Sunday, October 20, 2024
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महेडा गाँव की मेनका-विश्वामित्र! कीमसेरा के कण्व व मांडई में शकुन्तला-दुष्यंत प्रेम प्रसंग! अहा जब मालिनी नदी की विपरीत दिशा में हम लगभग 7किमी. पैदल चले!

महेडा गाँव की मेनका-विश्वामित्र! कीमसेरा के कण्व व मांडई में शकुन्तला-दुष्यंत प्रेम प्रसंग! अहा जब मालिनी नदी की विपरीत दिशा में हम लगभग 7किमी. पैदल चले!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 19 मार्च 2020)

हिमालय दिग्दर्शन यात्रा.. 2020! ढाकर यात्रा !

गतांक का अंतिम……!

उनका मानना है कि महाबगढ़ की शक्तियों से दिल्ली सल्तनत भी भय खाती थी। जब भी मुगल इस क्षेत्र से आक्रमण की सोचते महाब देवता धावड़ी लगाकर गढपत्ति भाँधौ असवाल को चेता देते थे। उनका मानना है कि औरंगजेब काल में जब दाराशिकोह की ढूंढ करने आये मुगल दुर्दान्त सैनिक रास्ता भटक गए तब वे इस क्षेत्र में आये। व महाब देवता की बुलन्द आवाज़ से घबरा गए थे। कहा जाता है तब गढ़वाल नरेश के आदेश पर भाँधौ असवाल सेना सहित कुमाऊं क्षेत्र के राजा से लोहा लेने गए थे ऐसे में मुगल महाबगढ़ पहुंचे व उस स्पटिक युक्त शिबलिंग को बर्छे-भालों से काटकर/उखाड़कर दिल्ली। दरबार ले गए। कहा जाता है वह लिंग आज मक्का मदीना में अवस्थित है।
गोरखाकाल में राजा भगदयो असवाल व उसकी सात रानियों का कत्लेआम। मेनका आश्रम महेड़ा, मालन की 7 किमी पैदल यात्रा, कण्व ऋषि की तपस्थली किमस्यार (किमसेरा), गौतमी का आश्रम शकुन्तला -दुष्यंत गन्दर्भ विवाह मंडप मांडई इत्यादि बिषय पर……!

बहरहाल सच्चाई कितनी है यह कह पाना कठिन है लेकिन यह भी सत्य है कि इस हेमकूट पर्वत शिखर पर महाबगढ़ में ऋषि मरीचि, बिस्तर काटल क्षेत्र में ऋषि विश्वमित्र, कस्याली क्षेत्र में ऋषि कश्यप, भृगुखाल क्षेत्र में ऋषि भृगु, मालिनी क्षेत्र में ऋषि कण्व इत्यादि ने न सिर्फ ताप किया बल्कि यहीं उनके आश्रम भी रहे हैं व उनके नाम से यहाँ गाँव भी हैं! यह सब अजमीर पट्टी क्षेत्र के गाँव हुए!

चैतराम जखमोला, चन्द्रमोहन जखमोला व अनिल जखमोला जी से इजाजत लेकर हम इंद्र की अप्सरा मेनका के आश्रम की और निकल पड़े! इस गाँव से भले ही मालिनी नदी नहीं दिखती हो लेकिन स्यालगाड़ (स्याल नदी) अवश्य दिखती है जिसके संगम में मेनका आश्रम अवस्थित था व उसकी के नाम से इस गाँव का नाम महेडा पड़ा है!

1-महेड़ा गांव के मुहम्मद व अली के साथ। 2- मेहड़ा गांव के पुजारी से जानकारी प्राप्त करते ठाकुर रतन सिंह असवाल।

हमारी अडवांस टीम ठाकुर रतन असवाल के निर्देशन में काफी आगे निकल चुकी थी! मैं सबसे पीछे रह गया था! यहाँ मुझे अपने आगे श्रीमती कुसुम बहुगुणा दिखाई दी जो कंडियाल गाँव के एक ग्रामीण से बात कर रही थी! उनके हाथ की लाठी बदल चुकी थी! मैंने पूछा- भाभी जी, आपकी बांस वाली लाठी कहाँ गई तो जबाब मिला वह उन्होंने दिनेश कंडवाल जी को दे दी है ताकि इस ढालयुक्त रास्ते पर वे सही सलामत चल सकें!

