Sunday, September 8, 2024
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स्मृति शेष…! एक नाम ही काफी है जो चमकता है फलक पर। भला कैसे भूलेगा यह मनहूस दिन..!

(मनोज इष्टवाल)

7 जून 2020 एक ऐसा मनहूस दिन जब प्रांजल कंडवाल की फोन के स्पीकर पर रोते हुए आवाज गूंजी- अंकल, पापा अब नहीं रहे। पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले आपको याद किया और मुझे कहा था -इष्टवाल जी को कहना मैं …! मैं इससे आगे सुन ही नहीं पाया। सच में अपने पिताजी को खोने में मैं इतना नहीं रोया जितना अपने मित्र की यह खबर सुनकर रोया। आनन फानन बाइक उठाई उनके घर पहुंचा। तब तक में उनके स्वर्ग सिधारने की बात फेसबुक में साझा कर चुका था। अब दुविधा थी कि फोन संभालू या फिर खुद को संभालूं । मुझे बिलखते देख उनके नाते रिश्तेदार हैरत में थे। मैं अबोध बच्चे की तरह बस रोता ही गया। तब तक जबतक आंसू न सूख गये। वक्त देखिए अर्थी सजी और उसके बाद सब नार्मल..! घाट पर भी गुमसुम सभी मित्र थे लेकिन खूब हंसना बोलना चल रहा था। उस दिन लगा जीवन का अंतिम सच यहीं घाट पर आकर पूरा हो जाता है। और यही संरचना भी है। यहां आकर दुख दर्द माया मोह सब से विरक्ति हो जाती है।

ज्ञात हो कि आज ही के दिन देहरादून डिस्कवर मासिक पत्रिका के सम्पादक दिनेश कंडवाल ने आज ओएनजीसी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली है। दो दिन पहले ही आंतों में इंफेक्शन होने से दो दिन पूर्व ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

दिनेश कंडवाल ने अपनी जिंदगी की शुरुआती दौर की पत्रकारिता ऋषिकेश में योगेश्वर प्रसाद धूलिया के अखबार तरुण हिन्द से बतौर पत्रकार शुरू की। तदोपरान्त उन्होने पार्टनरशिप में एक प्रिटिंग प्रेस भी चलाई व एक अखबार का सम्पादन भी किया। ओएनजीसी में नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने अपना लेखन कार्य जारी रखा उन्होंने स्वागत पत्रिका, धर्मयुग, कादम्बनी, हिन्दुस्तान, नवीन पराग, सन्डे मेल सहित दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहते थे।

नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा सरकार द्वारा उनकी पुस्तक “त्रिपुरा की आदिवासी लोककथाएँ” प्रकाशित की गयी जो आज भी वहां की स्टाल पर सजी मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ओएनजीसी की त्रिपुरा मैगजीन “त्रिपुरेश्वरी” पत्रिका का बर्षों सम्पादन किया।

ट्रेकिंग के शौकीन दिनेश कंडवाल ने नार्थ ईस्ट से लेकर उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्र के विभिन्न स्थलों की यात्राएं शामिल रही,जिन पर उन्होंने बड़े-बड़े लेख भी लिखे । उनकी यात्राओं में 1985 संदक-फ़ो(दार्जलिंग)-संगरीला (12000 फिट सिक्किम ), “थोरांग-ला पास”(18500 फिट) दर्रे, डिजोकु-वैली ट्रैक, मेघालय में “लिविंग रूट ब्रिज” ट्रैक गढवाल-कुमाऊं में कई यात्राओं में वैली ऑफ़ फ्लावर, मदमहेश्वर, दूणी-भितरी, मोंडा-बलावट-चाईशिल बेस कैंप, देवजानी-केदारकांठा बेस, तालुका-हर-की-दून बेस इत्यादि दर्जनों यात्राओं के अलावा लद्दाख में अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुलोचना कंडवाल के साथ “सिन्दू-जसकार नदी संगम का चादर ट्रैक” प्रमुख हैं!

