जन्मजेय ने दान दिये केदारघटी के 1001गॉव बोलांदा केदार को…!
(मनोज इष्टवाल)
बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि मधु गंगा और क्षीर गंगा (खीरों ) के मध्य में बसी केदार घाटी के 1001 गॉव अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु,अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित व परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने अपने झड़ दादा धर्मराज युधिष्ठर के 99वें श्राद्ध पर बसन्त संवत अमावस्या तिथि व् सोमवार को आज से लगभग 5000 बर्ष पूर्व तत्कालीन बोलांदा केदार रावल श्री श्री श्री 1008 भीमाशंकरलिंग को पिंडदान के समय दान स्वरुप प्रदान किये हैं जिसका ताम्रपत्र आज भी वर्तमान रावल श्री श्री श्री 1008 बोलांदा केदार भीमाशंकरलिंग के पास मौजूद है।
यह भी अजब आश्चर्य की बात है क़ि पांच हजार बर्ष पूर्व भी भीमाशंकरलिंग रावल थे और आज उन्ही के नाम से नए रावल भी भीमशंकर लिंग हैं।
ऊखीमठ ओंकारेश्वर से प्राप्त जानकारी के अनुसार यूँ तो रावल कई हजार सालों से दक्षिण भारतीय ही हैं जिनकी उत्पत्ति योनि की जगह लिंग से बताई जाती है लेकिन मात्र 324 रावल का इतिहास ही रावलों के पास सुरक्षित है जिनमे श्री श्री श्री भुकुण्डलिंग सबसे पुराने बताये जाते है इस से भी अगर रावल का काल हम पता करते हैं तो यह लगभग 4860 बर्ष का इतिहास प्राप्त होता है अतः हमें यह मान लेना चाहिए क़ि जन्मजेय द्वारा दान में दिये गए केदार घाटी के 1001 गॉव इससे भी पूर्व के हैं क्योंकि एक रावल का कार्यकाल मात्र 15 साल होता है ।
ऊखीमठ के वर्तमान रावल जिन्हे बोलांदा केदार कहा जाता है से जब यह जानकारी लेनी चाही क़ि आम व्यक्ति सिर्फ एक बार श्री लगाता है आपके आगे तीन बार श्री श्री श्री 1008 क्यों लिखा जाता है तब उन्हीने जानकारी दी क़ि आम आदमी की तुलना में उनकी योगिक क्रियाएं व अन्य समस्त क्षमताएं 36 गुना अधिक बताई जाती हैं गुरु 108 से शुरू होते हैं और 1008 तक पहुंचने के लिए पूरा जीवन खप जाता है। इसलिए हमारे आगे तीन बार श्री का प्रयोग होता है।
जब मेरे द्वारा प्रश्न किया गया कि बोलांदा केदार क्यों कहा जाता है ? उन्होने जबाब दिया क्योंकि केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिए 6 माह बन्द होने के बाद वे ओंकारेश्वर वैराग्य धाम ऊखीमठ में अपने पांचों रूपों जिन्हें पंच केदार कहते हैं के साथ विराजमान रहते हैं ऐसे में उन्हें उनके शीश पर शोभित मुकुट 6 माह शीत काल अपने सिर रखना होता है व उस दौरान जो भी उनके मुखारबिन्द होते हैं वे केदारनाथ के मुंह से निकले शब्द समझे जाते हैं ठीक उसी तरह जैसे राजा को बोलांदा बद्री कहकर उनकी राजज्ञा का पालन किया जाता है । वे अपने कंठ में लिंग धारण करते हैं जो हृद्यपटल पर सुशोभित होता है उसे उन्हें 24 घण्टे धारण करना होता है व उस लिंग की सुबह शाम दो समय पूजा होती है।
बोलांदा केदार के मुख से जब मैंने यह शब्द सुने तब लगा क़ि यूँही बोलांदा केदार नहीं बन जाते उसके लिए कितने नियम संयम तप और ज्ञान की आवश्यकता है। जय हो बोलांदा केदार की।