अभी मैं कुछ आगे बढ़ा ही था कि दिनेश कंडवाल जी व प्रवीण भट्ट जी दिखाई दिए! सचमुच यह रास्ता एकदम ढालयुक्त था जिसमें आम आदमी का चलना भी दूभर था क्योंकि इसमें छोटे-छोटे गोल कंक्रीट टाइप के पत्थर थे जिनमें कोई व्यक्ति फिसला तो फिसलता चला जाए! प्रवीण भट्ट की यहाँ तारीफ़ करनी होगी क्योंकि वह टीम के सबसे उम्रदराज 66 बर्षीय दिनेश कंडवाल जी के सहायक की भूमिका में दिखाई दिए! मेरे पैरों को भी अबतक ब्रेक लग चुके थे! मुझे भी आभास हुआ कि मुझे इन दोनों का ही सानिध्य लेना होगा जबकि श्रीमती कुसुम कंडवाल व उनके पति मुकेश प्रसाद बहुगुणा तेजी से आगे बढ़ चुके थे क्योंकि अडवांस टीम काफी आगे निकल चुकी थी जिनकी सीटियों का आवाज हमारे कानों तक गूँज रही थी जिसका जबाब मैं भी सीटियों में ही दे रहा था कि आप चिंता न करें सब ठीक है!

मांडई किमसेरा में टीम का स्वागत।

कंडियाल गाँव से चुन्ना-महेडा जूनियर हाई स्कूल तक पहुँचते पहुँचते हमें डेढ़ घंटा लग गया! यहाँ स्कूल 8 में स्थित पीपल के पेड़ की छाँव में अडवांस टीम हमारा इन्तजार करती नजर आई! मैंने धूर-भरपूर के प्रधान पपेंद्र रावत से स्यालगाड के पास ही चमकते एक गाँव की जानकारी ली जहाँ खेतों में हलकी हरियाली नजर आ रही थी! प्रधान जी ने बताया कि यह स्यालगाड़ गाँव ही है, कभी इस गाँव का प्याज इस क्षेत्र के कई गाँव के लोग खरीदा करते थे!

खैर, यहाँ ठंडी छाँव काफी शुकून दे रही थी क्योंकि कंडियालगाँव से उतरते समय चिलचिलाती धूप ने बुरा हाल करके रखा था! दिनेश कंडवाल जी ने अपने रुक्सेक की डोर खोली व अपनी पोटली से काजू, किसमिस, बादाम निकाले! उन्हें शायद ये उम्मीद थी कि पोटली से ट्रैकर्स शिष्टता के साथ दो-दो चार-चार दाने ही निकालेंगे लेकिन जब उनके पास वह पोटली वापस पहुंची तो उनके पास दो ही दाने ड्राई फ्रूट्स वापस पहुंचे! उन्होंने मेरी आँखों में देखा और मुस्कराकर वह पोटली रुक्सेक में कैद करने की जगह जेब में डाल दी!
अब हम पैदल मार्ग से महेड़ा गाँव के लिए बन रही मोटर-सड़क में उतरने वाले थे लेकिन आगे जाकर अडवांस टीम वापस मुड गई! पता लगा कि वहां सडक के कारण रास्ता नहीं था इसलिए उन्हें वापस अब चुन्ना-महेड़ा जूनियर हाई स्कूल के पास से होकर अब सडक मार्ग से लगभग 2किमी. लम्बा फेरा लेकर इसी स्थान लौटना था! मैं एक बेहद खतरनाक घ्वीड-काखड व जंगली जानवरों के रास्ते से नीचे उतर पड़ा! रतन असवाल बोले- पंडा जी, देख लेना तुम्हारे साथ कुछ न कुछ बुरा होने वाला है! मैं हंसा और आगे बढ़ पड़ा, जबकि मुझे पता है कि यह व्यक्ति जो भी बोलता है वह होकर रहता है! बेवजह हम दुर्भाषा वरिष्ठ पत्रकार मित्र अनिल बहुगुणा को बोलते हैं! हुआ भी वही जिसका डर था! एडिडास का मेरा लगभग आठ हजार के जूते का सोल फाड़ता हुआ एक पत्थर अंदर तक घुस गया! सड़क तक पहुँचते-पहुंचते मैं खुश था कि इस बार इनकी जुबान का असर कुछ नहीं हुआ! लेकिन कुछ आगे बढ़ा ही था कि मुझे दांये पैर के जूते में कुछ हलचल महसूस हुई! जूते के हाल देखकर पहली बार मुझे रतन असवाल पर गुस्सा आया! मैं मन ही मन बडबडाया कि यह व्यक्ति ऐसी काली जुबान का हुआ ही क्यों!

