. चीनी घुसपैठ के बद्स्तूर जारी रहने से प्रभावित रहता है जन-मानस, कैलाश मानसरोवर जाने के लिए सबसे मुफीद है यह रास्ता
(मनोज इष्टवाल 07 मार्च 2015)
आये दिन चीनी घुसपैठ और दूसरी ओर चीन भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सम्बन्ध सुधारने की बात और वार्ताएं उस समय बेईमानी लगती हैं जब भारत और चीन की आपसी वार्ताओं के ऐन एक आध दिन बाद पुन: घुसपैठ कर चीन अपनी दादागिरी से भारत को धमकाने का प्रयास करता है. हाल ही में नीति-घाटी के भेडालों (भेड़ चारकों) को भारत की सीमा में प्रवेश कर धमकाने और उनका सामान धौली नदी में फैंकने की खबर ने फिर इस मुद्दे पर गर्माहट ला दी है. भारत के विदेश मंत्रालय के बाद अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी इस बिषय में चिंता जता चुके हैं.
सभी जानते हैं कि चीन जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर भारत के बढ़ते अन्तराष्ट्रीय स्वरुप को अस्थिर करने की लगातार जुग्गत में लगा हुआ है ताकि अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर वह कूटनीति के माध्यम से यह स्पष्ट कर सके कि भारत अंतर्राष्ट्रीय पटल पर चीन की उपस्थिति को हल्के लेने की भूल न करे. गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद से लेकर अब तक चीन कई बार ऐसा दुस्साहस कर अपनी बेचैनी का परिचय दे चुका है क्योंकि जिस प्रकार नरेंद्र मोदी द्वारा चीन को तबज्जो न दिया जाना राजनीति में एक कूटनीतिज्ञ चाल समझी जा रही है उसी तरह एशिया में अपने आप को विश्व के सबसे देशों में स्वयंभू महाशक्ति समझने वाला चीन यह बात शायद पचा नहीं पा रहा है क्योंकि उसे खतरा है कि जिस तरह नरेंद्र मोदी ने चीन के चारों ओर अन्य राष्ट्रों पर अपनी दखल देकर उनसे सम्बन्धों में मिठास की मिश्री घोलनी शुरू कर दी है वह बेचैन करने वाला कहा भी जा सकता है.
नीति-घाटी में चीन द्वारा बार-बार दस्तक देकर भारत को चेताते रहना एक सीधी-सीधी दादागिरी ही कही जा सकती है. इस विवाद पर राजनीतिज्ञों की जो भी सोच हो लेकिन भारत की उत्तराखंड और चीन तिब्बत से जुडी यह सीमा वास्तव में अति संवेदनशील है. वर्तमान में भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह भारत की सीमाओं को सड़क मार्ग और रेलमार्ग से जोड़ने की बात की है और उस पर युद्धस्तर पर कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है उससे चीन की बेचैनी ज्यादा बढ़ गयी है क्योंकि लोक निर्माण विभाग और बीआरओ के सहयोग से नीति घाटी में बनाई जा रही सड़कों को सीमा से जोड़ने की कवायद ने भी चीन की कलुषित मानसिकता को चिढाया हुआ है.
नीति घाटी जहाँ एक ओर प्राकृतिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत नजर आती है वहीँ यहाँ का जनमानस वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत पलायन कर चुका है. फिर भी यह घाटी जड़ी बूटी खजाना समझा जाता है यहाँ कीड़ा जड़ी, नागछतरी, सालम पंजा जैसी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बेहद कीमती औषधि का भण्डार है लेकिन जुम्मा में आई.टी.बी.पी. की चौकस नजर जहाँ एक ओर तलाशी के लिए हमेशा तत्पर रहती है वहीँ गमशाली जोकि समुद्र तल से लगभग 10958 फिट की उंचाई पर है वहां भी आईटीबीपी की पैंतीस वाहिनी की निगाहबान आखें पूरी नीति घाटी की टोह लेती रहती हैं.
नीति घाटी तक के लिए जिलाधिकारी चमोली या तहसील कार्यालय से अनुमति लेना अति आवश्यक होता है जिसकी रिपोर्ट हेतु पुलिस थाने में दर्ज करवानी जरुरी होता है और एलआईयू जांच के बाद ही आप इस घाटी में अपना पदार्पण कर सकते हैं.
