Sunday, October 19, 2025
Homeलोक कला-संस्कृतिप्रख्यात साहित्यकार एस आर हरनोट "नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान -2025 से...

प्रख्यात साहित्यकार एस आर हरनोट “नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान -2025 से हुए सम्मानित

देहरादून में संस्कृति सम्मान से सम्मानित हुए प्रख्यात लेखक एस आर हरनोट।

सम्मान में 2 लाख 51 हजार की नकद राशि के साथ सम्मान चिन्ह से अंगवस्त्र।

हरनोट ने हिमाचल को समर्पित किया यह सम्मान

लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत सुनकर हमारी तीसरी पीढ़ी ने किया रिवर्स माइग्रेशन – नितिश बलूनी

देहरादून 28 सितंबर 2025(हि. डिस्कवर)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल, देहरादून में आयोजित ‘नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान’ समारोह में प्रतिभाग किया। मुख्यमंत्री ने नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान से हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकार एस.आर हरनोट को सम्मानित किया। उत्तराखंड लोक समाज के बैनर तले विभिन्न संगठन मिलकर यह सम्मान प्रदान करते हैं। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के अद्वितीय योगदान को देखते हुए उनके नाम पर यह सम्मान वर्ष 2024 में शुरू किया गया है। समारोह में उत्तराखंड के मुख्य मंत्री मुख्य अतिथि थे जबकि अध्यक्षता प्रख्यात पर्यावरणविद पद्मश्री कल्याण सिंह रावत “मैती” ने की। लोक गायक गढ़रत्न श्री नरेंद्र सिंह नेगी और शिक्षाविद श्री शिव प्रसाद सेमवाल भी मंच पर उपस्थित रहे।

प्रख्यात साहित्यकार और सोशल एक्टिविस्ट एस आर हरनोट को उत्तराखंड लोक समाज द्वारा, सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल, देहरादून में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रीय संस्कृति सम्मान से नवाजा गया। पुरस्कार में सम्मान चिन्ह, प्रशस्ति पत्र और अंगवस्त्र के साथ 2 लाख 51 हजार रुपए की नकद राशि भी दी गई। उत्तराखंड लोक समाज के बैनर तले विभिन्न संगठन मिलकर यह सम्मान प्रदान करते हैं। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के अद्वितीय योगदान को देखते हुए उनके नाम पर यह सम्मान वर्ष 2024 में शुरू किया गया है।

सम्मानित होने पर साहित्यकार एस आर हरनोट ने उत्तराखंड लोक समाज का विशेष आभार व्यक्त करते हुए उत्तराखंड के धराली, हरसिल, चमोली गांव के साथ सहस्त्रधारा में बाढ़ से हुई तबाही पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हिमाचल में विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं के कारण आपदा घोषित प्रदेश है और उत्तराखंड राज्य में भी भरी तबाही हुई है। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृति और पर्यावरण के बीच एक गहरा रिश्ता है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। आज सबसे बड़ा विमर्श भी यही है कि जब-जब पर्यावरण प्रदूषित होगा हमारी संस्कृति भी उसके साथ प्रदूषित और नष्ट होती रहेगी।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक असंतुलन न केवल हमारे पहाड़, जंगल, जल और जमीन को नष्ट करता है बल्कि हमारे जीवन को भी प्रभावित करता है। हम इन घटनाओं को महज प्राकृतिक आपदाओं के नाम से खारिज करते रहे हैं जबकि मानब गतिविधियों के कारण उनकी आवृत्ति और प्रभाव बढ़ रहे हैं। हमारी भूख, भूमंडलीयकरण और अत्याधुनिकता का लिबास ओढ़े पहाड़ों को निगलने के लिए आतुर है। स्वार्थी, अनियोजित, अवैज्ञानिक, असंतुलित और पर्यावरण-अमित्र विकास के कारण पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिससे न केवल हमारा जीवन और संस्कृतियां प्रभावित हो रहे हैं बल्कि घोर सामाजिक असमानता भी बढ़ती जा रही है। हमारे पास महज संवेदनाएं व्यक्त करने के सिवा शेष कुछ नहीं बचा है। हालांकि विकास बहुत जरूरी है जिसके विरूद्ध शायद ही कोई होगा परन्तु पहाड़ों में आज विकास, विनाश का रूप ले चुका है।

