(मनोज इष्टवाल)
कुछ लोग इस धरती पर जब ही इस लिए लेते हैं क्योंकि उन्हें प्रकृति प्रदत्त किसी न किसी आयाम का संवाहक बनना होता है, अब चाहे वह प्रकृति में ब्याप्त कला जगत हो, सामाजिक धरोहर हो, सांस्कृतिक मूल्य हों या फिर वन उपवन, जल, वायुमंडल इत्यादि। ऐसे ही एक महर्षि बर्षों कला जगत के संगीत पक्ष की पैरोकारी में जिंदगी खपा गए और हमारे लिए छोड़ गए उत्तराखण्डी समाज की सांस्कृतिक व सामाजिक विरासत का वह अमूल्य खजाना जिस पर उनके स्वर्ग सिधारने के बाद अब एकाएक बर्षों बाद चर्चा शुरू हो गयी है।
विगत 21 जून 2020 को महाभारत काल के बाद हजारों साल बाद जब सूर्य ग्रहण लगा तो सभी की नजर सूर्य के धुंधलके स्वरूप और ओज के बाद पृथ्वी पर फैले उस अंधकार की ओर उठनी लाजिम थी। एक ऐसा ही सूर्य जो उत्तराखंड लोक संगीत के क्षेत्र का पितामाह था इस कलुषित काल में हमसे दूर अनन्त आकाश में कहीँ तारामंडल में विलय हो गया। यह महर्षि गढ़वाली गीतों के लेखक, गायक, संगीतकार जीत सिंह नेगी थे जिन्होंने सबसे पहले अपने गीतों को 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन में रिकॉर्ड कर हमारी आवाज देश दुनिया तक पहुंचाई।
नाट्यकर्मी/नाटक लेखक, संगीतकार, लोकगायक जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1925 में ग्राम -अयाल, पट्टी पैडुलस्यूं, पौडी गढवाल हुआ जिनका विगत 21 जून 2020 को दून स्थित अपने वर्तमान आवास में देहावसान हो गया है।
उन्होंने उत्तराखंड की पर्वतीय लोकसंस्कृति को बहुत ही मार्मिक सजीव व प्रभावशाली रूप में गीत रचनाओं व गद्य-गीत नाटिकाओं के माध्यम से समय-समय पर विभिन्न मंचो पर उतारा जिसे उस दौर में गढवाली, कुमाउनी और जौनसारी संस्कृति और पर्ववतीय बोली भाषा की आवाम ने इस महान संस्कृति विद्वान पुरोद्धा को हृदय से सराहा ।
श्री जीत सिंह नेगी जी उत्तराखंड ऐंसे प्रथम लोकगायक हुए जिन्हें 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफ़ोन कंपनी द्वारा बतौर लोकगायक मुंबई में आमंत्रित किया गया था और यहां उनके गीतों की रिकॉर्डिंग हुई । उन्होंने अपने गीतों का सर्वप्रथम प्रदर्शन पौड़ी के एक मंच में 1942 से प्रारम्भ किया। वेे उत्तराखण्ड के पहले ऐसे गीतकार, गायक व संगीतकार हुए जिन्होंने ब्रिटिश काल में सबसे पहले अपने गीतों को रिकॉर्ड कर उसे जन जन तक पहुंचाया।
लोकगायक जीत सिंह नेगी की प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी, वर्मा व में हुई । अपने मुम्बई प्रवास के दौरान उन्होंने भारी भूल , मलेथा की कूल , जीतू बगड़वाल , रामी बौराण , राजू पोस्टमेन आदि कई कालजयी प्रचलित गीत नाटिकाओं की रचना की और बाद में मुंबई से लेकर देहरादून, चंडीगढ़ में भी इन नाटकों का मंचन किया ।
मुंबई प्रवास के दौरान ही उन्होने 1955 में तू होली बीरा ऊंची निसी डांड्यों मां घसियार्यूं का भेस मा, खुद म तेरी सडक्यूं पर मी, रुणु छौ परदेश मा , और घास काटी की प्यारी छैला हो इन दो कलजयी गीतों को भी मुंबई मे एच एम वी कंपनी द्वारा रिकार्ड किया गया था। स्वर कोकिला रेखा धस्माणा उनियाल जी द्वारा गया गीत “दर्जी दिदा मीकै अंगडी सिलै दे” यह कालजयी रचना भी जीत सिंह नेगी जी की थी, जिसे उन्होने 1960 के दरमियान रचा था। ऋषि कैसेट कम्पनी द्वारा इस गीत को “हिलांस” नामक ऑडियो कम्पनी के माध्यम से बाजार में उतारा गया था जिसके संगीतकार वीरेंद्र नेगी हैं। श्रीमती रेखा धस्माना उनियाल के सुर में सजी यह कालजयी रचना आज भी मंचों पर खूब गाई व सुनी जाती है।
लोकगायक जीत सिंह नेगी के पिता सुल्तान सिंह नेगी जी आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे। पिता बचपन में नेगी जी को पढाई लिखाई के उदयेश्य से उनके साथ बर्मा ले गये इस कारण नेगी जी के बचपन के कुछ वर्ष बर्मा मे गुजरे ।अपनी जन्मभूमि से हजारों कीमी दूर एकांतवास के दौरान वे मन की व्यथा को खुदेड रचनाओं के द्वारा उकेरते रहे, अपनी जन्मभूमि की याद में जीवन के कैनवास पर रचनाऐं उकेरत उकेरते उन्हे कालांतर में समय एक ओजस्वी, उदीपमान और ओजपूर्ण गीतकार, नाटककार और रचनाकार बना गया ।
प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज, पर्वतीय नाट्य मंच मुम्बई, बद्री केदार सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान पौड़ी, पराज पौड़ी, गढ़ कला मंच पौड़ी सहित विभिन्न सांस्कृतिक व सामाजिक मंचों के अलावा उत्तराखंड फ़िल्म व आर्टिस्ट्स एसोसिएशन, उत्तराखंड फ़िल्म एसोसिएशन, सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, संस्कृति विभाग के उपाध्यक्ष व सुप्रसिद्ध हास्य कलाकार घनानंद, निदेेशक संस्कृति विभाग सुश्री बीना भट्ट, निदेशक रंगमंडल बलराज नेगी, गायिका श्रीमति रेखा धस्माना उनियाल, वीरा पत्रिका की संपादक श्रीमती कुसुम नौटियाल, संगीतकार राजेन्द्र चौहान व सुप्रसिद्ध लोकगायिका कल्पना चौहान, सुप्रसिद्ध गायक व निर्देशक अनिल बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल ‘गणी’ सहित सैकड़ों संगीत प्रेमियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
ज्ञात हो कि विगत 2 फरवरी 2019 को सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेन्द्र चौहान के आवाहन पर प्रेस क्लब देहरादून में लोकगायक जीत सिंह नेगी का जन्मदिवस उत्तराखण्ड के लोककलाकारों व रंगकर्मियों द्वारा बहुत धूमधाम के साथ मनाया गया था। वे पिछले 30-35 वर्ष से देहरादून के धर्मपुर में रह रहे थे ।