- (मनोज इष्टवाल)
क्या हम जानते हैं कि भारत बर्ष में पहला अखबार शुरू कब हुआ था…? तो आप कहोगे 1826 में उदंड मार्तण्ड के रूप में। 30 मई की तारीख भारतीय इतिहास में हिन्दी पत्रकारिता दिवस के तौर पर दर्ज हुई. यही वो तारीख थी जब ‘उदन्त मार्तण्ड’ नाम से पहला हिन्दी अखबार निकाला गया. इसे पहली बार 30 मई 1826 को साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर निकाला गया, जिसकी शुरुआत की कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने, जो इस अखबार के लिए प्रकाशक भी थे।
लेकिन नहीं…। उदंड मार्तण्ड सिर्फ पहला हिंदी अखबार कहा जा सकता है न कि भारत बर्ष में छपने वाला पहला अखबार । क्योंकि इससे करीब 44-45 बर्ष पूर्व वॉरेन हेस्टिंग्स और मिस्टर हिक्की द्वारा बंगाल गजट की शुरुआत 1780 में एक साप्ताहिक के रूप में की गई थी। जो आपसी झगड़े के कारण 1982 में बंद करना पड़ा। फिर मिस्टर मैटली डुआने ने इंडियन निकला, लेकिन गवर्नर जनरल कार्नवालिस व डुआने के बीच मन मुटाव होने के कारण डुआने को वापस यूरोप जाना पड़ा। फिर 1796 में मैकेनली का नाम नये न्यूज़ पेपर टेलीग्राफ से जुडा व वे उसके संपादक बने।
1799 में देश में प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों पर सेंसरशिप स्थापित कर दी गई। क्योंकि तब अंग्रेजों व टीपू सुल्तान के बीच युद्ध चरम पर था इसलिए यह निर्धारित किया गया कि संपादकों और मालिकों के नाम समाचार पत्रों में प्रकाशित किये जाने चाहिए। सरकार ने बंगाल किर्करू के संपादक चार्ल्स मैकलीन के विरुद्ध कार्रवाई की।
सन 1823 में प्रेस रेगुलेशन पास ।
भारत सरकार ने मुनरो की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और पंजीकरण के लिए मार्च 1823 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष नए नियम रखे। इन विनियमों में प्रावधान था कि सरकार से इस उद्देश्य के लिए लाइसेंस प्राप्त किए बिना कोई प्रेस स्थापित नहीं की जाएगी और न ही कोई कागज या किताब मुद्रित की जाएगी।
प्रेस रेगुलेशन एक्ट 1823 का राजा राम मोहन राय और द्वारका नाथ टैगोर जैसे लोगों द्वारा उन नियमों का विरोध किया, लेकिन उन्हें पंजीकृत किया गया और 15 अप्रैल, 1823 को लागू किया गया। जो नियम 1823 में बनाए गए थे वे 1835 तक लागू रहे जब सर चार्ल्स मेटकाफ ने उन्हें रद्द कर दिया।
सन 1857 का लाइसेंसिंग अधिनियम।
भारतीय प्रेस 1835 से 1857 तक स्वतंत्र रही। जब 1857 में विद्रोह हुआ, तो देश में प्रेस पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक पाया गया। तदनुसार, 1857 का अधिनियम XV प्रिंटिंग प्रेसों की स्थापना को विनियमित करने और कुछ मामलों में मुद्रित पुस्तकों और कागजों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। ये प्रतिबंध अस्थायी प्रकृति के थे और विद्रोह के तुरंत बाद हटा लिए गए थे।
1860 के दशक के दौरान बंगाल में बंगाली और अमृत बाज़ार पत्रिका और लाहौर में अख़बार-ए-आम साप्ताहिक के रूप में शुरू हुए।
1867 का अधिनियम लागू
1835 का अधिनियम XI जिसे सर चार्ल्स मेटकाफ द्वारा अधिनियमित किया गया था, को 1867 के अधिनियम XXV द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। नए अधिनियम का उद्देश्य प्रिंटिंग प्रेस और समाचार पत्रों को विनियमित करना और ब्रिटिश भारत में मुद्रित पुस्तकों की प्रतियों को संरक्षित करना था। और उन किताबों पर प्रतिबंध भी। 1867 का अधिनियम अभी भी लागू है, हालाँकि 1893 और 1940 में इसमें कुछ संशोधन किये गये थे।
वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, 1878 लागू
लॉर्ड लिटन एक महान साम्राज्यवादी थे और उनकी अग्रगामी नीति द्वितीय अफगान युद्ध की त्रासदी के लिए जिम्मेदार थी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारतीयों द्वारा उनकी सर्वत्र निंदा की गई। लॉर्ड लिटन ने भी पलटवार किया। 13 मार्च, 1878 को उन्होंने भारत के राज्य सचिव को एक टेलीग्राम भेजकर 1870 के आयरिश ज़बरदस्ती अधिनियम की तर्ज पर एक प्रेस कानून के लिए टेलीग्राम द्वारा उनकी सहमति का अनुरोध किया। उनका औचित्य था “देशी प्रेस की बढ़ती हिंसा,।” अगले दिन उन्हें उस बिल की मंजूरी मिल गयी. मंजूरी मिलते ही कुछ ही घंटों में यह बिल कानून बन गया। इस कानून को वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट के नाम से जाना जाता था, हालांकि इसका उपनाम “द गैगिंग एक्ट” रखा गया था।
- क्रमशः….