Saturday, July 12, 2025
Homeउत्तराखंडइज दैट मिस्टर सिन्हा..। विधान सभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने लगाई सचिव...

इज दैट मिस्टर सिन्हा..। विधान सभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने लगाई सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास की जमकर क्लास।

इज दैट मिस्टर सिन्हा..। विधान सभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने लगाई सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास की जमकर क्लास।

(मनोज इष्टवाल)

इज दैट मिस्टर सिन्हा! मैं कोटद्वार विधायक ऋतु खंडूरी भूषण बोल रही हूँ…! आपने सुन ही लिया होगा कि मालन पर हमारा पुल टूट गया है! इन शब्दों में पीड़ा रोष व एक बेबसी साफ झलक रही थी। ये शब्द एक आम व्यक्ति के नहीं बल्कि सरकार में मुख्यमंत्री से भी ऊपर कहे जाने वाले पद “विधान सभा अध्यक्ष श्रीमति ऋतु भूषण खंडूरी के थे।”

सरकारी सिस्टम में अफसरशाही की मनमर्जी व राजनेताओं की बेबसी को तार-तार करती विधान सभा अध्यक्ष श्रीमति ऋतु खंडूरी भूषण की सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण डॉ रंजीत कुमार सिन्हा से टूटे मालिनी नदी पुल से हुई टेलीफोन वार्ता से साफ झलक रहा है कि एक क्षेत्रीय व सशख्त विधायक होने के बावजूद भी उन्हें इस सिस्टम ने कितना मजबूर कर दिया है।

उनकी टेलीफोन वार्ता में जहाँ हताशा-निराशा साफ झलक रही थी वहीं उनके उद्वेलित मन का आक्रोश बता रहा है कि निरंकुश अफसरशाही के अधीन रहकर क्षेत्रीय विकास कहाँ रोडे अटकाता है और आम जनता समझती है कि हमारे द्वारा चुना गया विधायक या मंत्री किसी काम का नहीं है। यह आम जन मानस को स्वयं भी समझना होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी की पुत्री क्षेत्रीय विधायक होने के साथ-साथ विधायकी के सर्वोच्च पद पर आसीन विधान सभा अध्यक्ष हैं। उनकी तेज तर्रार राजनीति व बेहद बेदाग़ छवि से सिर्फ़ उनके विधान सभा क्षेत्र कोटद्वार की जनता ही वाफ़िक नहीं है बल्कि सम्पूर्ण उत्तराखंड व केंद्र में उनकी ईमानदार छवि के बारे में सभी जानते हैं। इतना कुछ होने के बावजूद उन जैसी राजनेता जब सिस्टम के आगे इस तरह त्रस्त नजर आ रही हैं तो उन विधायकों की क्या स्थिति होगी जो ख़ास नहीं बेहद आम हैं। हाँ इतना जरूर दिखा कि ज्यादात्तर आम विधायक साल भर में इतना माल जरूर कमा लिए कि उन्होंने देहरादून में गाडी घोड़ा व मक़ान सिर्फ़ एक साल की विधायकी में कमा लिया है।

हिमालयन डिस्कवर ने विधान सभा चुनाव के दौरान भी तल्ख़ प्रश्न कर कोटद्वार विधान सभा से चुनाव लड़ रही श्रीमति ऋतु खंडूरी भूषण को खनन प्रिय प्रदेश के खनन माफियाओं व अधिकारियों की मिली भगत से मालिनी व सूखरो नदी के पुलों की जड़ तक हुए खनन खुदान पर इतला कर दिया था, जिसका उन्होंने त्वरित संज्ञान लेकर चुनावी दौर में ही मौका मुआयना कर अपनी डायरी में इसे प्राथमिकता की लिस्ट में शामिल कर लिया था।

हमारे लेख 02 फरवरी 2022 में हमने स्पष्ट शब्दों में चुनावी दौर में भाजपा से नाराज क्षेत्रीय जनता के दृष्टिकोण को साफ करते हुए स्पष्ट लिखा था कि “लोगों की नाराजगी ऋतु खण्डूरी से नहीं बल्कि सरकार की उस कार्यप्रणाली से ज्यादा दिखाई देती है जिसमें विकास के कार्यों के लिए करोड़ों की धनराशि की योजनाएं धरातल पर नहीं उतरी और बिनाश के डोजर ट्रक रात दिन सूखरो-मालन नदियों का सीना चीरती रही।

