(मनोज इष्टवाल)
इस जीत पर मैं इसलिए भौंचक नहीं हूं कि महेश जीना जीत गए बल्कि इसलिए भौंचक हूँ कि इतने बड़े अंतर से जीते। तो क्या इसके पीछे केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश में मुखिया की कुर्सी परिवर्तन इतनी विशाल जीत का मुख्य कारण रही? आखिर ऐसा क्या हो गया कि एक माह में ही वर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वक्त काल परिस्थितियां बदल दी। जिस सीट पर कांग्रेस दम्भ भर रही थी कि महेश जीना क्या स्वयं मुख्यमंत्री में भी हिम्मत हो तो सल्ट विधान सभा सीट पर आकर चुनाव लड़ कर दिखाए, उसी सीट को कांग्रेस इतनी बुरी तरह से हार गई जिसकी कांग्रेस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
सम्पूर्ण प्रदेश कांग्रेस ने इस समय सल्ट विधान सभा पर अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी। छोटा बड़ा हर कार्यकर्त्ता सल्ट विधान सभा के गांव गांव पगडंडी-पगडंडी माप रहा था लेकिन इतना बुरा हश्र कांग्रेस का तब भी हो गया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। जिस तरह कोरोना काल से जूझकर पूर्व मुख्यमंत्री का सल्ट विधान सभा में स्वागत हुआ था और भीड़ उमड़ी थी उसे देखकर राजनीतिक पंडित ही नहीं बल्कि भाजपाइयों ने भी यह आंकलन लगाना शुरू कर दिया था कि सल्ट विधान सभा सीट श्रीमती गंगा पंचोली जीत रही हैं।
उस दौर में जब मैने यही बात मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने रखी तो उन्होंने हंसते हुए लगभग सपाट सा जबाब दिया था। बोले-मनोज जी, उत्तराखण्ड की जनता अशिक्षित नहीं है। वह नाराजगी जरूर जताती है लेकिन उसकी भावनाएं कभी नहीं मरती। देखना हम चुनाव जीतेंगे और पिछले चुनावों से भी अच्छे मार्जन से जीतेंगे। मैं उनके इस ओवर कॉन्फिडेंस पर मुस्कराया था लेकिन आज जब चुनाव परिणाम सामने हैं तो स्पष्ट हो गया कि जनता को मुखिया पद पर एक साफ सुथरे चेहरे की ताजपोशी पसन्द आई। आखिर आती भी क्यों नहीं, क्योंकि गढ़वाल-कुमाऊँ के मानकों में तीरथ सिंह रावत का चेहरा कहीं दागदार नहीं है।
सबसे बड़ी राजनीतिक पटकनी अगर कांग्रेस को किसी ने दी तो वह भीतरघात व स्वयं हरीश रावत की जिद ने इसमें अहम भूमिका निभाई क्योंकि सल्ट विधान सभा क्षेत्र में अपना मजबूत राजनीतिक बर्चस्व बनाने के बाद भी पूर्व विधायक रंजीत सिंह रावत के प्रमुख पुत्र का ऐन समय पर टिकट काटकर गंगा पंचोली को टिकट दिया जाना भी हार का बड़ा कारण समझा गया। एक तो रंजीत सिंह रावत के पुत्र को टिकट नहीं दिया गया ऊपर से भीतरघात के डर से उन्हें समस्त चुनाव प्रचार से अलग किया गया जिससे उनके समर्थकों में भारी रोष था व उन्होंने ऐसे में पार्टी विरोधी कार्य किया हो ऐसी सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
रंजीत सिंह रावत के उस वीडियो को भी भाजपाईयों ने खूब वायरल किया जिसमें उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का काला चिट्ठा खोलकर रख दिया था ऐसे में भी मतदाता ने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा को जमकर वोट डाले। रही सही कसर अन्य दलों व निर्दलियों ने पूरी कर ली।
बहरहाल मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने मुख्यमंत्री काल की पहली परीक्षा तब पास कर ली जब एक ओर जंगलों में आग, दूसरी तरफ पार्टी के अंदरखाने चल रहा घमासान व तीसरा कोरोनाकाल चल रहा था। भाजपा व आरएसएस का चुनाव प्रचार एक बिशेष रणनीति का हिस्सा रहा जिसने यह सीट उनकी झोली में डाल दी। इसमें महेश जीना के पिता पूर्व विधायक स्व. सुरेंद्र सिंह जीना फैक्टर (सिम्पैथी वोट) ने भी खूब काम किया।