बदरीनाथ विधान सभा से लखपत बुटोला 5224 मतों से व मंगलौर काजी निजामुद्दीन की 449 वोटों से जीत
बदरीनाथ विधानसभा सीट पर 51.43 प्रतिशत मतदान, मंगलौर सीट पर 68.24 प्रतिशत मतदान
(मनोज इष्टवाल)
यों तो पूरे देश के अपनी मूल पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए 05 दलबदलू विधायक चुनाव हारे हैं, जिनमें 02 हिमाचल प्रदेश, एक पंजाब व एक बिहार से हैं तो अंतिम पांचवें उत्तराखंड के बदरीनाथ विधान सभा सीट में कांग्रेस से दल बदलकर भाजपा में शामिल हुए सिटिंग विधायक राजेन्द्र भंडारी भी चुनाव हार गए हैं।
भाजपा पूर्व में ही इन दोनों विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर डरी सहमी सी नजर आ रही थी, तभी तो इन उप चुनाव की कोई बिशेष चर्चा राजधानी देहरादून में न चाय के खोंमचों में सुनने को मिली और न सार्वजनिक गप्पों में! हाँ इतना जरुर है कि मंगलौर विधानसभा सीट पर भाजपा के सिम्बल पर चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना की चर्चा खूब जोरों पर रही। भडाना इसलिए चर्चा में नहीं थे कि वे चुनाव लड़ते हैं बल्कि इसलिए चर्चा में थे कि वह चुनाव में रूपया पानी की तरह बहाते हैं। और तो और राजनीति को करीब से देखने वाले कई लोगों ने राजधानी क्षेत्र के मीडियाकर्मियों के बीच यह खबर भी फैलाई कि जो मीडियाकर्मी इस समय मंगलौर विधान सभा में रिपोर्टिंग करने जाएगा तो वह भडाना की कृपादृष्टि से मालामाल हो जाएगा। भडाना के लिए राजधानी से मीडियाकर्मी गए या नहीं गए लेकिन इतना जरुर हुआ कि भडाना करीबी मुकाबले काजी निजामुद्दीन से 449 वोटों के अंतर से हार गए व उत्तराखंड में मीडियाकर्मियों के ऊपर यह रायता जरुर फैला गए कि भडाना मीडिया पर जमकर पैंसा लुटाते हैं, जबकि सूत्र मानते हैं कि यह सब सुनी सुनाई बात है और कुछ नहीं।
लखपत बुटोला ….राजधानी क्षेत्र में कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता के रूप में एक हंसता मुस्कराता सुशील व सरल व्यवहार का व्यक्तित्व ! लेकिन बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र के ज्यादात्तर लोगों के लिए परिचित चेहरा तो हो सकता है लेकिन लखपत सिंह बुटोला नाम राजनीति में कम चर्चित नाम। अपने सौम्य व्यवहार से दूसरों का दिल जीतने वाले लखपत बुटोला के राजनीतिक चेहरे पर भ्रष्टाचार सम्बन्धी कोई दाग न होना भी उनके लिए प्लस पॉइंट रहा कि उन्होंने राजनीति के धुरंधर कहे जाने वाले भाजपा के प्रत्याक्षी दो बार के पूर्व मंत्री रहे राजेन्द्र भंडारी को 5224 मतों से बुरी तरह पटकनी दे दी। उससे भी हैरत की बात यह रही कि राजेन्द्र भंडारी अपने मूल क्षेत्र पोखरी से ज्यादा अंतर से हारे। खबर यह भी है कि राजेन्द्र भंडारी के हारने की सबसे बड़ी वजह उनका पूर्व में पंडितों के बारे में दिया गया वह बयान रहा जिसे कांग्रेस ने गाँव-गाँव तक पहुंचाया व पूरे बदरीनाथ विधान सभा के ब्राह्मण समाज जोकि भाजपा कैडर का वोटर था उसने भंडारी की जगह लखपत बुटोला को वोट देना ज्यादा पसंद किया।
वहीँ जीत दर्ज करने के बाद काजी निजामुद्दीन ने कहा कि मंगलौर में लठतंत्र कायम करने की कोशिश की गई, लेकिन लोकतंत्र के आगे लठतंत्र हार गया। उन्होंने मंगलौर की जनता का आभार व्यक्त भी किया है। अभी काजी निजामुद्दीन को सर्टिफिकेट नहीं मिल पाया, लेकिन उनके समर्थकों में भारी उत्साह है। भड़ाना के मतगणना स्थल से जाने के बाद हरिद्वार की मंगलौर विधानसभा से कांग्रेस ने पार्टी प्रत्याशी काजी निजामुद्दीन की 449 वोटों से जीत का जश्न मानना आरंभ कर दिया है। दस राउंड की मतगणना में कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन को 31710 वोट मिले। दूसरे नंबर पर भाजपा प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना को 31261 वोट मिले। बसपा के उबेदुर्रहमान को कुल 19552 वोट मिले।सूत्रों का कहना है कि भडाना दुबारा से मतदान की गिनती पर अड़े रहे लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारी जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल के पुन: मतगणना करने से इनकार करने के बाद मायूस होकर भाजपा प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना मतगणना स्थल से अपने गंतव्य को रवाना हुए।
बदरीनाथ नाथ विधानसभा उप चुनाव की 14वें चरण की मतगणना के बाद कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। कांग्रेस के लखपत बुटोला 5224 मतों से जीते हैं। भाजपा प्रत्याक्षी राजेंद्र भंडारी को कुल 22,937 मत प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस प्रत्याक्षी लखपत बुटोला को कुल 28,161 प्राप्त हुए। यहाँ भी त्रिकोणीय मुकाबला रहा।
भले ही मत प्रतिशत के हिसाब से देखा जाय तो बदरीनाथ विधानसभा सीट पर 51.43 प्रतिशत मतदान, मंगलौर सीट पर 68.24 प्रतिशत मतदान रहा जो बेहतर कहा जा सकता है, ऐसे में हमेशा समीकरण यही कहते हैं कि पचास प्रतिशत से ज्यादा मतदान हमेशा सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में जाता है लेकिन यहाँ सब उसके उलट रहा। जहाँ इसे एक ओर सरकार से आम जन की नाराजगी समझा जा रहा है वहीँ सूत्र कहते हैं कि यह सब पार्टी के अन्दर लबे समय से चल रहे शह और मात का खेल अब भीतरघात में परिवर्तित हो गया है क्योंकि यही बात तब उभर कर सामने आई थी जब गढ़वाल लोकसभा चुनाव से वर्तमान लोकसभा सांसद अनिल बलूनी के बारे में भी यह खबर फैली थी कि वे भीतरघात के शिकार हुए हैं इसलिए उनकी जीत का मार्जन कम रहा। वहीँ खबर यह भी है कि भाजपा के खाते में ये दोनों सीटें पहले भी नहीं थी इसलिए इस हार जीत से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ता। यह भी सच है कि अब केदारनाथ में ओने वाले आगामी समय में होने वाले विधानसभा उपचुनाव व पंचायती चुनाव ही तय कर पायेंगे कि पर्दे के पीछे का सच क्या है।