भाबर क्षेत्र की इन दो नदियों पर बने पुलों की बुनियादों तक जिस तरह अवैध खनन ने चुगान किया है उससे सवालिया निशान सिर्फ भाजपा पर ही नहीं मुख्य विपक्षी पार्टी पर भी जन मानस उठा रहा है कि जब यह नीति-नियम विरोधी कार्य हो रहे थे तब इन जनप्रतिनिधियों ने आंखें क्यों मूंदी हुई थी। क्या ये जनप्रतिनिधि भी 2022 की बरसात का इन्तजार कर रहे हैं ताकि जैसे पिछली बरसात में उत्तराखंड की राजधानी क्षेत्र रानीपोखरी का पुल सहित दो व पूरे उत्तराखंड में 32 छोटे बड़े पुल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े, जिनमें ज्यादात्तर अवैध खनन के कारण धाराशाही हुए। वही 27 पुलों की हालत जर्जर है।

अवैध खनन के चलते सूखरो व मालन नदी के पुलों की बुनियाद के नीचे तक चुगान इस बात का प्रतीक है कि इस क्षेत्र में राजनेताओं के कारिंदों की हनक के सामने सरकारी मशीनरी बुरी तरह फैल रही। वरना फारेस्ट क्षेत्र की नदियों में ऐसा अनियंत्रित खनन व चुगान की अनुमति एनजीटी कभी नहीं देता। और तो और खनन मानकों में पुल से 200 मीटर दूरी तक चुगान नहीं होता लेकिन यहां इस नियम की खुली धज्जियां उड़ाई गयी हैं।

कोटद्वार विधान सभा के जनमानस को भाजपा में ऐन समय पर प्रत्याक्षी बदलने का गुस्सा तो है ही, साथ ही गुस्सा इस बात का भी है कि हमारा विधायक चुनने में आखिर इतनी देरी क्यों…! लोग जहां यह कहते सुनाई दिये कि ऋतु खण्डूरी को यमकेश्वर से कोटद्वार लाने के पीछे आम जनमानस के साथ उनके व्यवहारिक सम्बन्ध सही न होना व आम जनमानस से दूरियां तथा तुनकमिजाजी है वहीं दूसरे पक्ष का यह भी मानना है कि जिस बेटी ने मायके से ही अपने आगे पीछे दाएं बाएं नौकरों की फौज देखी हो, जिसका पति भारत सरकार के स्वास्थ्य महकमें में मुख्य सचिव स्वास्थ्य हों तो भला उन्हें जनता के करीब आने का अवसर ही कहाँ मिला होगा लेकिन यमकेश्वर क्षेत्र से ऋतु खण्डूरी ऐसी पहली विधायक हैं जिन्होंने अपनी विधान सभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा योजनाएं अपने पहले ही कार्यकाल में दी हैं व अरबों की योजना देने के बावजूद भी उन पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है। और तो और उनकी कार्यप्रणाली शैली को देखते ही विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने उन्हें सभी महिला विधायकों के ऊपर तवज्जो देकर उन्हें पार्टी में महिला प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

बहरहाल ऋतु खंडूरी से जनता यह भी उम्मीद कर रही हैं कि अगर वह चुनाव जीतती हैं तो यह तय है कि वह अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अ. प्रा.) भुवन चंद खंडूरी से राजनीतिक विरासत में मिली राजनीतिक स्वच्छ छवि, विकास योजनाओं का दृष्टिकोण व सड़कों का विकास यहां दिखने को मिलेगा। आमजन की राय में ऋतु खंडूरी जनरल खंडूरी के जमाने में बने सूखरो व मालन नदी पर बने पुलों व नदी के खनन पर भी नजर रखे हुए है। उम्मीद है मालन नदी के घाव भरने में ऋतु खंडूरी के आगे आये विधान सभा तक पहुंचने की राह के रोड़े जल्दी ही मिटते नजर आएंगे।” 

बहरहाल एक बरसात के बाद इस दूसरी बरसात में अर्थात लेख लिखे जाने के एक साल पांच माह 11 दिन बाद वैदिक कालीन मालिनी नदी पर बनाया गया पुल धाराशाही हो गया जिस से विधान सभा कोटद्वार की आधी जनता मालिनी नदी पार और आधी आर हो गई।

