बात अब हद तक पहंच रही है। इसके बाद भी यही ट्रेंड जारी रहा, तो संभवत: भारत का भविष्य बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा। इसलिए अब संयम की जरूरत है।
पैगंबर मोहम्मद पर भारतीय जनता पार्टी के दो पूर्व प्रवक्ताओं की टिप्पणियों का मामला जिस तरह सुलग उठा है, वह इस देश के लिए एक खतरनाक संकेत है। इस मौके पर मुस्लिम समुदाय का गुस्सा क्यों सडक़ों पर भडक़ा, इस बारे में अनेक कयास लगाए जा सकते हैँ। लेकिन बुनियादी बात यह है कि देश के अंदर अलग-अलग समुदायों की भावनाएं लगातार उबाल पर हैं। पिछले दिनों एक टीवी बहस में आर्य बनाम द्रविड़ का विवाद इतना भडक़ा कि बात तू तू-मैं मैं तक पहुंच गई। आज भाषा और जाति के मुद्दे अक्सर ऐसी स्थिति तक पहुंच जाते हैँ। मशहूर साहित्यकार वीएस नायपॉल ने अपनी एक किताब का नाम- इंडिया: ए मिलियन म्युटनीज नॉव रखा था। नायपॉल की पहले की दो किताबों के विपरीत इस पुस्तक में भारत के बारे में सकारात्मक छवि पेश की गई थी। लेकिन आज ‘मिलियन म्युटनीज’ (लाखों विद्रोह) जैसी नकारात्मक सूरत हमारे सामने पेश होती नजर आ रही है। ऐसे हाल में समझा जाता है कि जिन लोगों के हाथ में सत्ता है, उन पर खास जिम्मेदारी है। उनकी प्रमुख जिम्मेदारी अलग-अलग विभाजन रेखाओं को पाटने का प्रयास करने की होती है।
उनसे अपेक्षा यह रहती है कि वे भडक़ती भावनाओं को शांत कर जनता के तमाम हिस्सों के बीच सहमति और साझा हित के बिंदुओं की तलाश करेंगे। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज सरकार, पूंजी और मीडिया की ताकत जिन समूहों के हाथ में है, उन्हें असहमति और विभाजन पैदा करने में अपना लाभ नजर आ रहा है। लेकिन बात अब हद तक पहंच रही है। इसके बाद भी यही ट्रेंड जारी रहा, तो संभवत: भारत का भविष्य बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा। इसलिए अब संयम की जरूरत है। इसकी शुरुआत इस बिंदु से हो सकती है कि सत्ताधारी लोग विभाजन में अपना लाभ देखना बंद करें। इसके विपरीत अब सबकी भावनाओं को समझने का नया प्रयास शुरू करें। अगर उनकी तरफ से ये पहल होगी तो विभिन्न समुदायों और नागरिक समाज से भी उपयुक्त प्रतिक्रिया की आस जगेगी। वरना, अभी हम एक ऐसे अनिश्चित भविष्य की तरफ बढ़ते दिख रहे हैं, जिसमें बेहतरी की कोई उम्मीद नजर नहीं आती।