2012 में ओएनजीसी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से पहले ही उन्होंने 2010 में अपनी पत्रकारिता को व्यवसायिकता देते हुए “देहरादून डिस्कवर” नामक पत्रिका का नाम आरएनआई को अप्रूव के लिए भेजा व 10 अक्टूबर 2011 में उनकी मैगजीन का विधिवत प्रकाशन शुरू हुआ।

लगभग 66 साल की उम्र में उनकी अंतिम यात्रा “हिमालयन दिग्दर्शन ढाकर शोध यात्रा 2020″ शामिल रही जिसमें उन्होंने 4 दिन की इस ऐतिहासिक शोध यात्रा में लगभग 42 किमी. पैदल सहित 174 किमी. की यात्रा की।

यह मेरे लिए एकदम अलग था क्योंकि इस यात्रा की समाप्ति के दूसरे दिन ही पूरे उत्तराखंड में कोरोना कर्फ्यू जारी हो गया था। हमें रातों-रात देहरादून लौटना पड़ा। मेरी आज भी यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर तब भी दिनेश कंडवाल जी वापस देहरादून क्यों नहीं लौटना चाहते थे। उन्होंने क्यों मुझसे कहा था कि आप और मैं कैम्प में ही रुकते हैं। सबको जाने दीजिए। हम तैयार भी थे लेकिन फिर यह हुआ कि जाने गाड़ी मोटर चलना कब शुरू होंगी। फिर तय हुआ कि हम दोनों मेरे आवास में ही रहेंगे। और सचमुच तब हमने लगभग महीने भर साथ रहकर जिंदगी के अनमोल पल गुजारे। उन्होने मुझे खाना बनाना सिखाया, आटा गोंथना, रोटी बनाना, सब्जी बनाना इत्यादि और बदले में उन्होंने मेरे घर रहकर विश्व भर की दर्जनों ब्रांड लिकर चखी व दर्जनों चाय …! पूरे दो साल बाद आज भी यही लगता है कि यहीं कहीँ हैं मेरे इर्द-गिर्द।

उनकी दिल्ली/तमन्ना थी कि वे अपने पैतृक गांव के आवास “साक़िलबाड़ी” को फिर से रिनोवेट करें और अपनी जिंदगी के अंतिम पल वहां गुजारें लेकिन आशाएं भला कब किसी की पूरी।होती हैं। यह भी अजब गजब है कि इसी माह 1 जून को उनके भाइयों द्वारा गांव का वह मकान रिनोवेट किया गया व उनके द्वी बर्षीय तर्पण कर गांव वालों को भोज दिया। शायद अब उनकी आत्मा तृप्त होगी कि अब उनका पैतृक आवास पुनः बन गया है।

उनके निधन पर तब जिलाधिकारी पौड़ी ने उनकी पौड़ी गढ़वाल की अंतिम यात्रा का स्मरण करते उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, दूरदर्शन देहरादून के प्रमुख डॉ सुभाष थलेड़ी, बाल आयोग की पूर्व उपाध्यक्ष विजयलक्ष्मी गुसाईं, एसडीएम शैलेन्द्र नेगी,  राज्य वित्त आयोग के पूर्व सदस्य व हिंदुस्तान के पूर्व स्थानीय संपादक अविकल थपलियाल, पौड़ी सांसद प्रतिनिधि उदित घिल्डियाल, वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के ओएसडी विनोद रावत, इंडिया टुडे के आर्ट डायरेक्टर चंद्रमोहन ज्योति, पलायन एक चिंतन के संजोजक सिंह असवाल, आगाज़ फाउंडेशन के अध्यक्ष जगदम्बा प्रसाद मैठाणी, सुप्रसिद्ध गायक रजनीकांत सेमवाल, पुरिया नैथानी ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल नैथानी, योगी अरविंद, समाजसेवी दिग्मोहन नेगी, बलूनी स्कूल कोटद्वार की निदेशक अभिलाषा ध्यानी भारद्वाज, अध्यापक संघ के मुकेश बहुगुणा, वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास, गणेश खुगशाल गणी, अनिल बहुगुणा, वेद भदोला, सुभाष झा, अधिवक्ता अमित सजवाण, आकाशवाणी के विनय ध्यानी, डॉ सतीश कालेश्वरी, समय साक्ष्य प्रकाशन के  प्रवीण भट्ट,  विचार एक नई सोच के सम्पादक राकेश बिजल्वाण, वरिष्ठ पत्रकार सुनील थपलियाल, रोबिन सिंह, विनोद मुसान,  कौस्तुभ चंदोला, राजेन्द्र रतूड़ी, बिनीता बनर्जी, सिनेमाफोटोग्राफर गोविंद नेगी, चन्द्रशेखर चौहान, ने इसे पत्रकारिता जगत के लिए बड़ा आघात बताया। कई पत्रकार संगठनों, उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के सैकड़ों पत्रकारों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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