महेड़ा गांव, रास्ते में टीम मेम्बर व मांडई में वन भोज।

मैंने जूते से वह कुल्हाड़ीनुमा पत्थर निकाला व सडक किनारे काले प्लास्टिक की पन्नियों से बने टेंट में रह रहे मजदूरों को महेडा का रास्ता पूछा और आगे बढ़ गया! सडक के एक मोड़ से जब नीचे वाली सडक पर पहुंचा और नेपालियों ने महेड़ा गाँव जाने का रास्ता बताया तो दंग रह गया! यहाँ सचमुच आदमी तो क्या जानवर भी चलने से मना कर दे! सड़क की मिटटी से बने तीव्र ढाल से ही नीचे उतरना था! यह बड़ा दूभर कार्य था लेकिन और कोई चारा भी नहीं था! मैं हाथ-पाँव टेकता हुआ आखिरकार नीचे उतर ही गया लेकिन अब चिंता यह सताने लगी थी कि दिनेश कंडवाल जी कैसे ऐसी ढलान पर उतर पायेंगे!

मैं पानी के टैंक के पास जा बैठा शायद यहीं से पानी की सप्लाई महेडा गाँव होती है! दूर चुन्ना-महेड़ा स्कूल के नीचे के बड़े मोड़ पर नजर दौड़ाई तो पाया अभी तक एक भी टीम मेम्बर वहां दिखाई नहीं दे रहा था! लगभग ढाई किमी उन्हें अभी पैदल चलकर मुझ तक पहुंचना था तो मैं समझ गया कि कम से कम पौन घंटा या एक घंटा अभी और चलना बाकी है! मैं खुश इसलिए था कि मेरे पास रिलेक्स करने का पर्याप्त समय था वरना ठाकुर रतन असवाल के साथ ट्रेकिंग में रिलेक्स हो ऐसा सवाल ही पैदा नहीं होता!

दिनेश कंडवाल जी के अलावा अचानक ध्यान आया कि टीम मेम्बर में सबसे छोटे सौरभ असवाल व प्रणेश असवाल भी शहरी बच्चे हैं ये उतर भी पायेंगे या नही! खैर चिंता तो बनती ही है! करीब पूरे घंटे बाद जब प्रणेश व सौरभ को उतरते देखा तो मन प्रसन्न हो गया! कुछ देर बाद जब दिनेश कंडवाल जी भी ठेठ मेरी ही तरह लगभग घसटते हुए नीचे उतरने लगे तो मुझे आभास हो गया कि वे भी आराम से उतर जायेगें! आखिर पूरी टीम हम तक पहुंची तो अमित सजवाण जी बोल पड़े- हमें आगे बढना चाहिए क्योंकि किमसेरा में वहां की समिति व ग्राम प्रधान हमारा भोजन पर इन्तजार कर रहे हैं! सौरभ बोले- भाई जी, थोड़ा देर दिनेश कंडवाल जी का भी इन्तजार कर लेते हैं ताकि वे भी आराम कर सकें!

खैर कुछ देर बाद फिर टीम ने मार्च किया और हम तीन लोग मैं प्रवीण भट्ट, दिनेश कंडवाल जी पीछे छूट गए! सच कहूँ तो यह ढाकर यात्रा हमारे लिए चिंतन का बिषय थी कि क्या ऐसी ट्रेकिंग में हम यह भूल जाएँ कि जो पीछे छूटें हैं उनके क़दमों से ही कदम मिलाकर हमें आगे बढना चाहिए! क्या हम उन सबके एज ग्रुप का ख्याल रखते हैं जो यात्रा से जुड़े हैं! यहाँ से गाँव के पास जाने वाली रोड तक पहुँचते-पहुँचते हालात यह थे कि प्रवीण भट्ट बोल ही पड़े- दाज्यू हर यात्रा में एक ऐसा क्षण अवश्य आता है जब मुंह से निकल ही पड़ता है कि अब तो फट गयी है यार..!

