Wednesday, July 16, 2025
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मणिपुर का इतिहास भी कश्मीर से मिलता जुलता है? मणिपुर की नग्नता के पीछे कुकी समाज का ये है सच……।

मणिपुर का इतिहास भी कश्मीर से मिलता जुलता है? मणिपुर की नग्नता के पीछे कुकी समाज का ये है सच……।

(मनोज इष्टवाल/संपादकीय)

मणिपुर की नग्न तस्वीरें सोशल साइट पर साझा होते है पूरा देश सदमे के दौर से गुजरता दिखाई दिया। हर एक की जुबाँ पर यही था कि आखिर ऐसा दानवी व्यवहार कर कौन सकता है। क्या हमारा देश सचमुच मुग़ल व मंगोलकाल की यादें ताजा करवाता नजर आ रहा है। इसे मणिपुर व केंद्र सरकार की विफलता से जोड़कर भी देखा जा रहा है। वैसे सच भी है मणिपुर सरकार विफल ही नहीं लाचार भी है, क्योंकि उसकी सरकार में कुकी विधायक भी शामिल हैं और वह असंमंजस की स्थिति में है। यह स्थिति सरकार के लिए गरम दूध सी है।

यहाँ हम बंगाल की ममता सरकार व 370 हटने से पूर्व में कश्मीर को भूल जाते हैं! यहाँ भी तो आये दिन यही होता रहा है… फिर हमारा यह विधवा सा अलाप तब बंद क्यों था। आज सम्पूर्ण विपक्ष जिस तरह मणिपुर मुद्दे पर लोकसभा की घेराबंदी करता नजर आ रहा है… काश ऐसा ही पश्चिम बंगाल में आये दिन हो रहे क़त्ल व महिलाओं के साथ बलात्कार अत्याचार पर भी मुखर होता। काश…. पूर्व में कश्मीरियों के साथ हुए नग्न नाच पर भी एकजुट होता तो ऐसी समस्याएं पैदा होती ही नहीं।

कुकीज यानि मंगोल-रोहिंग्या विश्व की सबसे खानाबदोश व क्रूर जातियों में शुमार है। इन्हे एक देश भगाता है तो भारत जैसा देश इनकी महिलाओं व बच्चों की दशा देख तरस ख़ाकर इन्हे अपने देश में आज से नहीं बल्कि सदियों से शरण देता आया है, कुछ बर्ष ध्याड़ी मजदूरी करने के बाद ये अपने असली रूप में आ जाते हैं। विश्व के जिस देश में भी ये रहे इन्होने वहां अराजकता ही फैलाई। नार्थ ईस्ट व साउथ में ही नहीं अब यह नार्थ की ओर भी बढ़ चले हैं।

उत्तराखंड जैसा शांत प्रदेश भी अब कुकी व रोहिंग्याओं की शरण स्थली बनता जा रहा है। इन्हे बसासत देने वाले करप्ट भ्रष्ट नेता ही नहीं हैं बल्कि भ्रष्टाचार में संलिप्त वह समस्त सिस्टम है जो धन का गुलाम है व पैसे लेकर इनका आधार कार्ड व वोटर पहचान पत्र ड्राइविंग लाइसेंस तक इन्हे मुहैय्या करवाने में देर नहीं करता। कश्मीर, बंगाल, मणिपुर के बाद आने वाले समय में इनका लक्ष्य सॉफ्ट टारगेट के रूप में उत्तराखंड नजर आता दिखाई दे रहा है। यहाँ भी मणिपुर जैसी घटना घटित होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि भ्रष्टाचार जिस भी प्रदेश की रगों में फलने फूलने लगता है वह प्रदेश अपनी अस्मिता खोने में देर नहीं लगाता। उत्तराखंड के मैदानी जनपदों में जितनी भी लेबर आपको दिखाई देती है वे बांग्लादेशी कम व रोहिंग्या ज्यादा हैं, जो आने वाले कल के लिए हम सबके लिए वार्निंग बेल से कम नहीं हैं।

आइये जानते हैं कि मणिपुर में कुकी समुदाय के ये लोग हैं कौन जिन्होंने पूरा देश अशांत करके रखा हुआ है :-

मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नश्ल के लोग हैं और यहाँ आये दिन इन्ही की जाति बिरादरी के रोहिंग्याओं के लिए मणिपुर घूसपैठ की शरण स्थली बनी हुई है।

इतिहास के पन्ने पलटकर देखे जायें तो तब पता चलता है कि जब अपने ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया था तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाकर इनकी यहाँ बसासत की।

आपको आश्चर्य होगा कि मणिपुर में तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। इनके लिए कोर्ट भी ये खुद हैं और कचहरी भी खुद।

भले ही अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, लेकिन कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था, क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है। इन सस्ते मजदूरों की तलाश हर ठेकेदार करता है ताकि वह अपना घर भर सके लेकिन हम उसके दूरगामी परिणाम नहीं जानते।

