माघ एक माह का त्योहार: जौनसार बावर के संपन्नता का प्रतीक !
(वरिष्ठ पत्रकार भारत चौहान की कलम से)
विश्व की बहुत कम संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में 1 माह तक त्यौहार मनाने की परंपरा है परंतु देहरादून जनपद के जनजातिय क्षेत्र जौनसार बावर में यह परंपरा अतीत से चलती आ रही है और भविष्य में भी चल रही है, मकर संक्रांति से पूर्व प्रारंभ होने वाले दावतों व नाच गाने का दौर पूरा 1 माह तक चलता रहता है । इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस क्षेत्र में दावतों का दौर माह भर चलते हो वह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से समृद्धि और आर्थिक रूप से संपन्न होगा।
विश्व में अधिकांश संप्रदाय एवं धर्मों में वर्ष में एक या दो त्यौहार मनाने की परंपरा है, जबकि भारत में हर माह कोई न कोई उत्साह होता है। जब हम जौनसार बावर की बात करते हैं तो यहां हर त्यौहार 5 दिन से पहले समाप्त नहीं होता। ठीक इसी प्रकार शादी या अन्य उत्साह भी तीन-चार दिन तक अपने सगे संबंधियों, गांववासियों के साथ बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
जौनसार बावर कि इस समृद्ध लोक संस्कृति एवं संपन्नता से प्रभावित होकर जौनसार बावर के प्रवेश द्वार कालसी में सम्राट अशोक ने आज से 23 सौ वर्ष पूर्व अशोक की शीला स्थापित की जिस पर विभिन्न उपदेश अंकित किए गए हैं।
यहां के लोगों की विद्वता एवं पराक्रम का परिणाम है कि ईसा से 250 वर्ष पूर्व कालसी के निकट बाढ़वाला में शील बर्मन द्वारा अश्वमेध यज्ञ किया गया जिसके प्रमाण आज भी विद्यमान है । जिस जौनसार बावर के आंगन से दुनिया को जीतने के लिए अश्व छोड़ा गया हो वह क्षेत्र पिछड़ा, निर्जर, निर्धन, निस्सहाय, उपेक्षित, वंचित नहीं हो सकता। यह बात अलग है कि देश की आजादी व 1962 के चीन युद्ध के बाद सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए इस क्षेत्र को 1967 में जनजाति घोषित कर दिया गया हो परंतु इस घोषणा से अतीत के वैभव संपन्नता के संस्कार को नहीं बुलाया जा सकता और यही परिणाम है कि प्रत्येक त्यौहार को बड़े हर्ष और उल्लास यहां के लोग मौज मस्ती के साथ मनाते हैं।
जौनसार बावर क्षेत्र का भौगोलिक परिदृश्य पर्वतीय है अधिकांश क्षेत्र में बर्फ पड़ती है दो- तीन महा कड़ाके की ठंड रहती है प्राचीन काल में जब माघ को 1 माह तक मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई होगी तब बर्फ और अधिक पड़ती होगी, पूरे माह खेती-बाड़ी का कार्य भी बहुत अधिक नहीं होता। इसलिए इस क्षेत्र के पूर्वजों ने माघ को एक महा तक मनाना प्रारंभ किया।
” एक माह तक कैसे मनाते हैं माघ ?”
विश्व के अधिकांश देश विभिन्न जीव जंतुओं के मांस पर निर्भर है। भारत में भी प्रत्येक दिन हजारों टन मांस की खपत है ।जौनसार बावर में भी मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले प्रत्येक परिवार में देवी के नाम से बकरे काटने की प्रथा है जिसे मरोज कहते हैं। पौष के माह में पडने वाले इस त्योहार को (पूष त्यार) भी कहते हैं। अब इसे चाहे प्रथा कहे या कुप्रथा परंतु चली आ रही परंपरा का एक हिस्सा है! इस दिन परिवार के सभी लोग अनिवार्य रूप से एकत्रित होते हैं!गीत के एक पंक्ति में कहा गया है –
‘बोली देया मेरी डेण्डा ढेकुटिये,
घरे आंदा पुष त्यारं’ ।
(दूर प्रदेश में कोई पिता अपनी गोल मटोल बिटिया को उपरोक्त गीत के माध्यम से यह संदेश देता है कि मैं पूष त्यार में घर आऊंगा!)
उपरोक्त गीत की पंक्ति के माध्यम से इस त्यौहार की जौनसार बावर में मेहता को समझा जा सकता है। मरोज के दिन देवी की पूजा के पश्चात सभी गांवों मे दावतो का दौर शुरू हो जाता है। नाते – रिश्तेदारों का पूरे माह आवागमन होता है, जो बहीन और बेटी दूसरे गांव में विवाह करके गई है उसे भी माघ का बाटा (हिस्सा) अवश्य पहुंचाया जाता है । गांव के सभी परिवारों में सामूहिक एवं एकल लोक नृत्य, लोक गीतों की अनूठी परंपरा के साथ सामाजिक समरसता का भाव उत्पन्न करते हुए यह त्यौहार न केवल जौनसार बावर बल्कि टिहरी, उत्तरकाशी, हिमाचल प्रदेश आदि पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है।