साहित्यविद्ध एस आर हरनोट ने कहा कि हमने अपने हाथों से जिस तरह पहाड़ों को क्षति पहुंचाई है, जंगलों-पेड़ों की हत्याएं की है, नदियां गायब की हैं, उसने पहाड़ों का प्राकृतिक बांकपन तो नष्ट किया ही है बल्कि उसके साथ हमारी संस्कृति भी नष्ट हो रही है। हरनोट ने चिंता जताई कि दोनों राज्यों का जो प्राकृतिक सौंदर्य है उसे बचाने के लिए अब पहाड़ों, जंगलों और नदियों की बचाने की बहुत आवश्यकता है जिसके लिए अंधाधुंध वन कटान, प्लास्टिक सामग्री, बहु मंजिला निर्माण, फोरलेन और नदियों के दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना जरूरी है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने साहित्यकार एस आर हरनोट को नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान -2025 की शुभकामनायें देते हुए कहा कि श्री नरेंद्र सिंह नेगी ने प्रत्येक उत्तराखंडवासी के हृदय को छुआ है। श्री नरेंद्र नेगी ने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की आत्मा को स्वर दिया है। उन्होंने लोक जीवन की पीड़ा, प्रेम, संघर्ष और सौंदर्य को सुरों में डालकर उसे जीवंत किया और राज्य की सांस्कृतिक चेतना को नई ऊर्जा प्रदान की है। ठीक उसी तरह एस आर हरनोट ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक मुद्दों की अच्छाई बुराई को बड़ी बेबाकी के साथ सामने रखा है।

मुख्यमंत्री ने कहा श्री नरेंद्र नेगी ने पलायन के दर्द, पर्यावरण की चिंता और पहाड़ी महिलाओं के जीवन-संघर्ष पर भी कई मार्मिक गीत रचे हैं। नेगी जी ने अपने गीतों, लोकधुनों और लेखनी के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक विरासत को नई ऊँचाइयाँ पर पहुंचाया है। उन्होंने उत्तराखंड की आत्मा को सुरों में पिरोकर उसे विश्वपटल पर प्रतिष्ठित भी किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे राज्य में जागर, बेड़ा, मांगल, खुदेड़, सहित अनेकों तरह के पारंपरिक गीत हमारी जीवन-शैली और भावनाओं को दर्शाते हैं। ढोल, दमाऊ, हुरका, मशाक, तुर्री, भंकोरा और हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र इन गीतों को और भी जीवंत बनाते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में राज्य सरकार उत्तराखंड की लोक कलाओं को संरक्षित करने और समृद्ध बनाने के लिए कार्य कर रही है। सरकार हर छह माह में प्रदेश के लोक कलाकारों की सूची तैयार कर रही है। राज्य सरकार द्वारा कोरोना काल के दौरान लगभग 3,200 सूचीबद्ध लोक कलाकारों को प्रतिमाह दो हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की थी।

मुख्यमंत्री ने कहा राज्य सरकार 60 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध और अस्वस्थ लोक कलाकारों को प्रतिमाह तीन हजार रुपये की पेंशन दे रही है। लोककला और संस्कृति को सहेजने के लिए छह महीने की लोक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन भी कर रही है। इन कार्यशालाओं के माध्यम से युवा पीढ़ी को हमारी पौराणिक लोकसंस्कृति की महत्ता के प्रति जागरूक किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा राज्य सरकार ‘उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान’, ‘साहित्य भूषण’ और ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरुस्कार के माध्यम से उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित कर रही है। राज्य सरकार स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के लिए भी सतत प्रयास कर रही है जिससे आने वाली पीढ़ियाँ अपनी समृद्ध भाषायी विरासत से जुड़ी रहें।

कालजयी रचनाकार व लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिमालयी लोक साहित्य, संस्कृति, शिल्प और लोक सरोकारों को नई ऊर्जा देने के लिए यह सम्मान दिया जाता है। इस बार हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार संत राम हरनोट को उनके साहित्य, संस्कृति, पर्यावरण और लोक संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट और निरंतर योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है।