इस घाटी का सफ़र जोशीमठ से शुरू होकर तपोवन, लाता, तोलमा गॉव, फाकती, जुम्मा, काणा गॉव, द्रोणागिरी गॉव, झेलम गॉव, मलारी, फाकती, वाम्पा, गमशाली और अंत में नीति गॉव और उसके निकट सीमावर्ती क्षेत्रों में समाप्त होता है.. लगभग 95 किलोमीटर दूरी तय करके जब हम नीति गॉव पहुँचते हैं. यहाँ पहुँचने पर प्रकृति का अनूठा नजारा आपकी आखों को चकाचौंध कर देता है. दूर दूर तक फैले हिम ग्लेशियर, कलकल करती दुग्ध गंगा और धौली गंगा का नाद और सत्तू व घी से बनी चाय व खेतों में आलू, फाफरा (कुट्टू) चोलाई की खेती में मस्त यहाँ के जनमानस के मुंह से सुनाई देने वाले गीतों की घमक से घाटी के सुनसान वातावरण में मिश्री सी घुली रहती है. इस गॉव में बने मकान अपने अस्तित्व की उपस्थिति स्वयं दर्ज करवाकर उन दिनों की याद दिलाते दिखाई देते हैं जब इसी घाटी से भारत तिब्बत ब्यापार चीन तक फैला होता था और यह क्षेत्र भोटन्त के नाम से पुकारा जाता था जिससे आगे द्वापा (तिब्बत) तक गढ़ नरेश ने अपनी राजधानी का सीमा विस्तार किया था.
जनश्रुतियों और लोकगीतों में प्रवेश पर तब भी आम जनमानस इस क्षेत्र में सशंकित रहता था. गढ़वाली लोकगीतों में इस भोटन्त क्षेत्र का वर्णन इस तरह मिलता है- “न जा भोटन्त हे नागसुरीजा, तेरु बाबा ग्ये छायो हे नागा सूरिजा, घरबौडू नि होयो हे नागा सूरिजा” ! कहा जाता है कि पूर्व में तिब्बत के आताताई हों या फिर गढ़ नरेश के माधौ सिंह भंडारी, लोदी रिखोला, दोस्तबेग, बर्त्वाल बन्धु… सभी अपनी सेना के साथ धौली गंगा के सहारे ही आया-जाया करते थे और यही रास्ता आपसी व्यापार के लिए भोटन्त (तिब्बत) और भारत के लिए सबसे सुगम भी समझा जाता रहा है.
इस घाटी के ज्यादातर गॉव में लगभग बुजुर्ग रहते हैं. जो यहाँ लगभग 6 माह के लिए खेती करने आते हैं. लगभग 300 परिवारों के इस गॉव में वर्तमान में मात्र 65 परिवार हैं. यहाँ के लोग बताते हैं कि वे मूल नीति घाटी के ही हैं और तिब्बत चीन से ब्यापार के समय यहाँ आकर बसे हैं. यहाँ पर सिर्फ एक ही दूकान है, जिसमें आप बिना दूध की घी से निर्मित सत्तू वाली चाय पी सकते हैं. यहाँ आपका कोई भी फोन काम नहीं करता मात्र वायरलेस सिस्टम ही काम करता है. पंचायती गेस्ट हाउस हर गॉव में हैं जिनका संरक्षण ग्रामीण ही करते हैं. खाना व रहना बेहद सस्ता है. यही नहीं गॉव के इस पंचायती गेस्ट हाउस में आपको खाना भी मुफ्त मिल जाएगा उसके लिए ग्रामीणों द्वारा ऐसी व्यवस्था का प्राविधान भी रखा हुआ है.
यहाँ से पलायन कर चुका जनमानस देश व विदेश में उच्चे ऊँचे ऊँचे पदों पर कार्यरत है लेकिन सबने इस घाटी की ओर मुंह ही मोड़ रखा है. हो सकता है उसके पीछे देश की अन्तराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र का होना हो लेकिन अपनी माटी के प्रति ऐसा बिछोह ठीक भी नहीं है. यहाँ अधिकतर बुजुर्ग ही लोग दिखने को मिलते हैं जो मात्र 6 माह की खेती बटोरकर वापस जोशीमठ गोपेश्वर व मंडल पहाड़ियों में स्थित अपने अन्यत्र गॉवों में लौट आते हैं.
