(शैलेन्द्र सेमवाल)
●हिमालय की परम्पराओं से जुड़कर किसी एक शादी में शामिल हो जाइये!
दौड़ती भागती जिंदगी ने परम्पराओं ओर रीति रिवाजों से हमारी दूरी बहुत बढ़ा दी है। इस फासले को हम तब भी महसूस नहीं करते, जब हमारे ही परिवार में ब्याह हो रहा होता है। लेकिन क्या हम ब्याह, त्यार-बार जैसे पवित्र मौके को अपने रीति रिवाज से जोड़ सकते हैं? इसका जवाब है हां और इसका बकायदा मैनेजमेंट किया जा सकता है।
सवाल है कैसे? और जवाब है पिंगली पिठाई….!!
जी हां, पिंगली पिठाई के रुप में #देहरादून में नवेन्द्रु रतूड़ी ने न सिर्फ स्वरोजगार को अपनाया है, बल्कि उसने हिमालयी सभ्यता में पनपे विवाह समारोह जैसी लोकसंस्कृति से परिपूर्ण आयोजन को उसके पुराने खूबसूरत दिनों की ओर लौटाने का बीड़ा उठाया है। विवाह ही एक ऐसा आयोजन है जिसमें किसी भी समाज की जटिल सामाजिक सांस्कृतिक संरचना की सारी खूबियां छुपी होती है। हमारी नई जनरेशन भी इसी शादी के बहाने अपने रिश्तेदारों को पहचान सकती है।
लेकिन, अफसोस!! हम पर हावी शहरी सभ्यता में शादियां तो खूब तड़क भड़क से हो रही हैं पर उनमें लोक का पुट नदारद है। न मांगल गीत हैं न पारम्परिक पूजन विधियां हैं, न डोली विदाई है। कहीं कहीं तो ढोल दमाऊं और मश्कबीन जैसे वाद्य यंत्र भी नहीं दिखते।
मूल रूप से यमकेश्वर पौड़ी निवासी नवेन्द्रु, मुबंई, जयपुर जैसे शहर में आयुर्वेद पढ़ने के बाद डाक्टरी करने लगे। लेकिन संस्कृति के प्रति ये ललक उन्हें वापस पहाड़ खींच लाई। अब वह अपनी मां शशि रतूड़ी और पिता विपिन रतूड़ी, भाई शुवेन्द्रु रतूड़ी, रेखा कोठारी, सुशीला सेमवाल समेत 25 लोगों की टीम संग पारम्परिक बरात समारोह का मैनेजमेंट देख रहे हैं।
पहाड़ी बरात के साथ ही वह थानौं रोड पर डिंडयाली होम स्टे को भी प्रमोट कर रहे हैं। नवेन्द्रु अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी पिंगली पिठाई से #त्रिजुगीनारायण, देहरादून समेत अनेक जगहों पर ठेठ बरात का प्रबंधन सफलता से कर चुके हैं। ये सिलसिला जारी है। ऐसी शादियों का बजट उससे कम ही है, जितना लोग बिना सोचे समझे सामान्य बाजारु शादियों में फूक देते हैं।
पहाड़ी बरात में खास-
काकटेल का पूर्ण बहिष्कार, उसके बजाय रुद्राक्ष या फलदार पौधारोपण, प्लास्टिक की बजाय हाथ से बनी सजावटी सामग्रियों का प्रयोग, शाम को मेहंदी के साथ दीपदान, पंचांग पूजन, मांगल गीतों के बीच हल्दी हाथ, धूली अरघ(दूल्हे व बरातियों की पूजा), स्तंभ पूजन (मांगल गीतों के साथ वेदी पूजा), पारम्पारिक विवाह संस्कार, गोदान, डोली विदाई, साथ में सरोला रसोइया द्वारा तैयार पहाड़ी पकवान, मालू के पत्तों में बारातियों को पंगत में भोजन परोसना। नाते-रिश्तेदारों की हंसी ठिठोली तो है ही।
ये हुई खास शादियां-
-गाजियाबाद के आईएएस अपर्णा और रजत गौतम की शादी त्रिजुगीनारायण में पहाड़ी अंदाज से करवाई
-बेल्जियम के योगा शिक्षक शिवानंद(भारत आकर बदला नाम) और एफ्रोडाइट ने 21 फरवरी को त्रिजुगीनारायण में की शादी
-थानों, बड़ासी, पठाल, डिंडयाली होम स्टे में करवा चुके हैं 40 से अधिक शादियां, हैरीटेज होम स्टे को प्रमोट
युवा नवेन्द्रु कहते हैं, पहाड़ी शादी हमारी संस्कृति की समृद्धता है। यही प्राणवायु तेजी से खत्म हो रही है। पिंगली पिठाई उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को पुनर्जीवित करने का कांसेप्ट है।
मैं अपने शुभचिंतकों और परिचितों से भी आग्रह करूंगा कि परिवार में शादी हो तो पहाड़ी संस्कृति का ख्याल जरूर रखे, इसका ठेका सिर्फ लोककलाकारों ने नहीं ले रखा है।
शाबाश नवेन्द्रु, वेलडन मेरे दोस्त…..।।