हम आखिरकार महेडा गाँव पहुँच ही गए! स्यालगाड़ की दाहिनी चौड़ी फाट पर बसा यह गाँव चार पांच जातियों का गाँव हैं जिसमें सबसे ऊपर महाब गढ़ के पुजारी कुकरेती तब केष्टवाल, जखमोला व नीचे मुस्लिम तथा मालिनी-स्यालगाड संगम पर कुछ शिल्पकार परिवार रहते हैं! गाँव की आबादी बमुश्किल 20-22 परिवार ही है!

आपको यह जानकार हैरानी होगी कि मालिनी नदी घाटी में 80 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है! महेड़ा गाँव की ग्राम प्रधान भी मुस्लिम ही हैं! पहले तो मुझे यही जानकारी थी कि यहाँ के ग्राम प्रधान मुनब्बर हैं लेकिन अर्जुन सिंह जी ग्राम गुलासुगाड़ वालों से मिली जानकारी से ज्ञात हुआ कि मुनब्बर नहीं बल्कि उनकी बेगम आबिदा बेगम यहाँ की ग्राम प्रधान हैं!

विकास खंड दुगड्डा के अजमीर वल्ला पट्टी की मालिनी घाटी में गहड़, मैती-काटल, सौंटियालधार, गोपिगांव, धर गाँव, चरगाँव, सिम्मलखेत, जुड्डा-रौडियाल इत्यादि लगभग दर्जन भर गाँव में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं!

महेड़ा गाँव में महाबगढ़ के मंदिर पुजारी गोबिंद प्रसाद कुकरेती का कहना है कि महाबगढ़ के गढ़पति भंधो असवाल थे जो 16वीं सदी से रणेसा (राणीहाट) जोकि उनके गाँव के सम्मुख मालिनी नदी पार का क्षेत्र है वहां रहते थे! लेकिन यहाँ वह बताते हुए यह गलती कर गए कि भांधौ असवाल को गोरखा काल में गोरखाओं द्वारा उनकी सात पत्नियों के साथ मार दिया गया! कई लोग यहाँ भंधौ असवाल को भगदयो असवाल के रूप में भी जानते हैं! महेड़ागाँव में हमें ग्राम प्रधान तो नहीं मिली लेकिन पुजारी जी के अलावा सतीश चन्द्र कुकरेती, रमेश चन्द्र भारती व मुहम्मद व उनके पिता रेवतअली सभी ने लगभग एक सी बात दोहराई! मुहम्मद उत्तराखंड पुलिस में हैं! वे कहते हैं मैडा (महेड़ा) नाम से ही जाहिर होता है कि यह मेनका का गाँव है वहीँ ये लोग बताते हैं कि ग्राम सभा चुन्ना-महेड़ा में महेड़ा, बौरगाँव, सिलोड़ी, जोगीधरड इत्यादि गाँव पड़ते हैं! यहाँ ये सभी लोग इस बात से सहमत नजर आये कि उनके गाँव के पार जो पर्वत शिखर रणेसा है उसमें ही महाबगढ़ का राजा भान्धौ असवाल अपनी सात रानियों के साथ रहते थे! वहां उसके किले के अवशेष अभी भी हैं जहाँ पाषाण, जेवर, सांकल व पुराने काल के बर्तन इत्यादि लोगों को मिले लेकिन किसी के पास भी यह जबाब नहीं था कि जिसे मिले क्या उनका नाम बता सकते हैं!
महेड़ा गाँव के नीचे मालिनी संगम को प्रणाम कर हम आगे आगे बढे! अडवांस टीम सिर्फ भागे जा रही थी जबकि मैं जानकारी जुटाने में लगा इस क्षेत्र पर शोध भी कर रहा था! ऐसे में मुझे अधिवक्ता मित्र अमित सजवाण ज्यादा याद आये जो यहाँ की भौगोलिक दशा से ही परिचित नहीं थे बल्कि यहाँ के जनमानस में भी उनकी गहरी पैठ है! उनकी मन ही मन प्रशंसा करना मेरा दायित्व भी था! यों तो ग्राम प्रधान महेड़ा शाबिदा बेगम के आवास पर भी हमारे लिए चाय पानी की व्यवस्था थी लेकिन हम थोड़ा देरी से यहाँ पहुंचे इसलिए उसे हम स्थगित कर तेजी से मांडई किमसेरा के लिए बढ़ने लगे!
महेडा गाँव की सरहद अर्थात मालिनी-स्यालगाड़ नदी संगम से हमें नदी के रुख के विपरीत दिशा में आगे बढना था! इसलिए हम शिल्पकार मोहल्ले से होते हुए लगभग 300 मित्र आगे झूलापुल में जा पहुंचे जहाँ हमने कुछ फोटोज ली!