ऐसा नहीं हुआ कि विधायक बनने के बाद श्रीमति ऋतु खंडूरी ने जनता से किये अपने वायदे भुला दिए हों। विधायक और फिर विधान सभा अध्यक्ष बनते ही उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर कोटद्वार क्षेत्र में बने पुलों जिनमें खोह, मालन व सुखरो नदी प्रमुख हैं, एसडीएम की अध्यक्षता में एक संयुक्त निरीक्षण टीम का गठन करवाकर 14-15 सितंबर से पूर्व सम्पूर्ण रिपोर्ट सौंपने को कहा। भाबर की खोह, सुखरो और मालन नदियों पर बने पुलों के पिलरों पर भू-कटाव पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए जिला प्रशासन के निर्देश पर लोनिवि, वन विभाग और खनन अधिकारियों ने एसडीएम की अध्यक्षता में संयुक्त निरीक्षण किया। आगामी 17 सितंबर 2022 तक भारी बारिश का अलर्ट जारी था। उस दौरान टीम ने तय किया कि बरसात थमते ही सभी पुलों के खतरे वाले स्थानों पर सुरक्षा के इंतजाम किए जाएंगे।

तब तत्कालीन एसडीएम प्रमोद कुमार की अगुवाई में लोनिवि दुगड्डा के अधिशासी अभियंता डीपी सिंह, वन विभाग की सहायक वन संरक्षक पूजा पयाल, तहसीलदार विकास अवस्थी, डिप्टी रेंजर अखिलेश रावत और खनन विभाग से जुड़े अधिकारियों मौके पर पहुंचे थे व उन्होंने खोह नदी का ग्रास्टनगंज और गूलर पुल, सुखरो नदी का नींबूचौड़बीईएल पुल और मालन नदी के पुल का मुआयना किया था । टीम ने भारी बारिश से पुलों को खतरे की आशंका की भी समीक्षा की। इस दौरान मालन नदी और सुखरो नदी पर बने पुलों की सुरक्षा के लिए नदियों में बहाव का फैलाव करने पर जोर दिया गया । सुखरो नदी के नींबूचौड़ वाले पुल पर सारा बहाव एक तरफा होने से ज्यादा खतरा देखा गया इसलिए यहां पर नदी में बने टीलों को समतल कर चैनलाइजेशन करने की संस्तुति की गई थी।

संयुक्त टीम ने ग्रास्टनगंज पुल के एक दो पिलरों को भी खतरे की जद में पाया। कमोवेश यही हाल गूलर पुल और मालन पुल का भी पाया गया। संयुक्त निरीक्षण में यह बात सामने आई कि अगली बरसात से पहले सभी पुलों पर मंडरा रहे भू-कटाव के खतरे को गंभीरता से लेते हुए सभी संभव सुरक्षा प्रंबध कर लिए जाएं। तत्कालीन अधिशासी अभियंता लोनिवि डीपी सिंह ने जानकारी देते हुए बताया था कि संयुक्त निरीक्षण की रिपोर्ट के आधार पर पुलों की सुरक्षा, नदी के बहाव में फैलाव व चैनलाइजेशन कराया जाएगा।

यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि जब यह रिपोर्ट विगत बर्ष ही सचिव लोक निर्माण विभाग, मुख्य सचिव व सचिव आपदा प्रबंधन तक पहुँच गई थी, तब त्वरित कार्यवाही क्यों नहीं की गई और ऐसे कौन से मानक आड़े आ रहे थे जिन पर विधान सभा अध्यक्ष श्रीमति ऋतु भूषण खंडूरी सचिव आपदा प्रबंधन से पूछ रही थी कि आखिर वो कौन से मानक थे जिन्हे आप ईई की रिपोर्ट के बावजूद व हमारे द्वारा कई बार पत्र लिखे जाने पर भी आपकी नजर में खरे नहीं उतरे। हम बार बार आपको इन पुलों के बारे में जानकारी दे रहे थे कि मेरे विधान सभा क्षेत्र के पुल अच्छी स्थिति में नहीं हैं लेकिन आप हर बार मानकों की बात करते रहे। अब कौन सी चीज मानक पर बैठेगी बताइये, खनन के अलावा यहाँ कुछ नहीं हुआ हैं। लेकिन क्या यहाँ जिम्मेदारी वन विभाग की नहीं है?

