(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की कलम से)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में लकड़ी की मांग बहुत बढ़ गई थी। उन दिनों खण्डूड़ी बंधुओं का व्यापार बड़े ऊंचे दर्जे में पहुंच गया था। घनानंद खण्डूरी को टिहरी गढ़वाल के राजा नरेंद्र शाह ने राज्य जंगलात के वर्किंग प्लान का अध्यक्ष बनाया था। यह कार्य उन्होंने बखूबी ढंग से निभाया था। राजा नरेंद्र शाह, घना नंद की सेवाओं से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने 1920 में घनानंद को सोने की तलवार भेंट की थीं। राजा इतना आदर करता था कि घनानंद की बीमारी के दिनों में राजा नरेद्र शाह स्वयं उनके स्वास्थ्य जानने के लिए उनके बंगले देहरादून में पहुंचे थे। टिहरी राज्य को घना नंद ही सबसे ज्यादा टैक्स देते थे।
उस टैक्स से राज्य चलता था। घनानंद को दानवीर भी कहा जाता था। वह टिहरी दरबार के सच्चे सुख चिंतक थे। इसीलि इनका रियासत में प्रबल प्रभाव था। रीजेंसी काउंसिल के विरुद्ध राजा नरेंद्र शाह को राज्य अधिकार दिलाने में इन्होंने बहुत बड़ी सहायता की थी। दरबार की ओर से सन 1917 में अपने खर्चे पर तिब्बत गए थे। वहां के अधिकारियों से बातचीत की थी। सरहदी झगड़े का श्री घना नंद ने संतोषजनक निबटारा कराया था। चंद्र बल्लभ खण्डूरी की याद में मसूरी में चन्द्र वल्लभ स्मारक छात्रवृत्ति ट्रस्ट की भी स्थापना की गई थी और चंद्र बल्लभ आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना भी की गई थी। जारी …..
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राजा श्री कीर्ति शाह जी
राजा श्री नरेंद्र शाह जी
व्यापारी श्री घना नंद खण्डूड़ी जी