(मोहन भुलानी )
सेब ने दुनियाभर में हिमाचल की पहचान एपल स्टेट के तौर पर बनाई। इसी सेब ने शिमला जिले के चौपाल के मड़ावग गांव को एशिया का सबसे अमीर गांव बनाया। अब मड़ावग में सेब की खेती करने वाला हर परिवार करोड़पति हो गया है।
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ज्ञात हो कि वर्तमान में चौपाल के मड़ावगगाँव में प्रत्येक परिवार की औसत सालाना आय 55 लाख से 80 लाख के बीच में है। आय का कम व ज्यादा होना सेब की फसल और रेट पर निर्भर रहता है। मड़ावग गाँव में 225 से ज्यादा परिवार है। यहां के बागवान हर साल औसत 150 करोड़ से 175 करोड़ रुपए का सेब बेच रहे हैं। सेब के साथ-साथ इस गाँव में उन्नत किस्म की नाशपाती भी होती है जो लम्बे समय तक ख़राब नहीं होती।
पहले क्यारी रहा सबसे अमीर गांव
मड़ावग से पहले शिमला जिले का ही क्यारी गांव सबसे अमीर रहा है। क्यारी को भी सेब ने ही एशिया का सबसे अमीर गांव बनाया था। अब मड़ावग को एशिया का अमीर गांव बताया जाता है।
अब दशोली गांव लगा उभरने
अब मड़ावग का ही दशोली गांव सेब के लिए प्रदेश में पहचान बना रहा है। दशोही गांव के 12 से 13 परिवार देश में सबसे बेहतर क्वालिटी का सेब पैदा करने लगे है। दशोली का छोटा बागवान भी 700 से 1000 पेटी सेब और बड़ा बागवान 12 हजार से 15 हजार पेटी सेब तैयार कर रहा है।
8000 फीट की ऊंचाई पर सेब बगीचे
दशोली में बागवानों के बगीचे 8000 से 8500 फीट की ऊंचाई पर है। इस ऊंचाई को सेब की खेती के लिए सबसे आइडियल माना जाता है।
हाथों-हाथ बिकता है मड़ावग का सेब
सेब की खेती के लिए वैसे तो पूरी मड़ावग गांव और पूरी पंचायत मशहूर है। मगर, मड़ावग के दशोली का सेब क्वालिटी में किन्नौर और जम्मू कश्मीर के सेब को भी मात दे रहा है।
इस वजह से प्रदेश व देश के अन्य क्षेत्रों की मंडियों में मड़ावग और दशोली का सेब हाथो-हाथ बिकता है। मड़ावग का सेब विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है।
शिमला से 90 किलोमीटर दूर है मड़ावग
मड़ावग गांव शिमला जिले के चौपाल तहसील के अंतर्गत आता है। यह शिमला से लगभग 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। गांव की आबादी 2200 से ज्यादा बताई जा रही है। मड़ावग में सभी लोगों ने आलीशान घर बना रखे है। सेब की खेती के लिए लैटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
मड़ावग में इन्होंने सेब को किया इंट्रोड्यूस
मड़ावग में 1953-54 में सेब की खेती सबसे पहले चइयां राम मेहता ने शुरू की। तब जेलदार बुद्धि सिंह और काना सिंह डोगरा ने स्थानीय लोगों को सेब की खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया। तब क्षेत्र में आलू की खेती आय का मुखिया जरिया हुआ करती थी
अब HDP की ओर जा रहे बागवान
इसलिए शुरू में कम लोगों ने सेब की खेती को अपनाया। 1980 तक अधिकतर लोग सेब के बगीचे लगा चुके थे। वर्ष 2000 के बाद मड़ावग क्षेत्र सेब उत्पादन की वजह से देश के नक्शे पर छाने लगा। अब यहां के बागवान सेब की आधुनिक तकनीक HDP (हाई डेन्सिटी प्लांटेशन) की ओर जाने लगे हैं।
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