अडवांस टीम हमारा नदी तट पर इन्तजार कर रही थी जिनमें कुछ युवा साथी अमित सजवाण जी के साथ मांडई के लिए पहले ही निकल चुके थे, शायद अमित सजवाण जी के लिए वहां से लगातार फोन आ रहे थे! हमारा दोपहर भोज दरअसल शकुन्तला मेला समिति मांडई द्वारा बनाया हुआ था और आस-पास स्थित ग्राम सभाओं के लोग हमारा वहां बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे!

मांडई । राजा दुष्यंत व शकुन्तला के गन्दर्भ विवाह स्थल। ग्रामीण के बीच ढाकर यात्रा टीम।

सतयुगी नदी मालन बड़े वेग के साथ अपने तेजी से भावर की ओर भाग रही थी जबकि हम भी थके मांदे क़दमों से उसके उद्गम स्थल की तरह बढ़ रहे थे! लगभग तीन किमी. मालन नदी के साथ-साथ कभी नदी के इस पार कभी उस पार होते हुए आखिर हमें दूर मालन तट पर एक मंदिर दिखाई दिया जहाँ मंदिर प्रांगण में तम्बू लगा था! यह हमारे लिए शुकून दायक था कि चलो कम से कम लोग अभी तक जमा तो हैं!
मांडई ग्रामसभा किमसेरा में पड़ता है! जिसके ग्राम प्रधान बेहद युवा अशोक कुमार कुकरेती, मेला-मंदिर समिति के अध्यक्ष सुमन चंद कुकरेती, मेला समिति के सचिव मुहम्मद यासीम, अर्जुन सिंह, घनश्याम सिंह सहित लगभग दर्जन भर लोगों व कुछ युवाओं ने हमारा मंदिर प्रांगण में स्वागत किया! यह बेहद अप्रितम था क्योंकि आज बर्षों बाद शुद्ध ताजे मालू पात पर हम वन भोज कर रहे थे! मालन तट पर मालू के पत्तों में पक्का भोज यकीनन बेहद स्वादिष्ट था व उतने ही स्वादिष्ट व मधुर इन सभी लोगों का हमारे प्रति कृतज्ञ व्यवहार भी! इन लोगों की प्रशंसा से अधिक प्रशंसनीय मुझे अमित सजवाण जी लग रहे थे क्योंकि यह व्यवस्था अचानक की गयी थी!
यहाँ उपस्थित सभी लोगों की यही राय थी कि गौतमी-गाड व मालन नदी संगम पर स्थित मांडई ही वह स्थान है जहाँ राजा दुष्यंत व शकुन्तला ने गंदर्भ विवाह रचाया था! यहाँ के लोगों का मानना है कि यहाँ स्थित बेल वृक्ष के नीचे आज भी वह मंडप है जिसे उम्रदराज सभी लोहों ने देखा है! इस बेल वृक्ष पर बहुत छोटे फल आते हैं! लोगों का मानना है कि शकुन्तला को जन्म देकर व शुक शावकों (स्थानीय भाषा में सेंटुला नामक पक्षी) के भरोंसे छोड़ इंद्र की अप्सरा मेनका सीधे स्वर्ग लोक लौट गयी! आज भी उस स्थान को सौंटियालधार नाम से जाना जाता है! किमसेरा में पाए जाने वाले कीमू (सहतूत) की गुणवता अन्य फलों से बेहद अलग है व यहीं कण्वाश्रम था! यह भी यहाँ के लोगों का मानना है! इस क्षेत्र के वासियों का मानना है कि आज भी अगर शास्त्र सम्मत बात की जाय तो राजा दुष्यंत अपने घोड़े को मैदानी भाग में छोड़कर 12 कोस पैदल चलकर इस स्थान पर आये थे! लोग जिसे वर्तमान में कण्वाश्रम कहते हैं वह दरअसल चौकी घाट है! जबकि राजस्व रिकार्ड में उनका यह क्षेत्र विजय नगर के नाम से विख्यात है जहाँ जन्में चक्रवर्ती सम्राट शकुन्तला पुत्र का जन्म हुआ और यहीं उन्होंने सिंघणी का दूध पिया, शेर के साथ खेले बड़े हुए!