इस दौरान हिमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में लोक भाषा एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के निदेशक गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने साहित्यकार एस आर हरनोट के जीवन पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि खुशगाल गनी ने कहा कि हिमाचल के साहित्यकार हरनोट को हिंदी साहित्य में सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है जिन्हें अनेक अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य सम्मानों से नवाजा गया है। उनकी अब तक 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके साहित्य प्रदेश और देश की तकरीबन पचास से ज्यादा विश्वविद्यालयों में शोध पूर्ण हो चुके हैं और हो रहे हैं। लगभग 15 विश्वविद्यालयों में उनकी कहानियां और पुस्तकें पढ़ाई जा रही है। हरनोट की तीन कहानियों पर लघु फिल्में बन चुकी हैं। उनकी कहानियों का अनुवाद जर्मन, रूसी, पंजाबी, अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, पहाड़ी, उड़िया और मलयालम भाषाओं में हो चुका है। इसके अतिरिक्त वे निरंतर लेखन और समाजसेवा ने सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उत्तराखंड लोक समाज उन्हें पुरस्कृत करते हुए गौरव महसूस कर रहा है। इस सम्मान का उद्देश्य हिमालयी राज्यों की भाषा, साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सरोकारों को प्रोत्साहित करना है।

लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत सुनकर हमारी तीसरी पीढ़ी ने किया रिवर्स माइग्रेशन – नितिश बलूनी

एक ऐसा युवा जिसकी तीसरी पीढ़ी ने लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ज़ी के गीत सुनकर किया रिवर्स पलायन।

वास्तव में यह क्षण अद्भुत था। “नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान – 2025″ का एक पल ऐसा भी आया जब एक युवा अपने चंद शब्दों की पोटली खोलने मंच पर आया। उसने बमुश्किल 3 या 4 मिनट में अपनी बात समाप्त की लेकिन उसकी बातों में भरा आत्मविश्वास व सच्चाई दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों की तालियों से गूँजता रहा जबकि मंच में बैठे मुख्यमंत्री एक टक उसे निहारते रहे व उसकी बातों में छुपी अतीत व वर्तमान की सच्चाई को मन ही मन सहारते नजर आये।

यह युवा बलूनी स्कूल के चेयरमैन विपिन बलूनी ज़ी के पुत्र नितिश बलूनी हुए। उन्हे ज़ब मंच पर आमंत्रित किया गया तो लगा वह इस कार्यक्रम की रूपरेखा पर अपनी बात रखेंगे लेकिन ज़ब उन्होंने बोलना शुरू किया तो सब उनके एक एक शब्द सुनकर भावविभोर हो गए।

नितिश बलूनी ने कहा कि लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत उनके दादाजी ज़ी मुख से हमारे चाचाजी ने सुने। हम उत्तर प्रदेश के आगरा में “बलूनी स्कूल्स” चलाया करते हैं। उनके एक एक गीत दादाजी  की जुबाँ से हमारे चाचाजी व पापाजी के हृदय को पसीजते गए। उनके गीतों का हमारा परिवार इतना फैन हुआ कि अंततः हमारी तीसरी पीढ़ी ने आगरा से अपने उत्तराखंड के देहरादून में और देहरादून के साथ अपने पैतृक गाँव में रिवर्स माइग्रेशन किया। हम सभी युवा पीढ़ी के बलूनी परिजन खुश हैं कि रिवर्स माइग्रेशन में हमें नेगी ताऊजी के गीतों के माध्यम से अपने वृहद लोक समाज व उत्तराखंड की लोक संस्कृति में रचने बसने का मौका मिला।

इस अवसर पर मंच का संचालन लोकभाषा एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के निदेशक गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने मंच का संचालन किया जबकि मंच पर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, एस.पी सेमवाल , डॉ नवीन बलूनी, डॉ ईशान पुरोहित, अपर सचिव ललित मोहन रयाल एवं अन्य लोग मौजूद रहे।

 

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES