(मनोज इष्टवाल)
यकीन मानिए ये आंकड़े आपको चौंका देंगे क्योंकि ये वह तस्वीर है जो आजाद हिंदुस्तान के बाद उत्तराखण्ड में अचानक 21 बर्ष के राज्य में बढ़ती मुस्लिम आबादी के प्रति कोई नया सन्देश पहुंचा रही है। इस से यह माना जा सकता है कि क्या कश्मीर में धारा 370 के लागू होने का अंदेशा पूर्व से ही एक समुदाय बिशेष को था। पाकिस्तान व चीन से लगी कश्मीर व उत्तराखंड की सीमाएं व बॉर्डर पर तनाव के बीच जिस बेतहाशा अंदाज में उत्तराखंड के अंदर मुस्लिम आबादी बढ़ी है वह चिंताजनक कही जा सकती है क्योंकि कई राजनेताओं पर आए दिन यह आरोप लगते रहे हैं कि इनके द्वारा यहां पैंसे लेकर रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया गया है जिन्हें सबसे ज्यादा क्रूर व खतरनाक बताया जाता है। जहां इन्हें कई देशों से बेदखल किया गया वहीं इन्हें शरण देने में तथाकथित सेकुलर व लालची राजनेताओं ने श्रीलंका क्षेत्र से दीश में बड़ी संख्या में घुसपैठ कराई है। यह सचमुच देश व उत्तराखंड प्रदेश के लिए चिंताजनक है।
उत्तराखंड में आखिर एकाएक मुस्लिम समुदाय की बाढ़ आना व लगभग 1700 मस्जिदों का निर्माण होना, देश की अस्थिरता के लिए शुभसंकेत इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें देश के कट्टरपंथी व कितने बाहरी आतंकी कितने मुखौटे लगाए छुपे हैं, कहा नहीं जा सकता क्योंकि ये जहां भी जमीन खरीद फरोख्त कर रहे हैं उस जमीन का कई गुना पैसा देने को तैयार हो जाते हैं, जबकि ये कोई पंचर लगाने वाला मेकेनिक, तो कोई नाई या फिर गली कूचे में ठेली व सब्जी बेचने वाला होता है। आखिर इन लोगों के पास इतना पैसा एकाएक आता कहाँ से है। कहीं यह टेरर फंडिंग तो नहीं?
यह सब सिर्फ हिन्दू राष्ट्र भारत के हिंदुओं के लिए चिंताजनक नहीं बल्कि उन अमनपसंद देशभक्त मुस्लिमों के लिए भी चिंताजनक है जो भेड़ की खाल में पनाह ले रहे भेड़ियों के कारण फितरत भरी नजरों से देखे जा रहे हैं। उत्तराखंड क्योंकि नेपाल व चीन से सीमाएं बांटता है व वर्तमान में दोनों छोर से देश की अखंडता पर खतरा मंडरा रहा है ऐसे में सीमावर्ती क्षेत्र चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, चम्पावत, खटीमा, पिथौरागढ़ में एकाएक मुस्लिम आबादी की भारी बढ़त और अधिक चिंतनीय है। जिस पिथौरागढ़ में उत्तराखंड राज्य निर्माण के समय मुस्लिम आबादी मात्र 00.02 प्रतिशत थी आज उसमें लगभग 79 प्रतिशत उछाल आया है। चमोली गढ़वाल के बद्री केदारनाथ क्षेत्र व उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री यमनोत्री क्षेत्र में भी बेतहाशा मुस्लिम आबादी बढ़ी है।
कहीं पलायन एक सोची समझी साजिश का हिस्सा तो नहीं?
पहाड़ों से गढ़/कुमाऊं वासियों का लगातार पलायन जहां चिंताजनक है वहीं यहां यह भी अंदेशा होता है कि कहीं पलायन को मजबूर पहाड़वासी राजनीति की अंतर्राष्ट्रीय सोची समझी साजिश का हिस्सा तो नहीं? क्योंकि जिस विकास व रोजगार के नाम पर इस राज्य की नींव रखी गयी थी उस विकास की किरण आज उस हिमालयी क्षेत्र के जनमानस को डूबते सूरज की भांति ही दिखी है, जबकि इसी हिमालय से सूरज नित उगकर सारे विश्व को प्रकाशमान करता है। यह बात हैरत में डालने वाली है कि जिस पहाड़ के लिए इस राज्य के वासियों ने राज्य निर्माण में अपनी शहादतें दी। आंदोलनों में लाठी डंडे खाये उन्ही पहाड़ी जिलों के लिए यहां की विकास योजनाओं का मात्र 40 प्रतिशत धन ही पहुंचता है। अर्थात गढ़-कुमाऊं के 10 पहाड़ी जिलों की विकास योजनाओं के लिए मात्र 40 प्रतिशत धनराशि व बाकी तीन मैदानी जिले देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर को 60 प्रतिशत विकास योजनाओं का पैसा मिलता है। ऐसे में गढ़/कुमाऊं वासियों के पास अनियोजित विकास में पलायन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता। कहीं यह किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं, जिसे हमारे राजनेता भी नहीं समझ पा रहे हैं।
