21वीं सदी का एक निर्णायक रिश्ता-मार्को रुबियो
भारत क्रेमलिन के लिए एक धोबीघर के अलावा कुछ नहीं है।- पीटर नवारो
ई दिल्ली/ Washington, D.C.
लगता है चीन में आयोजित SCO समिट-2025 में रूस-अमेरिका व चीन की जुगलबंदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का सब सुख चैन छीन लिया है। विगत दो तीन दिन से जहाँ ट्रम्प बयानों से गायब हैं वहीँ उनके व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो भी पगला से गए हैं। पीटर नवारो ने अब भारत को जातियों में बांटने के लिए यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि “ब्राह्मण” “भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी” कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगी पीटर नवारो ने रविवार (31 अगस्त) को फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में यह टिप्पणी की। उन्होंने भारत पर रूसी तेल की लूट का आरोप लगाया और साथ ही भारतीय वस्तुओं पर 50% अमेरिकी टैरिफ का बचाव किया।
पीटर नवारो की जुबान ने बिषाक्त उगलते हुए यहाँ तक कह दिया कि “भारत क्रेमलिन के लिए एक धोबीघर के अलावा कुछ नहीं है।” उन्होंने दावा किया कि भारतीय रिफाइनर रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदते हैं। उसे प्रोसेस करते हैं और तैयार उत्पाद विदेशों में महंगे दामों पर बेचते हैं।
नवारो ने फॉक्स न्यूज़ से कहा, “क्या हुआ? रूसी रिफाइनर भारत की बड़ी तेल कंपनियों के साथ गठजोड़ कर बैठे। पुतिन (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी को कच्चे तेल पर छूट देते हैं। वे इसे रिफाइन करते हैं और यूरोप, अफ्रीका और एशिया में भारी दामों पर भेजते हैं और खूब पैसा कमाते हैं।”
जुबानी दोहरी चाल चल रहे पीटर नवारो ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “एक महान नेता” बताते हुए आगे कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बावजूद वे पुतिन और शी जिनपिंग के साथ क्यों घुल-मिल रहे हैं। मैं बस इतना कहूँगा कि भारतीय लोग, कृपया समझें कि यहाँ क्या हो रहा है। ब्राह्मण भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफ़ा कमा रहे हैं। हमें इसे रोकना होगा।” पीटर नवारो ने कहा, “इससे यूक्रेन के लोग मारे जा रहे हैं, और करदाताओं के तौर पर हमें क्या करना होगा? हमें उन्हें और पैसा भेजना होगा।”
नवारो की इस टिप्पणी से भारत में काफी आक्रोश फैल गया है और कई लोगों ने इसे ‘जातिवादी’ और ‘दुष्ट‘ करार दिया और इसे “हिंदू-विरोधी” बयान करार दिया।
दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस की सांसद सागरिका घोष ने नवारो की टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि वह भारतीय ब्राह्मणों की नहीं, बल्कि ‘बोस्टन ब्राह्मणों’ की बात कर रहे थे, जो उन्नीसवीं सदी में बोस्टन समाज के अमेरिकी अभिजात वर्ग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द था।
सारिका घोष ने कहा कि एक्स पर एक पोस्ट में, उन्होंने लिखा, “‘बोस्टन ब्राह्मण’ कभी अमेरिका में न्यू इंग्लैंड के धनी अभिजात वर्ग के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द था। “ब्राह्मण” आज भी अंग्रेजी भाषी दुनिया में सामाजिक या आर्थिक “अभिजात वर्ग” (इस मामले में अमीर) को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। एक्स पर निरक्षरता आश्चर्यजनक है।
पीटर नवारो द्वारा अपनी बात रखने के लिए भारत में एक विशेष जाति पहचान का आह्वान, भले ही इसका तात्पर्य बाकी लोगों की तुलना में ‘विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग’ से हो, शर्मनाक और भयावह है,” साथ ही “अमेरिकी संदर्भ में ब्राह्मण शब्द के प्रयोग पर उपदेशों” का भी उपहास किया।
नवारो की टिप्पणियों की आलोचना का एक हिस्सा उनके पिछले विवादास्पद रुख से भी उपजा है। पिछले हफ़्ते ही, उन्होंने यूक्रेन में रूस के युद्ध को “मोदी का युद्ध” बताया था और फिर एक्स पर नौ-भागों वाले एक लेख के ज़रिए इस आरोप को जारी रखा था, जिसमें उन्होंने रूस के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों पर सवाल उठाए थे और कहा था कि अमेरिका का टैरिफ और जुर्माना “पुतिन की युद्ध मशीन को भारत द्वारा दी गई वित्तीय जीवनरेखा को काटने के बारे में है”।
ये पोस्ट भारत को तेल की बिक्री से जुड़े व्यापारिक सूत्रों द्वारा रॉयटर्स को दी गई है। इस जानकारी के कुछ घंटों बाद आए थे कि भारतीय रिफाइनर सितंबर में रूस से तेल की ख़रीद अगस्त के स्तर से 10-20%, यानी 1,50,000-3,00,000 बैरल प्रतिदिन तक बढ़ा देंगे।
वहीं दूसरी ओर इस ताज़ा विवाद के बीच, भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के एक उद्धरण का इस्तेमाल करते हुए सोमवार (1 सितंबर) को दावा किया कि अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी “नई ऊँचाइयों को छू रही है” और यह “21वीं सदी का एक निर्णायक रिश्ता” है।