किमसेरा के ग्राम प्रधान व अन्य ग्रामीण कहते हैं कि इस क्षेत्र में मालन नदी तट के आस-पास बेहद दिव्य औषधीय पादप हैं जिनमें मालिनी वृक्ष भी सम्मिलित है! रेवतअली व घनश्याम सिंह बताते हैं कि इस वृक्ष पत्ता से टूटी हडडी ही नहीं बल्कि मांस भी जुड़ जाता है! किमसेरा गाँव व जड्डूगाड़ के उपरी क्षेत्र में इसकी कुछ लता वृक्ष पाए गए हैं।

ग्रामीणों की पीड़ा।

यहाँ के ग्रामीणों की पीड़ा यह है कि सरकार ने कभी इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया और न ही पर्यटन विभाग ने इसकी सुध ली है जबकि यह क्षेत्र हेमकूट, त्रिकुट पर्वत शिखरों का वह अध्यात्मिक क्षेत्र है जहाँ कभी बड़ा ऋषिकुल हुआ करता था व जिसमें दीक्षा लेने कई राजघरानों के राजकुमार आया करते थे! उन्होंने कहाँ कि यहाँ से मरणखेत होकर सीधा रास्ता चौकिसेरा तक जाता है जो लगभग 12 किमी. दूर है। सरकार अगर सुध ले तो यह क्षेत्र कण्वाश्रम शकुन्तला व राजा भरत के नाम से पर्यटन मानचित्र पर इंगित किया जा सकता है व विलेज टूरिज्म की अपार सम्भावनाएं यहाँ भी प्रबल हो सकती हैं क्योंकि यह मैदानी भू-भाग के बेहद करीबी क्षेत्र ट्रेकिंग के लिए मुफीद है!

मालिनी वृक्ष लताओं व पातों के साथ।

बहरहाल हम जाना तो मालिनी नदी के उद्गम स्थल मलन्या चाहते थे लेकिन पैरों ने जबाब देना बंद कर दिया इसलिए हमने जुड्ड़ा-रौतियाल में जुड़डा गाड़ मालिनी संगम से सडक पकड़ी व सडक मार्ग से पौखाल जा पहुंचे जहाँ अमित सजवाण के किन्हीं परिचित द्वारा हमारे चाय पान की व्यवस्था की हुई थी! यहाँ एक कारामाती कुत्ता दुम हिलाता हमारे पास आया जहाँ मैं, रतन असवाल, प्रवीण भट्ट व दिनेश कंडवाल जी बैठे थे!मैंने पुचकारा तो उसने मेरे कंधे के ऊपर अपना पैर रख दिया व अपनी ही जुबान से अपना मुंह चाटने लगा! सीधा सा संकेत था कि मैं भूखा हूँ मुझे भी कुछ खिला दो! मैं उठा और उसके लिए एक बंद का पैकेट खरीद लाया! आकर देखता हूँ कि उसने दिनेश कंडवाल जी के काँधे में पैर रखा हुआ है व उन पर भी ठीक वैसा ही मस्का मार रहा है! रतन असवाल भला ऐसे पलों को अपने मोबाइल में कैद करना कहाँ चूकते! मैंने लाख कोशिश की कि वह दुबारा मेरे कंधे पर भी पैर रखे लेकिन अब तो उसकी नजर मेरे लाये बंद पर पड़ गयी थी! जिसे देखकर एक खुजली वाला कुत्ता भी पास आ गया था! थक हारकर मैंने वह बंद उन्हें खिलाये और जूता रिपेयर करवाने सामने मोची की दूकान पर जा पहुंचा, यहाँ भी भला मुझे कौन बख्शने वाला था नितिन काला आये व मेरी फोटो क्लिक करके निकल पड़े!

अब टैक्सी का इन्तजार था तो पता चला टैक्सी ड्राईवर हाथ की अंगुली में चाबी घुमा-घुमा चल रहे थे, चाबी पुल से नीचे जा गिरी जहाँ वे हाथ में दरांती लेकर घास-फूंस काटकर चाबी ढूँढने में लगे हैं! आखिर हम पौखाल लांघते हुए कांडाखाल के पास से ही बांये मुड़कर विरमोलीखाल जा पहुंचे जहाँ आज हमारे रात्री विश्राम की व्यवस्था थी!
क्रमशः…….यात्रा जारी!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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