(मनोज इष्टवाल)
जिस देश का लोकसमाज व लोकसंस्कृति तीज त्यौहार जिंदा हों व जहां लोक में विभिन्न रंग घुले हों, भला कौन ऐसे समाज को नुकसान पहुंचा सकता है। इस से भी ऊपर उठकर यह बात मन को ज्यादा भाती है जब किसी प्रदेश के सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्तित्व उस प्रदेश के गरिमामय समाज व उसकी संस्कृति की अगुवाई में उसी के रंग में ढलें व उसका गुणगान कर सबको सम्मोहित कर आने वाली पीढ़ी को सुखद सन्देश प्रेषित करें।
उत्तराखंड प्रदेश के पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी व वर्तमान में प्रदेश में अपर मुख्य सचिव उन्हीं की अर्धांगिनी श्रीमती राधा रतूड़ी ने जिस तरह ठेठ पहाड़ी परम्पराओं में सज संवरकर फूलों के एक ऐसे त्यौहार के आगमन का स्वागत गीत गाया जिसे शुरू तो बच्चे करते हैं लेकिन खत्म बैशाखी के दिन बुजुर्ग किया करते हैं।
अब अगर प्रदेश के पुलिस महकमे के सबसे उच्च पद से सेवानिवृत्त व मुख्य सचिव से सिर्फ एक कदम दूर अपर मुख्य सचिव अगर हमारे ऐसे लोकपर्व के प्रमोशन को सोशल साइट वायरल करे तो स्वाभाविक है कि आमजन का रुझान अपनी अगाध संस्कृति व लोक परम्पराओं के प्रति बढ़ेगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी की धर्मपत्नी अपर मुख्य सचिव श्रीमति राधा रतूड़ी मूलतः जबलपुर मध्य प्रदेश से हैं व अनिल रतूड़ी का पैतृक गांव टिहरी गढ़वाल के विकास खण्ड हिंडोलाखाल देवप्रयाग के नजदीक छाम गांव है लेकिन दोनों में अगर यह तुलना की जाय कि उत्तराखंडी परम्पराओं के प्रति कौन ज्यादा प्रतिबद्ध है तब यह कह पाना सम्भव नहीं होगा क्योंकि दोनों को ही अपने गढवाळी लोकसमाज लोकसंस्कृति के तीज त्यौहार व लोकपर्वों के साथ वस्त्राभूषण पर हमेशा उत्तराखंडवासियों ने बेहद सजग देखा है।
ऐसे धर्म-संस्कृति के चितेरे व लोकसमाज की समझ रखने वाले व्यक्तित्व हर किसी के दिल में अपने लिए जगह स्थापित करते हैं। तेजतर्रार व सख्त पूर्व महानिदेशक पुलिस अनिल रतूड़ी यूँ व्यवहारिक जीवन में बहुत सौम्य माने जाते हैं व श्रीमति राधा रतूड़ी गृहणी के रूप में बेहद संस्कारवान भी। वर्तमान में जहां अनिल रतूड़ी सेवानिवृत्ति के बाद आयुक्त “उत्तराखंड सेवा का अधिकार” में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं वहीं पूरी उम्मीद की जा सकती है कि श्रीमति राधा रतूड़ी को 2022 में बन रही सरकार में मुख्य सचिव की जिम्मेदारी मिल सकती है।