श्रीमति ऋतु भूषण खंडूरी टेलीफोन पर कहती सुनाई देती हैं कि कोटद्वार विधान सभा की आधी आबादी भाबर क्षेत्र में रहती है जो रोजमर्रा की जिंदगी में कोटद्वार आते जाते हैं ऐसे में आप इन हालतों का अंदाजा लगा सकते हैं। उन्होंने आपदा प्रबंधन सचिव सिन्हा को सख्त लहजे में स्पष्ट कहा कि “ब्लेम गेम आप और आपके अधिकारी जाने। यह आपका इशू है। मैं कल देहरादून पहुँच रही हूँ। और कल आपके साथ बैठती हूँ, सचिव लोक निर्माण विभाग व मुख्य सचिव से भी इस संबंध में बात होगी। मैं पिछले एक साल से इस पुल को लेकर लगी हुई थी अब मुझे इस के निर्माण पर बहुत तेज कार्यवाही चाहिए।

इस टेलीफोनिक वार्ता के बाद प्रशासन मानो सोये से उठा हो। सचिव लोक निर्माण विभाग सचिव पंकज पांडे ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि डीएम पौड़ी  के माध्यम  से उन्हें जानकारी मिली है कि मालन नदी पर बने  पुल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। इस पुल के गिरने के कारणों की फिलहाल जांच की जा रही है और जांच के बाद ही क्या कार्यवाही होनी है यह निर्णय लिया जाएगा।  जहां तक खनन की बात है तो खनन को एक साल पहले ही रोक दिया गया था व अवैध खनन पर लगातार कार्यवाही  हो रही है। फिलहाल इस पुल से आवाजाही के लिए एक वैकल्पिक पुल  (वैली ब्रिज)की व्यवस्था की जा रही है ताकि स्थानीय निवासियों को किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो। साथ ही आपदा विभाग को भी इस पुल को लेकर अवगत करवाया जा चुका है और शासन-प्रशासन पूरी तरह से इस समस्या के निवारण के लिए तत्पर है।

यहाँ मेरा व्यक्तिगत मानना है कि क्या मालन पुल की दशा के लिए सिर्फ़ एक या दो विभाग ही जिम्मेदार हैं? खनन करवाने के लिए क्या वन विभाग सचिव या हॉप से जबाब तलब नहीं होना चाहिए जिन्होंने इस नदी में चुगान की इतनी बड़ी परमिशन दे दी कि डोजरों ने पुल के पिल्लरों के नीचे भी चुगान कर डाला। क्या इस पुल के निर्माणक इंजिनियर इसे डिज़ाइन करते यह भूल गये थे कि मैदानी भू-भाग पर नदी में बनने वाले पुल नदी के किनारों से नहीं बल्कि नदी के दोनों छोरों से कम से कम 30 से 50 मीटर दूरी से डिज़ाइन किये जाने चाहिए। क्या उन्हें गंगा नदी पर बने पुलों का संज्ञान नहीं लेना चाहिये था। इस से भी बड़ी बात यह है कि जब उत्तराखंड सरकार के पासवर्ड वाडिया इंस्टिट्यूट, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया जैसे तीन बड़े भूगर्वीय इंस्टिट्यूट व उनके साइंटिस्ट मौजूद हैं फिर ऐसा क्यों होता है कि पुलों का निर्माण व उनकी मैपिंग की जिम्मेदारी निजी संस्थानों के हाथों सौंपी जाती है जिन्हें भू व भू विज्ञान व भू गर्व से संबंधित कोई ठोस जानकारी नहीं होती। हो सकता है मेरे तर्क सही न हों लेकिन ऐसे कई पुल नदियों पर बने हैं जो ब्रिटिश काल से लेकर अब तक कितनी ही आपदाओं के बावजूद भी टस से मस नहीं हुए हैं और उनमें ऐसे ही तकनीकी बिंदुओं को ध्यान में रखा गया था.

ज्ञात हो कि इस पुल की नींव का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी ने 2007 में किया था जबकि तीन बर्ष बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने इस पुल का लोकार्पण किया था।

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES