●नोडल अफसर दीपक मेहता बोले- कोविड मौत के परिजन करें सूचित। हम समझते हैं आम जन की पीड़ा।
●एसडीआरएफ ने श्रीनगर, सतपुली व कोटद्वार में खोली हैं शव-दहन यूनिट।
पौड़ी गढ़वाल (हि. डिस्कवर)।
कोरोना संक्रमण काल में श्रीनगर शहर की कुछ डरावनी तस्वीरें सामने आने से लोगों में भय और रोष दोनों फैलने लगा था लेकिन पुलिस महानिरीक्षक (एसडीआरएफ) ने स्थिति भांपते ही इस तरह के मामलों से निबटने के लिए हर जिले में एसडीआरएफ की शव-दहन टीम गठित कर उसके नोडल अफसर गठित कर जन मानस की भावनाओं को धैर्यवान बनाये रखने का अहम योगदान निभाया।
ज्ञात हो कि संजय गुंज्याल नाम प्रदेश के जनमानस के बीच बेहद लोकप्रिय आज से नहीं बल्कि 2013 में केदारनाथ आपदा हो या 2014 की नन्दा राज जात यात्रा को सफलतापूर्वक संचालित करने में एसडीआरएफ की भूमिका। केदारनाथ आपदा में पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंजियाल तब विश्व मीडिया में चर्चित हुए जब वे वहां बिखरी लाशों को इकट्ठा कर उनकी चिताएं जलाते दिखाई दिए। वैसे तो सर्वप्रथम वे चर्चा में तब आये जब टोंस नदी की बाढ़ में डूबते लोगों को बचाने वे तुरंत नदी में कूद पड़े थे। उस समय वे एसपी पुलिस हुआ करते थे। हाल ही में सम्पन्न कुम्भ में एसडीआरएफ की भूमिका की लोगो ने जी खोलकर प्रशंसा की थी।
अब जबकि पूरा प्रदेश कोविड संक्रमण से जूझ रहा है और लोग कोरोना से मरने वाले अपने लोगों की डेड बॉडी लेने तक नहीं जा रहे हैं ऐसे में अपनी जान की परवाह किये बिना एसडीआरएफ के जवान कोविड मौतों की स्वयं चिताएं जलाकर उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
श्रीनगर क्षेत्र में फैली अफवाहों को देखते हुए हमने एसडीआरएफ के पौड़ी जिले के नोडल अफसर दीपक मेहता से जानकारी जुटाई तो उन्होंने इसका खुलासा करते हुए कहा कि ऐसी जानकारी उन तक भी पहुंची कि अल्केश्वर घाट जहां अक्सर दाह संस्कार चलता था वहां लोग अदजली लाशें छोड़ दे रहे हैं। जिनको कुत्ते नोंचकर या कोई अंग उठाकर शहर की ओर ला जा रहे हैं, जिससे लोगों में भय पैदा हो रहा है। इसकी हमने पड़ताल करनी शुरू की व जनपद में जितने भी कोविड केंद्र बनाए गए हैं सबसे जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि ऐसा हो सकता है कि इसलिए हो रहा हो कि कोविड मौत के परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए मिल रही पीपी किट को पहनने के बाद लोग उसकी गर्मी बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं व उस से चक्कर खाकर गिर रहे हैं ऐसे में वे भयभीत होकर जलती लाश छोड़कर घर लौट रहे हैं। हो सकता है तभी ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
एसडीआरएफ के नोडल अफसर बताते हैं कि हमने इन घटनाओं को गम्भीरता से लिये। चाहे ये अपवाद ही क्यों न हों! हमने कॉविड मौतों के अंतिम संस्कार के लिए ‘एनआईटी घाट’ का चयन कर वहां चिताएं जलाना शुरू किया है व कॉविड सेंटर्स को बता दिया है कि जो भी कॉविड मौत का परिजन विधिवत चिता जलाने में असमर्थ है वह हमें सूचना दें।
दीपक मेहता के अनुसार अंतिम दाह संस्कार करने में इस समय उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि ₹700 प्रति कुंतल लकड़ी की कीमत है वो भी ज्यादात्तर कच्ची लकड़ी मिल रही है जिससे चिता आग पकड़ने में बहुत समय ले रही है व ऐसे में डीजल पेट्रोल भी मिलना मुश्किल हो रहा है। एक चिता पूरी तरह जलने में कम से कम 4 घण्टे का समय लग रहा है। ऐसे में अगर हमारी बेसिक ट्रेनिंग न हो तो व्यक्ति पीपी किट पहने पहने चक्कर खाकर गिर जाए। उन्होंने बताया कि अभी तक उनकी टीम ऐसी लगभग 8 से 10 लाशें जला चुके हैं, जिनकी लाश लेने उनके घरवाले तक नहीं आये। उन्होंने अनुरोध किया है कि पूरे जनपद के किसी भी परिवार में अगर ऐसी घटना घटित होती है तो वे उन्हें सूचित करें या सम्बंधित अस्पताल को कहें कि एसडीआरएफ टीम को इतला कर दीजिए। हम उनके लिए उपलब्ध हैं क्योंकि हमारा पहला लक्ष्य मानवता की सेवा करना ही है।
पौड़ी जनपद में अगर हमारे आस-पास ऐसा कुछ घटित होता हुआ आपको भी दिखे तो कृपया एसडीआरएफ के श्रीनगर, सतपुली व कोटद्वार यूनिट को जानकारी दें ताकि आपकी उपलब्धता में ये जवान पूर्ण रूप से अंतिम संस्कार कर सकें।