नंदा राज जात 2014..! जब मैंने माँ नंदा जैसे ही साक्षात दर्शन किये…..!
(मनोज इष्टवाल)
( ट्रेवलाग नंदा राज जात यात्रा3 सितम्बर 2014)
ये है एक हंसती खेलती पांडे परिवार की सुखद जिंदगी। पांडे जी बारह बर्ष की उम्र में ही अपाहिज हो गए थे। दोनों हाथ काट दिए गए और पैरों पर भी बड़े-बड़े घाव…! चलना भी दूभर उनके लिये दूभर।
पांडे जी मूलत: कुमाऊँ से हैं और उनकी अर्धांग्नी गढ़वाल के कर्णप्रयाग क्षेत्र से हैं, जो मायके से जोशी हैं। पांडे जी का बड़ा बेटा बीटेक कर रहा है जबकि छोटा नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है जो नंदा राज जात में माँ व पिताजी के साथ ही आया है।
पांडेजी की पत्नी में मुझे माँ नंदा जैसे ही गुण दिखे, क्योंकि शिब तो भांग धतूरे वाले जोगी रहे लेकिन यहाँ तो एक ऐसा अपाहिज (पांडेजी) है जो न पैरों से ही ढंग से चल पाते हैं न खुद पानी ही पी सकते हैं। जिन्हें देखकर मुझे सत्यवान सावित्री की कथा याद आ गई ! लेकिन सत्यवान सावित्री दोनों ही राजा से रंक और रंक से फिर राजा हो गए थे। पांडे जी की अर्धांगिनी के आगे शायद ही यमराज की हिम्मत हो यह कहने की भी कि अब इन्हें छोड़ दो इनकी उम्र पूरी हो गई है।
धन्य है वह माँ ..जिसने ऐसी बेटी को जन्म दिया। मैं यह तो नहीं जान पाया कि श्रीमती पांडे में सभी रूप यौवन के गुण होने के बाद भी उनका किस तरह पांडे जी से विवाह हुआ लेकिन यह अपुष्ट जानकारी जरुर मिली है कि श्रीमती पांडे के माता-पिता बचपन में ही सिधार गए थे और उनकी शादी उनके परिवार के ही लोगों द्वारा की गई थी। कहते हैं परिजनों ने अनाथ श्रीमती पांडे के भरपूर पैसे खाये और विकलांग पांडे जी से उनका गठबंधन करवा दिया। यह खबर कितनी सची है यह मैं भी नहीं जानता। क्योंंकि यह बात पूरी तरह पुष्ट नहीं है।
पांडे जी को मथुरा वृन्दावन से लेकर जाने कितने तीर्थों की यात्रा करवाकर यह देवी वेदनी बुग्याल में माँ नंदा राज जात में शामिल हुई। सभी की निगाहों की केंद्र बिंदु इस देवी पर जिसकी भी नजर पड़ती तो उसके मुंह से विस्मय के बोल फूट पड़ते। और यह देवी अपने अपाहिज पति को बड़े गर्व के साथ अपने हाथों से संभाले हुए ख़ुशी ख़ुशी यात्रा कर रही थी. जिस तरफ से भी यह देवी निकलती सबकी निगाहों में उसके प्रति श्रधा के भाव उमड़ पड़ते।
मेरे से रहा नहीं गया और लगा उनकी कहानी जानने…! और जो कहानी सामने आई उससे मैं कन्फ्यूज हो गया कि कहीं मैं सतयुग में तो नहीं चला गया…जब कहानी से बाहर निकला तो पाया कलयुग ही है, क्योंकि यह देवी माँ नंदा बन बिसलेरी की बोतल से अपने पति को बड़े चाव से पानी पिला रही थी और दाल चावल का निवाला बना-बना हर कोर उनके गले में डाल कर खुद तृप्त हो रही थी।
श्रीमती पांडे कहती हैं पांडे जी ही मेरे सारे तीर्थ हैं एक बार उन्होंने कहा था कि काश…मेरे हाथ पैर ठीक होते तो मैं भी मां नन्दा की जात में शामिल हो पाता। हम माँ बेटे ने प्रण ले लिया कि उन्हें माँ नन्दा राज जात करवाएंगे। माँ नन्दा की कृपा से यह पुनीत कार्य भी हो गया। अपने कर्म पूरी निष्ठा से कर रही हूं बाकी सृष्टि रचने वाले की इच्छा।धन्य हे देवी ! जो आपके दर्शन हुए। श्रीमती पांडे के साथ उनका पुत्र भी था जो 12वीं कक्षा का छात्र है! अपने अपाहिज पति में ही जमाने की खुशियाँ ढूंढती श्रीमती पांडे कहती हैं कि मेरे लिए मेरे पति ही चार धाम हैं!