नीति घाटी से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना अन्य क्षेत्रों से ज्यादा सरल और सुगम समझा जाता है लेकिन जाने क्यों आज भी इस यात्रा को धारचूला नेपाल से होकर गुजरना पड़ता है जिसके लिए कई कठिन पडाव भी हैं, और चीन की दखलांदाजी से यहाँ भी रूबरू होना पड़ता है. इस क्षेत्र से 14 किलोमीटर आगे तिब्बत बॉर्डर तक सड़क निर्माण हैं जबकि वहां से पैदल ही आगे जाना पड़ता है. नीति से आगे सुमना, आईटीबीपी चेकपोस्ट, रिमखिम (5 हजार फिट) ,बाड़ाहोती, शिवचिलम तक भारतीय सीमा है इससे आगे तिब्बत बॉर्डर शुरू हो जाता है.जहाँ से आप इयानिमा मंदी, सतलज डोक्यो, मानसरोवर जड़ से होकर मानसरोवर की यात्रा कर सकते हैं.
सन 1962 तक नीति-माणा दर्रों से मानसरोवर , वहीँ इसका एक रूट नीति गॉव से 11 किमी. आगे ग्वालढूंग, ग्वाल ढूंग से 15 किलोमीटर आगे नीतिपास होता हुआ 14 किलोमीटर आगे सरक्या तक जाता है. जहाँ से तिब्बत की सीमा प्रारम्भ और भारतीय सीमा समाप्त हो जाती है. यहाँ से भी आप गिग्गुल, अलंगतारा, छो-मिसर, छोक्योसर, मानसरोवर जड़ होकर मानसरोवर तक पहुँच सकते हैं. भारत सरकार वर्तमान में अपनी सीमा को सड़क से जोड़ने के लिए लोक निर्माण विभाग के माध्यम से तिब्बत बॉर्डर तक सड़क बनवा रहा है. सीमा तक सडक पहुँचने से जहाँ एक ओर इस क्षेत्र में आवाजाही बढ़ने का अंदेशा है वहीँ अगर चीन से व्यवसायिक सम्बन्ध सुदृढ़ ही रहे तो मानसरोवर यात्रा के लिए इस से मुफीद और कोई मार्ग हो ही नहीं सकता. इसका दोहरा फायदा यह होगा एक ओर प्रदेश की आर्थिकी में जहाँ वृद्धि होगी वहीँ रोजगार के भी कई स्रोत अर्जित होने स्वाभाविक हैं.
इस घाटी में शराब का प्रचलन बहुतायत मात्रा में है. हर घर में कच्ची शराब चाय की तरह प्रचलन में है जिसका मूल कारण यहाँ के पर्यावरण का ठंडा होना है. यहाँ का जनमानस बेहद सरल और भोला है जो अपनी भरसक कोशिशों में आतिथ्य संस्कार के लिए हर हमेशा तत्पर रहता है लेकिन यह भी सत्य है कि इस जनमानस में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए आपको मशक्कत करनी पड़ती है.
नीति घाटी को अगर प्रदेश सरकार पर्यटन व्यवसाय से जोड़कर राजस्व वृद्धि करना चाहती है तो सच मानिए इस घाटी में बसे सभी गॉव फिर से खुशगवार हो गुलजार हो जायेंगे और इस घाटी की अनमोल संस्कृति का लुप्त हम लम्बे समय तक लुफ्त उठाकर न सिर्फ इन उजड़ते गॉवों को बसाने में सफल रहेंगे अपितु लाभांश का एक बड़ा हिस्सा लेकर यहाँ के युवा के कदम अपनी सीमाओं में दृढ़ता के साथ जमे रह सकते हैं. बशर्ते गृहमंत्रालय इस क्षेत्र को अति सीमा क्षेत्र को देखते हुए अति संवेदनशील न माने. और प्रदेश का वर्तमान नेतृत्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की अगुवाई में एक नया इतिहास लिख सकता है. बस जरूरत सिर्फ एक ईमानदार पहल की है.
ज्ञात होकि 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नीति दक्षिणी तिब्बती सीमा के पास स्थित है, तथा 5800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नीति दर्रा भारत को तिब्बत से जोड़ता है जो सर्दियों के दौरान नीति गांव और घाटी भारी बर्फ से ढक जाती है।