मणिपुर में दो बेटियों के साथ हुए नग्नतापूर्ण व्यवहार को राष्ट्रीय मीडिया ने हाथों हाथ उठाया और केंद्र सरकार को घेरने के लिए पूरा विपक्ष और तो और सेकुलर समाज भी एक हो गया लेकिन क्या मणिपुर में यह घटनायें आम नहीं हैं? आगामी 2024 के लोकसभा से पूर्व चुनावी तैयारियों में जुटी राजनैतिक पार्टियां क्या मणिपुर में आये दिन घटती इन घटनाओं से अनभिज्ञ है? मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से वर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है। अब इनकी घूसपैठ को रोकने के लिए सरकार प्रयासरत है तो फिर हाल ही के दिनों में मणिपुर में कुकी समुदाय के 700 से 7000 घुसपैठ के मामले सामने कैसे आये? यह सरकारी तंत्र पर प्रश्न चिह्न अवश्य लगाता है।

ब्रिटेन ने अमेरिका में कुकीज समुदाय की घटनाओं को जोरशोर से उठाया तो हमें आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब मणिपुर के लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दों की वकालत एशिया-यूरोप सब एक सुर में करने लगते हैं क्योंकि ईसाई समुदाय के लिए यह एक बड़ा खेला जैसा ही है। आश्चर्य तो तब होता है जब हिन्दू सनातन परम्पराओं में जन्मे कुछ कुत्सित चेहरे इनके ही झंडा बरदार बनकर देश को खोखला करने में इनका खुलेआम सहयोग समर्थन करते हैं व इनके समर्थन में धरना प्रदर्शन व जमकर नारेबाजी करते देश को अस्थिरता की ओर ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

अब बात करते हैं यहाँ के मूल निवासियों की अर्थात मैतई समुदाय की :-

मणिपुर राज्य में मैती, मैतेई या मैतई… ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग कहलाते हैं। ब्रिटिश काल से पूर्व में मणिपुर इन्ही का राज्य व इन्ही की सत्ता थी। इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब हालात यह हैं कि न राजा इनका और न ही राज्य ही इनका रहा। और तो और जमीन भी नहीं रही। मणिपुर की जनसंख्या में भले ही ये आधे से अधिक हैं, लेकिन पास इन्हीं ज़मीन का हिस्सा मात्र दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 30% है, पर जमीन 90% है। इसका सबसे बड़ा कारण हुआ कि जो कुकी यहाँ इन्ही के खेतोँ में काम करने आये थे, उन्हीं पर उन्होंने कब्ज़ा कर इन्हे बेदखल कर दिया… ठीक उसी तरह जैसे कश्मीर में हुआ।

मणिपुर की 90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुक़ियों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं… कितनी अच्छी बात है न? है न कितनी हास्यस्पद बात…..।

मणिपुर के मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। लेकिन कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है। क्योंकि यहाँ फ़िल्म पुष्पा के डायलॉग नहीं बल्कि वही हकीकत भी है। कुकी लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! “पुष्पा राज, झुकेगा नहीं साला।” और कोर्ट कचहरी व सरकार इनके आगे बेदम है। सिर्फ़ वर्तमान मणिपुर सरकार ही नहीं बल्कि इससे पूर्व की भी सरकारें। इस समय भाजपा सरकार मणिपुर में है तो सभी विपक्षियों व सो काल्ड सेकुलरों की पांत एक साथ हो-हल्ला काटना शुरू कर दी। आप मणिपुर में वहां की पूर्ववर्ती स्थिति को समझना चाहते हैं तो वहां के स्थानीय पुराने न्यूज़ पेपर्स आपकी आँखें खोल देंगे कि मणिपुर दूर से जितना खूबसूरत दिखाई देता है, उतना है भी कि नहीं?

मणिपुर के कुकी कहते हैं कि “अगर सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। तो हम कहते हैं, “तो क्या हुआ? हम को करते रहेंगे कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता ha।” कोर्ट ने कहता है- “मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।” तो हम कहते हैं- “कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। क्योंकि मणिपुर में हमीं कोर्ट हैं… और हमीं कचहरी भी।

सबसे बड़ी बात तो यह हैं कि इन लोगों के पास अत्याधुनिक हथियार आये कहाँ से होंगे जो आम सड़क पर ए के 47 से किसी भी बेटी की खोपड़ी खोल देते हैं। पास से जनता गुजरती रहती है लेकिन वह पलटकर भी नहीं देखती। जिसका सीधा सा अर्थ है कि यह यहाँ की दिनचर्या की आम सी घटना है। अर्थात मौत का खुला नाच….।

अब आते हैं भारत के पहाड़ी हिस्सों पर…। तो सच मानिये उत्तराखंड इनके लिए सॉफ्ट टारगेट है। हिमाचल का भू क़ानून सख्त व लीडरशिप सशख्त होने के कारण फिलहाल वहां घुसपैठ की सम्भावनाएं कम हैं लेकिन उत्तराखंड में अपनी जेबें भरने के लिए जिस तरह भू कानून को लचीला बनाया गया है अगर समय रहते हम सम्भले नहीं तो आने वाले दो दशक में उत्तराखंडियों की स्थिति भी मणिपुर के मैतई जैसी ही होगी। इसलिए सजग रहिए.

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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