(मनोज इष्टवाल)
यह यकीनन बदलते युग का वह परिवेश है जिसमें कई नऐपन में सुखद संस्कृति का समागम देखने को मिलता है तो कभी बहुत सी बेटियां ऐसा आत्मघाती कदम भी उठा लेती हैं जिससे माँ बाप रिश्तेदार अपने समाज के समक्ष आँख उठाकर नहीं चल पाते। और तो और कई बार यही बेटियां साल दो साल में सोशल साइट पर अपना दुखड़ा रोती दिखाई देती हैं क्योंकि हिन्दू सनातन संस्कृति में पली बढ़ी हुई ये बेटियां जब दूसरी संस्कृति को अंगीकार करती हैं तो उन्हें इस बात की जरा भी चिन्ता नहीं होती कि वह करने क्या जा रही हैं। ऐसी बेटियां अपने को आत्मस्वावलम्बी तो घोषित करती हैं लेकिन उन परम्पराओं में अपने को नहीं ढाल पाती। जिसमें खान-पान, पहनावा व अन्य कई रूढ़िवादिता होती हैं।
पूर्व में अगर बेटियां दूसरी हिन्दू सनातन संस्कृति में जाकर शादी करती थी तो न उन्हें परिवार अपनाता था और न समाज। वहीं राजघराने के रिश्ते किसी भी सनातन हिन्दू संस्कृति में देश या विदेश के किसी भी हिस्से में हो जाया करते थे लेकिन ऐसे अपवाद कम से कम उत्तराखंडी शासकों या बड़े घरानों में कम दिखने को मिले कि उन्होंने तलवारों के भय से या तलवारों का भय दिखाकर किसी अन्य धर्म में वैवाहिक सम्बन्ध बनाये हैं। कुछ ही अपवाद ऐसे हैं जिन्होंने ऐसे कदम उठाए लेकिन चाहे वे कितने भी बड़े घरों के क्यों न रहे हों हिन्दू सनातन संस्कृति ने उन्हें कभी अंतर्मन से स्वीकार नहीं किया।
गोवा की हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति व उत्तराखंड की हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति का यह मिलान अद्भुत है। अब अलग अलग परम्पराओं और संस्कृतियों का यह मिलान यकीनन उत्सुकता तो पैदा करेगा ही। पढिये योगेश धस्माना का लिखते हैं इस सब पर:-
◆ पौड़ी गांव में पहुंची गोवा की बारात ।
(डॉ योगेश धस्माना)
नगर के प्रसिद्ध स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह नेगी पटवारी की प्रपौत्री अंकिता के विवाह पर गोवा के शहर सांगक्लिम से सिद्धांत की बारात जब पौड़ी गांव पहुंची तो कौतुहल और जिज्ञासा से लोग मिलन को समरसता और सांझी संस्कृति के संबंध को टकटकी लगाकर देखते रहे। इस बारात की एक विशिष्टता यह भी थी कि गोवा के दुल्हे को लड़की पक्ष की महिलाओं के द्वारा हल्दी हाथ से लेकर मंगल स्नान तक स्वयं किया गया। क्योंकि विवाह में दूल्हे के पिता और माता श्रीमती नूतन और नरेश आमोणकर और दुल्हे का दोस्त सावंत ही बाराती थे ।
तब लड़की पक्ष से उसकी चाची, भाभियों और रिश्तेदारों द्वारा स्वयं बारात में पारंपरिक लोक नृत्यों के साथ अगवानी की गयी। अनुपम और अनूठी, दो संस्कृतियों का यह मिलन बहुत ही मनोहर और रोमांचक था। लड़की के पिता पद्मेंद्र नेगी और माता विद्या द्वारा अपनी कन्या को दुल्हे के साथ गोवा के लिए बहुत भावुक वातावरण में विदा किया गया।
वरिष्ठ पत्रकार वेद उनियाल इस विवाह पर अपना उद्गगार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि पौड़ी के इस विवाह की जानकारी भाई डा योगेश धस्मानाजी ने दी है।आज गोवा की स्थापना के साठ साल पूरे हुए हैं। गोवा ने 400 साल तक पुर्तगालियों की दासता सही है। जुल्म सहे हैं। क्रांति बलिदान का एक बड़ा इतिहास है गोवा का। भारतीय सशस्त्र सेना ने 38 घंटे के युद्ध में गोवा को आजाद कराया था। शहीदों की यादों के साथ है गोवा। गोवा के नृत्य गोवा के खानपान और उन्मुक्त संस्कृति अपने आप बहुत कुछ कहती है।
कितना सुंदर कितना मनोरम है गोवा । गोवा को शुभकामनाएं। इसी गोवा में संगीतकार प्यारेलाल जी को वायलेन सिखाने वाले गुरु गोसांलविस का भी आवास रहा है। इसी गोवा की जेल में राम मनोहर लोहिया ने भी 19 माह बिताए। संघ ने भी गोवा मुक्ति के लिए काम किया है। गोवा के लिए आजाद गोमांतक के संघर्ष को याद किया जाता है। गोवा की आजादी की लड़ाई पर आईएस जोहर ने फिल्म बनाई थी जोहर महमूद इन गोवा । इसी गोवा से चलकर बारात उस पौड़ी गांव में आई है जहां से नरेंद्र सिंह नेगीजी के गीत भी गूंजे है। वर वधु को शुभकामना। गोवा की तरह ही पौड़ी भी बहुत सुंदर है। झूमते पेड़ो का संगीत है। गोवा सागर को छूता है तो पौड़ी शुभ्र हिमालय के दर्शन कराता है।