ज्ञात हो कि हिन्दू कुल संख्या के रूप भारत में सब से अधिक निवास करते हैं। वहीं प्रतिशत के अनुसार नेपाल में हिन्दू जनसंख्या के हिसाब से प्रथम स्थान पर, भारत दूसरे और मारिशस तीसरे स्थान पर है। सन 2010 के आँकलन अनुमान के अनुसार 60 से 70 मिलियन हिन्दू भारत से बाहर रहते हैं। 2010 के अनुमान के अनुसार हिन्दू जनसंख्या बहुमत रूप से नेपाल, भारत और मारीशस में है।
विश्व की कुल जनसंख्या में लगभग 15-16% हिन्दू धर्मावलंबी हैं। कुल जनसंख्या के प्रतिशत के नेपाल में सर्वाधिक (82 प्रतिशत) हिन्दू हैं, उसके बाद भारत (80.30%) तथा मॉरीशस में (48.50%) में सर्वाधिक हिन्दू हैं।
शिया और सुन्नी भी कई फ़िरक़ों या पंथों में बंटे हुए हैं।
विश्व भर में मुस्लिम आबादी के दो वर्ग शिया और सुन्नी में 20 प्रतिशत शिया हैं व 80 प्रतिशत सुन्नी हैं। इनके फिकरे या पंथों का अगर विभाजन किया जाय तो ये कुछ इस प्रकार दिखते हैं।
सुन्नी –
हनकी शाखा-देवबंदी-बरेलवी (भारत-पाकिस्तान,बंग्लादेश, अफगानिस्तान।
मालिकी-मिडिल ईस्ट
शाफई-मिडिल ईस्ट, इंडोनेशिया
हंबली-कतर, सऊदी अरब, कुवैत
अहलेदीस/सूफी/वहाबी– दक्षिण एशिया, मिडिल ईस्ट
अहमदिया-पाकिस्तान, भारत
शिया-
इस्ना अशअरी-इराक, ईरान, भारत, पाकिस्तान, लेबनान।
इस्माइली (फातमी, बोहरा, खोजें, नुसाइरी शाखाएं ईरान, मिडिल ईस्ट, भारत-पाकिस्तान)
जैदी-यमन
अब यह अनुमान लगाना जरा कठिन होगा कि उत्तराखंड में आमद बढाने वाले कितने मुस्लिम शिया व सुन्नी कौम के किस फिकरों व पंथों के हैं। हाँ…यदि गुप्तचर एजेंसियों को इसका अनुमान लगाना है तो उन्हें हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के दोनों छोर पर अचानक उग आए मुस्लिम समुदायों के उन झंडों की बढ़ती आमद व बढ़ती आबादी की तादात देखनी होगी जिन्हें हमारे बेईमान राजनेताओं व भ्रष्ट सरकारी तंत्र ने पनाह ही नहीं दी बल्कि हरे नोटों के लालच में देश की अस्मिता के लिए विभिन्न जिहादियों के लिए इस प्रदेश को पनाहगार बना दिया है।
20 वर्ष में देवभूमि उत्तराखण्ड की मुस्लिम जनसंख्या में बदलाव:
शहर। 2000 2021
% %
अल्मोड़ा 0.90 13.25
बागेश्वर 0.029 18.00
पिथौरागढ़ 00.02 07.90
चम्पावत 0.005 00.72
नैनीताल 03.25 19.00
टनकपुर 07.75 24.90
खटीमा 07.26 29.50
सितारगंज 10.00 32.00
हल्द्वानी 07.27 22.60
रुद्रपुर 06.95 23.70
किच्छा 07.25 24.00
काशीपुर 09.30 27.90
रामनगर 06.75 28.80
कोटद्वार 04.78 18. 27
हरिद्वार 06.25 25. 26
देहरादून 06.35 23.00
रुड़की 09.25 30.26
टिहरी 00.50 03.75
ऋषिकेश 01.17 08.25
पौड़ी 00. 27 02.76
श्रीनगर 00.26 01.95
मसूरी 00. 90 04.75
ये आंकड़े उत्तराखंड के मात्र कुछ शहरों से ही प्राप्त हुए हैं। जिस दिन उत्तराखण्ड का समस्त सर्वेक्षण सामने आएगा तब आप यहां की विस्फोटक स्थिति सब चौंक जाएंगे। राष्ट्रवादी अमनपसंद मुस्लिम समाज खुद हैरत में होगा कि आखिर ये कौन कौन फिकरों व पंथों के मुस्लिम देश में अचानक बाढ़ की तरह उग आए हैं। खुद इस समाज की यह समझ नहीं आ रहा है कि रोहिंग्या मुस्लिम आखिर क्यों विश्व के हिन्दू राष्ट्रों की तरफ तेजी से रुख कर रहे हैं। गढ़/कुमाऊं में सैकड़ों बर्षों से बेहद भाई चारे से रह रहे मुस्लिम समाज के लोग भी अब इस बदलाव से परेशान हैं कि उनके समाज में कभी कट्टरता नहीं थी अचानक यह कट्टरता आई कहाँ से ! व ऐसा क्यों हो रहा है कि जिन हिंदुओ के बीच वे परिवार की भांति रहते थे, उनकी नजरों में अब बदलाव आना क्यों शुरू हुआ। क्या सहिष्णु हिन्दू भी धर्म के प्रति कट्टरता की ओर बढ़ रहा है?