारतीय सेना को पीछे हटने के आदेश दे डाले थे लेकिन जसवंत सिंह गोर्ला पर तो मानो रणभूत सवार हो गया हो। सैकड़ों सैनिकों से अकेले निबटने वाले इस वीर योद्धा को तब फ़ौज और भारत सरकार ने तमगे पहनाने की जगह भगोड़ा घोषित कर दिया।


जब चीनी सैनिकों ने देखा कि एक अकेले सैनिक ने तीन दिनों तक उनकी नाक में दम कर रखा था तो इस खीझ में चीनियों ने जसवंत सिंह को बंधक बना लिया और जब कुछ न मिला तो टेलीफोन तार के सहारे उन्हें फांसी पर लटका दिया। फिर उनका सिर काटकर अपने साथ ले गए। जसवंत सिंह ने इस लड़ाई के दौरान कम से कम 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।
जसवंत सिंह की इस शहादत को संजोए रखने के लिए 19 गढ़वाल राइफल ने यह युद्ध स्मारक बनवाया। स्मारक के एक छोर पर एक जसवंत मंदिर भी बनाया गया है। जसवंत की शहादत के गवाह बने टेलीफोन के तार और वह पेड़ जिस पर उन्हें फांसी से लटकाया गया था, आज भी मौजूद है।


वहीँ अरुणांचल प्रदेश के लोगों का मानना है कि आज भी जीवित हैं जसवंत। जसवंत सिंह लोहे की चादरों से बने जिन कमरों में रहा करते थे, उसे स्मारक का मुख्य केंद्र बनाया गया। इस कमरे में आज भी रात के वक्त उनके कपड़े को प्रेस करके और जूतों को पॉलिश करके रखा जाता है। जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी कुछ किंवदंतियां भी हैं। इसी में एक है कि जब रात को उनके कपड़ों और जूतों को रखा जाता था और लोग जब सुबह उसे देखते थे तो ऐसा प्रतीत होता था कि किसी व्यक्ति ने उन पोशाकों और जूतों का इस्तेमाल किया है। दूसरी सुबह जूतों पर मिटटी लगी रहती है बर्दी पर व बिस्तर पर सिलवटें होती हैं।


इस पोस्ट पर तैनात किसी सैनिक को जब झपकी आती है तो कोई उन्हें यह कहकर थप्पड़ मारता है कि जगे रहो सीमाओं की सुरक्षा तुम्हारे हाथ में है। इतना ही नहीं एक किंवदंती यह भी है कि उस राह से गुजरने वाला कोई राहगीर उनकी शहादत स्थली पर बगैर नमन किए आगे बढ़ता है तो उसे कोई न कोई नुकसान जरूर होता है। हर ड्राइवर अपनी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए जसवंतगढ़ में जरूर रुकता है।
यह जसवंत सिंह की वीरता ही थी कि भारत सरकार ने उनकी शहादत के बाद भी सेवानिवृत्ति की उम्र तक उन्हें उसी प्रकार से पदोन्नति दी, जैसा उन्हें जीवित होने पर दी जाती थी। भारतीय सेना में अपने आप में यह मिसाल है कि शहीद होने के बाद भी उन्हें समयवार पदोन्नति दी जाती रही। मतलब वह सिपाही के रूप में सेना से जुड़े और सूबेदार के पद पर रहते हुए शहीद हुए लेकिन सेवानिवृत्त लगभग 40 साल बाद हुए।
शैला और नूरा की शहादत भी कम नहीं है। नूरानांग के इस युद्ध के दौरान शैला और नूरा नाम की दो लड़कियों की शहादत को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जसवंत सिंह जब युद्ध में अकेले डटे थे तो इन्हीं दोनों ने शस्त्र और असलहे उन्हें उपलब्ध कराए। जो भारतीय सैनिक शहीद होते उनके हथियारों को वह लाती और जसवंत सिंह को समर्पित करती और उन्हीं हथियारों से जसवंत सिंह ने लगातार 72 घंटे चीनी सैनिकों को अपने पास भी फटकने नहीं दिया और अंतत: वह भारत माता की गोद में लिपट गए और इतिहास में अपने नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया। युद्ध में नूरा मारी गयी और शैला ने चीनियो के हाथ लगने से पहले आत्म हत्या कर ली। नूरा के नाम से यहाँ पर हाईवे है और जिस स्थान पर शैला ने आत्म हत्या कि उसे शैला पीक कहते हैं।
अरुणाचल के लोगों को यह बात इस युद्ध के 50 साल बाद भी सालती रही है कि जसवंत सिंह जैसे योद्धा को आज तक परमवीर चक्र क्यों नहीं मिला। जसवंत को भगोड़ा घोषित किया गया जब  वास्तविकता चीनियों और स्थानीय लोगों द्वारा पता चली और जब चीनी कमांडर ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर ताम्बे के तमगे के साथ उनका कटा सर वापस किया तो दबाव में महावीर चक्र दिया गया। क्या जसवंत दूर किसी पहाड़ी प्रदेश का नहीं होता तो उसे परमवीर चक्र नहीं मिल गया होता। जब अरुणांचल के लोग जसवंत के लिए परमवीर चक्र की मांग कर सकते हैं तो हम क्यूँ नहीं। आज भी इस बात का आश्चर्य होता है कि अकेले दम पर जिस योद्धा ने 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा, उसे पौड़ी गढ़वाल के बहुत कम लोग जानते हैं कि जसवंत सिंह गोर्ला विकास खंड वीरोंखाल के गॉव बाडियूँ का मूल निवासी है। जहाँ के योद्धाओं ने पूर्व में गढ़वाल राजा की सीमा रक्षा में अपनी शहादतों से इतिहास लिखा है लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि सरकार द्वारा इस परमवीर को मरणोपरांत परमवीर चक्र न देकर महावीर चक्र दिया गया। अरुणाचल के लोग आये दिन इस योद्धा की वीरता हेतु परमवीर चक्र की मांग करते रहते हैं लेकिन जिस धरा पर इस वीर योद्धा ने जन्म लिया उस उत्तराखंड के सोये जनमानस ने उत्तराखंड सरकार ने इस योद्धा के लिए वीरता के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र के लिए केंद्र सरकार को अभी तक पत्र नहीं भेजा जबकि आज भी बाबा जसवंत सिंह फ़ौज के दृष्टिकोण से जीवित है व मरने के बाबजूद भी रक्षा मंत्रालय उनके प्रमोशन करती रही है। फिर मरणोपरान्त परमवीर चक्र क्यों नही!

आज 19 अगस्त को उनका जन्म

फोटो आभार- विभिन्न स्रोत

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