पंडौवरी डांडा…. जहाँ आज भी पूर्णमासी को उतर आती हैं आगासिया परियाँ।
(मनोज इष्टवाल यात्रा बृतांत 16 अक्टूबर 2024)
यूँ तो हर सफर में कुछ ऐसा जरूर मिल जाता है, जिसकी ख़ुशबु आपके मनोमस्तिष्क में रच बस जाती है लेकिन जब यह सब रहस्य और रोमांच से जुड़ी गाथाओं से रूबरु करवाए तो बात ही अलग होती है। वैदिक कालीन मालिनी नदी घाटी सभ्यता पर बरसों से कार्य कर रहा हूँ, व ऐसे कई रहस्य उजागर कर भी चुका हूँ जिन पर जल्दी से विश्वास किया जाना वर्तमान में संभव नहीं लगता लेकिन जब प्रत्यक्ष प्रमाण सामने हों तो उस पर विश्वास किया जाना सम्भव है।
(पंडौवरी डांडा.. मेरी बगल में श्री एस पी शर्मा, रमेश गौड़, शशिकांत गौड़ व अंत में प्रधानाचार्य पोखरी एम एल भारती जी।)
ऐसा ही कुछ तब हुआ जब मैं अपने हिमाचल के पत्रकार मित्र एस पी शर्मा के साथ गढ़वाल के इतिहास का सबसे मजबूत गढ़ कहा जाने वाले महाब गढ़ के लिए इंटर कॉलेज पोखरी के प्रधानाचार्य एम एल भारती जी के आमंत्रण पर भाजपा नेता रमेश गौड़ व शशिकांत गौड़ के साथ विगत 16 अक्टूबर को देहरादून से यमकेश्वर विधानसभा के इस ऐतिहासिक क्षेत्र के लिए निकल पड़े।
रमेश गौड़ जी ने पोखरी इंटर कॉलेज में पहुँचने से पूर्व नाथूखाळ के रणी भाई की प्रसिद्ध जलेबियों का रस्वादन करवाया। दिन में पोखरी इंटर कॉलेज में खेल महाकुम्भ के बाद शांयकाल की टहल के लिए मन बना कि तल्ला सिमलना गाँव की सरहद में अवस्थित पत्थरै की बसि ‘विस्तर काटल’ के लिए निकला जाय। फिर देखा कि समय अधिक हो गया तो भारती जी की सलाह पर हम लोग जा पहुँचे पंडौवरी का डांडा….।
(पांडव खोली के नाम से सुप्रसिद्ध पंडौवरी गुफा)
पोखरी से लगभग एक से डेढ़ किमी दूरी पर अवस्थित इस पर्वत के बारे में रमेश गौड़ जी ने बताया कि लोगों का मानना है कि इस डांडा (पर्वत शिखर) में पांडवों ने अपने गुप्तवास के दिन काटे हैं और उन्हीं के नाम से इसे पंडौवरी डांडा नाम से पुकारा जाता है।
पोखरी से यहाँ तक पहुँचने में हमारा स्वागत बंजर खेतोँ में पसरी आदमकद घास ने किया। और कुमरे… यानि विभिन्न प्रजाति की घास के काँटों तो मानो अपनी बांहे फैलाकर हमारे सम्पूर्ण बदन का चुम्बन लेना चाहते हों। उन्होंने जूतों से लेकर बाँहों तक भरपूर अपनी चुभन का अहसास कराया लेकिन भला हम कहाँ रुकने वाले थे। एक खेत से दूसरे खेत लांघते फांदते आखिरकार हम लगभग एक सवा घंटे की मेहनत के बाद शीर्ष पर जा पहुँचे।
केष्ट गाँव की सरहद के इस शीर्ष पर्वत से रिगच्चा डांडा के पार उत्तर प्रदेश का नजीबाबाद – बिजनौर – मेरठ तक का बिशाल मैदानी भूभाग पसरा हुआ है जबकि नीचे झांककर नजर दौड़ाने पर आपको वर्तमान कण्वाश्रम के टॉप में शून्य शिखर व कण्वाश्रम से मुंह उठाकर आकाश की तरफ झांकने में राज दरबार दिखाई देगा। पंडौवरी डांडा के ठीक सामने चरक डांडा, उसके बामांग में मालिनी नदी का उदगम स्थल चंडा पर्वत शिखर दिखाई देता है। जब कि एकदम बाईं ओर महाब गढ़…।
पंड़ोवरी/पांडव ओबरी
अभी हम दृश्यावलोकन कर ही रहे थे कि शशिकांत गौड़ जी बोले। जब यहाँ तक आये हैं तो पंडौवरी खोली/पांडव ओबरी भी देख लेते हैं। पंडोवरी का अर्थ अगर ढूंढा जाय तो इसका सीधा सा अर्थ पांडवों का आवास हुआ जिसका अगर गढ़वाली में अनुवाद ढूंढे तो वह पांडवों की ओबरी अर्थात निचले तल का घर कहा जा सकता है। रमेश गौड़ जी व प्रधानाचार्य मदन लाल भारती जी भी बोल पड़े। बिल्कुल हमें वहाँ जाना चाहिए। रमेश गौड़ बताने लगे कि इस दुमंजिली गुफा के बारे में हमारे पुराने बताते हैं कि इस गुफा में पांडव द्रोपदी सहित अपने गुप्तवास के दौरान रहे हैं।
वहीं सिमलना मल्ला गाँव के शशिकांत गौड़ बताते हैं कि जब वे गाँव में रहते थे तो उन्होंने कई बार यहाँ रात्रि पहर घड़ियाली की आवाज सुनी है जो उनके गाँव तक पहुँचती थी। यह आवाज अक्सर 12 बजे रात्रि पहर के बाद सुनाई देती है। पड़ताल करते – करते जो रहस्य उजागर हुए वह रोंगटे खड़े करने वाले हैं। बुजुर्गों का मानना है कि यह कभी विशाल गुफा हुआ करती थी जो सदियों से आ रहे भूकम्पों से अब दब गई है। कभी इसके अंदर बीसियों आदमी आ जाया करते थे। निकट गाँव के ही एक व्यक्ति से जब फोटो पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि मेरा नाम ना लिखें लेकिन यह सच है कि पूर्णमासी की चन्द्रमा में इस गुफा में उन्होंने स्वयं आगासिया परियों का रथ उतरते देखा है। जो पूरी चन्द्रमा के प्रकाश में यहाँ चर्म वाद्य के वादन में नृत्य करती, खिलखिलाकर हंसती थी व उनके घुँघरुओं की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। उन्होंने कहा कि पिछले 15 -20 बर्षों से वह गाँव नहीं गए इसलिए उन्हें जानकारी नहीं कि अब भी क्या ऐसा होता होगा। आप चाहें तो भंडारी जी से जानकारी ले लेना।
इस वृतांत को सुनकर मेरे रोंग़टे खड़े हो गए लेकिन मैंने यह निश्चिचय कर लिया है कि परियों की पूर्णमासी का पता कर मैं इस घटना के साक्ष्य जुटाने की भरपूर कोशिश करूँगा।