Sunday, December 22, 2024
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कर्नाटक: बदले की राजनीति

लोकतंत्र में राजनेता चाहे वे कितने ऊंचे पद पर हों, सिद्धांतत: वे जनता के सेवक होते हैं। बहरहाल, इस सोच को अब सिर के बल खड़े कर दिया गया है और उसका खामियाजा कर्नाटक को भुगतना पड़ रहा है। कर्नाटक सरकार की इस बात के लिए तारीफ की जाएगी कि चावल खरीद में केंद्र की ओर से डाली रुकावट को उसने अपने चुनावी वादे को पूरा ना करने का बहाना नहीं बनाया। खुले बाजार से खरीदारी की उसकी पहल पर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 34 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चावल देने का निर्णय लिया था। बाद में साफ तौर पर केंद्र के दबाव के कारण एफसीआई इसे वादे से मुकर गई। तो अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे की आबादी को पांच किलो चावल के बदले उतने चावल की कीमत के बराबर की रकम सीधे लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर करने का फैसला किया है। वैसे सीधे अनाज देने का अलग अर्थशास्त्र होता है। उससे जहां लाभार्थी तबकों को राहत मिलती है, वहीं उससे बाजार में अनाज की कीमत नियंत्रित होती है, जबकि किसानों के लिए उपज बढ़ाने की परिस्थितियां बनती हैं। ट्रांसपोर्ट आदि पर होने वाले खर्च से अर्थव्यवस्था में अधिक रकम पहुंचती है, जिसका अतिरिक्त मांग पैदा करने में योगदान होता है। जबकि सीधे दी गई रकम का संबंधित परिवार के मुखिया दुरुपयोग भी कर सकते हैं। फिर इसका बिना उत्पादकता बढ़ाए मुद्रास्फीति बढ़ाने में योगदान हो सकता है।

लेकिन आज की केंद्र सरकार के संचालक इतनी गहरी और दूरदृष्टि से सोचने की जरूरत महसूस नहीं करते। उनके लिए राजनीतिक लाभ और राजनीति बदला सर्वोपरि है। गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान ही कह दिया था कि अगर भाजपा हारी, तो कर्नाटक के लोग प्रधानमंत्री के आशीर्वाद से वंचित हो जाएंगे। इस तरह उन्होंने राज्य व्यवस्था को एक व्यक्ति का समानार्थी बताने की खुलेआम कोशिश की थी। ऐसा सिर्फ तानाशाही व्यवस्थाओं में किया जाता है। लोकतंत्र में राजनेता चाहे वे कितने ऊंचे पद पर हों, सिद्धांतत: वे जनता के सेवक होते हैं। बहरहाल, इस सोच को अब सिर के बल खड़े कर दिया गया है और उसका खामियाजा कर्नाटक को भुगतना पड़ रहा है। लेकिन बात सिर्फ कर्नाटक की नहीं है। इसका संदेश दूरगामी महत्त्व का है। यह संदेश देश की संघीय व्यवस्था के लिए शुभ नहीं है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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