◆ श्रीनगर गढवाल का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व का कमलेश्वर महादेव में आयोजित होने वाला बैकुण्ठ चतुर्दशी का मेला चढा राजनीति की भेंट।
श्रीनगर गढ़वाल (हि. डिस्कवर)।
श्रीनगर गढवाल के कमलेश्वर महादेव में सैकडों वर्षों से मनाया जाने वाला बैकुण्ठ चतुर्दशी का मेला इस बार कांग्रेस और बी जे पी के आपसी खींचतान के कारण राजनीति की भेंट चढ चुका है। परम्परागत रूप से प्रतिवर्ष नगर पालिका श्रीनगर द्वारा आयोजित होने वाला यह मेला इस बार नगर पालिका द्वारा बजट न होने का बहाना बनाकर मेले के आयोजन से हाथ पीछे खींच लिए वहीं बी जे पी द्वारा मेले की असफलता का ठीकरा कांग्रेस पर थोपने के कारण दिखाई देने की उदासीनता के कारण जब मेले का आयोजन खटाई में पडता नज़र आया तब लाखो लोगों के आस्था के प्रतीक इस मेले को सफल बनाने की जिम्मेदारी मोहन काला फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री मोहन काला और प्रसिद्ध गौ सेवक श्री जे पी भट्ट जी ऋषिकेश वालों द्वारा ली गई है।
इस मेले का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसी बात से पता चलता है कि बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन देश-विदेश से सैकड़ो नि:शन्तान दम्पति सन्तान प्राप्ति हेतु पूरी रात हाथ में घी का दीपक जलाकर भगवान शिव की अराधना करते हैं और ऐसी मान्यता है कि इसके उपरांत उन्हें निश्चित रूप से सन्तान की प्राप्ति हो जाती है। मान्यता का परिपालन करते हुए इस बार पूरे देश से आए हुए 150 से अधिक दम्पति अपने सन्तान प्राप्ति के अनुष्ठान में सम्मिलित हुए।
कमलेश्वर महादेव के महन्त श्री आशुतोष गिरी जी के अनुसार खडे दिये की पूजा अत्यंत कठिन है । इस वर्ष बैकुण्ठ चतुर्दशी की बेदिनी बेला पर निसंतान दम्पतियों द्वारा शुरू हुए उपवास के दौरान सर्वप्रथम सुबह 3:00 बजे श्री मोहन काला जी के द्वारा महन्त आशुतोष गिरि महाराज जी ने शिवलिंग पर1008 ब्रह्म कमल पुष्पों से अभिषेक करवाया तदुपरांत प्रात: 4:30 बजे महंत जी द्वारा शिवलिंग के आगे एक विशेष पूजा की गई । इसमें भगवान शिव को 100 व्यंजनों का भोग लगाकर मक्खन और ब्रह्म कमल पुष्पों से ढके शिव लिंग पर एक- एक कर सभी निसंतान दंपत्तियों से अनुष्ठान पूरा कराया जिसके तहत वे पूरी रात जलता दिया हाथ में लेकर ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए खड़े रहे थे।
ऐसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मेले के आयोजन में जब नगर पालिका, वर्तमान में श्रीनगर का विधायक तथा कैबिनेट मन्त्री और जिला प्रशासन ने घोर उदासीनता दिखाई व महंत जी द्वारा बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जब मेले के आयोजन की संभावना क्षीण होती नजर आई तब श्री मोहन काला जी और महान गौ सेवक जे पी भट्ट जी ने मेले को पूर्ण रूप से सफल बनाने में सफलता प्राप्त की ।
मेले में आने वाले कई वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार मंदिर प्रांगण में मेले का इतना भव्य और ब्यवस्थित रूप पूर्व में शायद ही कभी देखने को मिला हो।
वहीं दूसरी और अनेक युवक-युवतियाँ और बच्चे इस बात से नगर पालिका और वर्तमान सरकार को कोसते नज़र आये ।उनका कहना था कि नगर पालिका ने एक सप्ताह तक इस मेले के प्रति घोर उदासीनता दिखाकर ठीक नही किया है क्योंकि पहले अनेक प्रतियोगिताओ का आयोजन किया जाता था जिसमें युवक युवतियों और बच्चो को अपनी प्रताभा दिखाने का अवसर मिलता था परन्तु वर्तमान सरकार की घोर उदासीनता के कारण उन्हे अपनी प्रतिभायें दिखाने से वंचित होना पड रहा है ।जिसका असर उनके भविष्य पर पड रहा है।
विदित हो, इतना ही नहीं मेले मे आने वाले प्रत्येक अनुष्ठान कर्ता और उनके परिचारकों के साथ ही मोहन काल फाउंडेशन और मंदिर के कार्यकर्ताओं द्वारा उनकी प्रत्येक सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया चाहे वह उने अनुष्ठान की जगह का चयन हो चाहे उनकी चाय पानी की ब्यवस्था हो अथवा उनके भोजन की ब्यवस्था हो ।अनुष्ठान के दिन17/11/21 सांय 4:00 बजे से सुरू होने वाला भंडारा दूसरे दिन 18/11/22 दोपहर 2:00 बजे तक जिसमें मेले में आने वाले प्रत्येक ब्यक्ति ने भरपेट भोजन व प्रसाद ग्रहण ।मंदिर प्रांगण में आयोजित होने वाला यह भंडारा अभूतपूर्व था जिसमें श्रद्धालुओं को अनेक प्रकार के व्यंजन परोसे गये। इसके साथ ही मोहन काला फाउंडेशन द्वारा श्रद्धालुओं को ध्यान मे रखे हुए एक शानदार भजन संध्या का आयोजन किया गया जिसमें श्रद्धालुओं ने देर रात तक अनेक भजनों और भक्ति गीतों का जमकर लुफ्त उठाया ।
वहीं यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नगर पालिका द्वारा इस आयोजन मैं सहयोग देने के बजाय कांगेस शासित नगर पालिका द्वारा मंदिर के एकदम समीप अलग से भजन संध्या का आयोजन किया गया । जिसका मकसद सिर्फ मंदिर में चल रहे कार्यक्रमों और उसमें होने वाली भजन-संध्या में व्यवधान का काम करना था. यहाँ मोहन काला जी का कहना था की यदि नगर पालिका समिति अलग से भजन संध्या करने के बजाय मेले में सहयोग देती तो हम मेले को और भव्य व शानदार बना सकते थे और श्रद्धालुओं को और अधिक सुविधा प्रदान कर सकते थे. इस प्रकार यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों की धर्म और आस्थाओं का बीड़ा उठाने वाली पार्टियां वोटों के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करती आ रही हैं.
मोहन काला का कहना है कि इन दोनो राष्ट्रीय पार्टियों का राजनीतिक का खेल उत्तराखंड की धार्मिक परम्पराओं के लिए भविष्य में अत्यंत संवेदनशील और घातक हो सकता है और हो भी रहा है.