दीपक बेंजवाल
दस्तक..ठेठ पहाड़ से
मन्दाकिनी घाटी की सास्कृतिक नगरी अगस्त्यमुनि में मकर संक्रान्ति पर्व पर प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले समाजसेवी हरिदत्त बेंजवाल स्मृति समारोह में इस वर्ष का प्रतिष्ठित “मन्दाकिनी सम्मान” कार्यक्रम के मूख्य अतिथि केदारनाथ विधायक श्री मनोज रावत, विशिष्ट अतिथि प्रमुख विकासखण्ड जखोली श्री प्रदीप थपलियाल, अध्यक्ष नगर पंचायत अगस्त्यमुनि श्रीमती अरूणा बेंजवाल की गरिमामयी उपस्थिति में उत्तराखण्डी लोक संस्कृति, लोककला, लोक रंगमंच के पूरक नाम प्रोफेसर डी.आर.पुरोहित को प्रदान किया जायेगा।
दशकों से अनवरत, एक स्व-निर्धारित प्रतिबद्धता और संकल्प के साथ उत्तराखण्डी संस्कृति और लोकनाट्य को न केवल देश बल्कि विश्वपटल पर भी एक सम्मानजनक पहचान दिलाने के लिए प्रयत्नशील प्रोफेसर डी.आर.पुरोहित आज उत्तराखण्डवासियों के लिए प्रेरणाश्रोत नाम है। ‘केन्द्रीय विश्व विद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के लोक कला एवं निस्पादन केंन्द्र्र के पूर्व निदेशक एवं वर्तमान में नेशनल फेलो इण्डियन इन्स्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडीज शिमला में कार्यरतस्व नामधन्य प्रोफेसर दाता राम पुरोहित का जन्म रूद्रप्रयाग जिले के क्वीली गाँव में 8 अगस्त 1953 को श्रीमती कस्तूरी देवी एवं श्री उर्वीदत्त पुरोहित के घर हुआ। प्राथमिक शिक्षा कुरझण, मयकोटी से प्राप्त करने के उपरांत स्नातक गोपेश्वर और परास्नातक श्रीनगर से प्राप्त हुई। श्रीनगर से ही एम.फिल. करने के उपरांत बतौर प्रोफेसर यही अंग्रेजी विभाग में अध्यापन कार्य शुरू किया, लेकिन मन में लोकसंस्कृति की ललक से उनका रंगमंच, लोकनाट्य, लोकसंगीत प्रति झुकाव बढ़ने लगा। जब भी समय मिलता वो गांवों, लोककलाकारों, लोकोत्सवों को समझने-बूझने पहुंच जाते। अब संस्कृति उनकी रग-रग में समा चुकी थी। संस्कृति के इन अबूझ खजानों को संग्रहित करते-करते उन्होंने इसे देश-दुनिया और नई पीढ़ी तक एक नये उत्साह के साथ पहुंचाया, फिर जो भी इनके समीप आया वो उनका मुरीद होता गया। उनका यह महान शोधपरक कार्य अब उनके मंचनों, व्याख्यानों से होते हुए शोध ग्रंथों के रूप में प्रकाशित भी होने लगा। फलस्वरूप लोकसाहित्य और ढोल वादन पर उनकी 50 से भी अधिक शोधपत्र और पुस्तके प्रकाशित हुई। आपने जागर, पंडवाणी, बगड्वाली आदि को रिकार्डिग कर सुरक्षित करते हुए उनका सफल नाट्य रूपान्तरण भी किया। आपने ही सर्वप्रथम केदारघाटी के चक्रव्यूह का मंचन किया जिसने न केवल राज्य में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकसंस्कृति को नई पहचान दिलाई। आपके द्वारा स्थापित शैलनट व विद्याधर श्रीकला जैसे ख्यातिप्राप्त रंगमचीय संस्थाए आज भी इस महान कार्य को अग्रसारित कर रही है। आपने उन्होंने 36 से अधिक गढ़वाली नाटक भी लिखे है। आपके अथक प्रयासों से ही नंदा देवी राजजात जगप्रसिद्ध हुई और सलुड़ डुंग्रा की प्राचीन रम्माण गांव की चैपाल से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची तक पहुंच गई। आदरणीय पुरोहित जी को लोकसंस्कृति के एक संस्थान की उपमा दी जाय तो संभवतः अतिशयोक्ति नहीं होगी, हर उत्तराखण्डी को आप पर नाज है।
स्मृति समारोह में समाजसेवी स्मृति युवा प्रतिभा सम्मान के लिऐ हाल ही में वैज्ञानिक पद पर चयनित युवा प्रतिभा मयंक रावत एवं डा.अंकित बुटोला को भी सम्मानित किया जायेगा।

