(अजय रावत ‘अजेय’)
चर्चाओं पर यकीन करें तो वीर बाला तीलू रौतेली के क्षेत्र में इस मर्तबा उत्तराखंड की सियासत का सबसे रोमांचक मुकाबला हो सकता है। दोनों महारथी एक दूसरे से कम नहीं हैं। महाराज क्षेत्र के स्थानीय योद्धा होंगे, उनके साथ क्षेत्र की लंबी सियासी विरासत साथ होगी तो वहीं हरक भी इस विस् क्षेत्र के परगना चौंदकोट का वर्ष 2002 और 2007 में बतौर लैंसडौन का विधायक रहते हुए प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वहीं हरक इस विस् के आंशिक क्षेत्र पर 1991 व 1993 में बतौर विधायक पौड़ी (उत्तर प्रदेश) के दौर में भी नेतृत्व कर चुके हैं।
महाराज के साथ फिर एक बार स्थानीय होने का ऐडवांटेज़ अवश्य होगा लेकिन एन्टीइनकमबेंसी का दंश भी उन्हें ही झेलना होगा, हां स्थानीय भाजपा संगठन में तकरीबन उनके खिलाफ कोई बड़ा विरोध नहीं है। यदि हरक यहां से मैदान में होते हैं तो स्थानीय कांग्रेसी क्षत्रपों में से एक राजेश कंडारी शायद पूरी तन्मयता से उनके साथ होंगे, इसका लाभ उन्हें मिलना तय है। हालांकि राजपाल बिष्ट व केशर सिंह, जो लंबे समय से यहां सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं, उनका उन्हें समर्थन मिलेगा, यह संदिग्द्ध है। कवींद्र इष्टवाल, सुरेंद्र सूरी भाई जैसे बड़े नामों को साधना भी हरक के लिए चुनौती होगा। ऐसे में कांग्रेस से छिटक कर कुछ वोट आप के दिग्मोहन नेगी का रुख करने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बहरहाल सबसे बड़ी सियासी बात यह है कि भले ही आज हरक हरदा के दल में हों लेकिन हरदा के सियासी दुश्मनों की फेहरिस्त में अभी भी हरक का नाम शुमार होगा। ऐसे में यदि हरक बनाम सतपाल होता है तो मानस खण्ड के घघाड़ नेता के केदार खण्ड के दो सियासी दुश्मनों में से एक का सियासी शहीद होना तय है।