कालसी शिलालेख..! तो क्या जौनसार बावर के यमुना तमसा नदी क्षेत्र में ईसा से 250 वर्ष पूर्व यवनों का राज था?
(मनोज इष्टवाल)
बड़ा प्रश्न है व शोध का बिषय भी….! क्या जौनसार बावर के यमुना तमसा नदी क्षेत्र में ईसा से 250 वर्ष पूर्व यवनों का राज था? है ना सिर घुमा देने जैसा बिषय! क्योंकि हम सब जानते हैं कि ईसा से 250 वर्ष पूर्व तो चक्रवर्ती सम्राट अशोक गद्दी पर विराजमान थे जिन्होंने लगभग सम्पूर्ण भारत बर्ष ही नहीं बल्कि वर्तमान में विश्व के कई देशों तक अपना राज्य विस्तार किया। मौर्य सम्राट अशोक ने अपने राज्य, जिसकी सीमाएं आधुनिक भारत, पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल तक फैली थी, कलिंग युद्ध के बाद सम्पूर्ण राज्य में चतुदर्श शिलालेख (14 शिलालेख चट्टानें), लघु शिलालेख, बड़े स्तम्भ लेख / सप्त स्तम्भ लेख, लघु स्तम्भ लेख, व गुफा लेख लिखे गए.
अशोक के विभिन्न अभिलेख में ब्राम्ही ,खरोष्ठी ,ग्रीक और अरामाइक लिपि का प्रयोग हुआ है। ग्रीक और अरामाइक लिपि के अभिलेख अफगानिस्तान से खरोष्ठी लिपि के अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से और अन्य उसके अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं जो भारत के अन्य भागों से प्राप्त हुए हैं।
उसके शिलालेख की खोज सर्वप्रथम पाद्रेटी फैंथलार ने सन् 1750 ईस्वी में की थी । इस पढ़ने में सबसे पहले सफलता जेम्स प्रिंसेप को 1837 में हुई थी। ये ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि को अनुवाद करने में सफल हुए थे।अशोक के विभिन्न अभिलेख में उसे देवानाम प्रिय प्रियदर्शी कहा गया है।
मौर्य सम्राट अशोक के अब तक कुल प्राप्त हुए चौदह शिलालेखों में से एक विशाल शिलालेख प्राप्त हुआ था देहरादून से सत्तावन किलोमीटर दूर कालसी नामक स्थान के समीप प्राप्त हुआ । तब कालसी जौनसार बावर क्षेत्र की एक मंडी के रूप में प्रचलित थी व छोटी बड़ी जरूरतों का सामान यहीं से यमुना व तमसा वैली में पहुँचता था। ब्रिटिश शासन काल में अर्थात सन 1860 ई.में (1820 ए.डी.) में फॉरेस्ट के कर्मचारियों को सर्व प्रथम इसका पता चला, तब यह चारों ओर से मिटटी से दबी हुई चटटान मात्र दिखाई पड़ रही थी। अशोक के 14 शिलालेख हिमालय से लेकर काठियावाड, मैसूर, उड़ीसा, तक प्राप्त हुए हैं। अशोक के राजतिलक के चौदहवें वर्ष और ईसा से 250 वर्ष पूर्व कालसी के शिलालेख में अंकित है।