(मनोज इष्टवाल)
क्या मुस्लिम धर्म में या कुरआन की आयतों में कहीं ऐसा वर्णन लिखा होता है कि आपको जुम्मे की नमाज अता करने के बाद ऐसा उन्मादी प्रदर्शन करना होगा जिसका कोई सिर होता है न पैर..! क्या शासन प्रशासन किसी ऐसी लचर व्यवस्था का अंग कहलाता है कि उनकी आंखों के सामने ऐसा सब होता रहे व वे सुरक्षा व्यवस्था के तौर पर मूक दर्शक की भूमिका निभाएं।
कश्मीर, कानपुर व अब हरिद्वार के उपनगर ज्वालापुर की यह घटना उत्तराखंड में ऐसी दस्तक कही जा सकती है जो आने वाले समय के लिए हिन्दू मुस्लिम भाई चारे में नफरत के बीज बो सकती है। क्या किसी की गिरफ्तारी को लेकर बिना प्रशासन की मंजूरी के या फिर मंजूरी के साथ उत्तराखंड सरकार ऐसे प्रदर्शन को स्वीकृति दे सकती है जहां धार्मिक उन्माद के नारे लगाकर किसी एक की गिरफ्तारी की मांग की जा सके।
जुम्मे की नमाज के बाद ज्वालापुर जटवार पुल पर जमा हुए इस हुजूम ने नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी का ज्ञापन कुछ इन नारों के साथ अधिकारियों को सौंपा। “गुस्ताखे-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा…सर तन से जुदा ।” या फिर “गुस्ताखे-मुहम्मद तेरी अब खैर नहीं है। खैर नहीं..खैर नहीं ..खैर नहीं है।”
हर बात नबी और मुहम्मद से जोदकर इस तरह के धार्मिक उन्माद से भरे नारों के बीच सड़क जाम करना आखिर गंगा व जमुना के मुल्क में कौन सी गंगा जमुनी तहजीब का परिचायक है।
हरिद्वार की उपनगरी में चार धाम यात्रा के दौरान रेडिकल इस्लाम की विचारधारा को आगे बढाते हुए जो कल जुम्मे की नमाज के बाद सड़क जाम करके धार्मिक आंदोलन किया गया व डर का माहौल बनाने की कोशिश की गई वो भी पुलिस थाने से मात्र 100 मीटर की दूरी पर वो वाकई भयभीत करने बाला था हरिद्वार जैसे शांत धार्मिक नगरी में आखिर ये सब करने की इजाजत किसने दी जबकि चारधाम यात्रा चरम पे है !
जम्मू कश्मीर से लेके कानपुर तक और अब हरिद्वार में भी यही साजिश रची जा रही है, जिससे समाज मे भय व्याप्त हो, उत्तर प्रदेश जैसी कार्यवाही की अपेक्षा हिन्दू संगठनों द्वारा उत्तराखंड में भी की जाएगी या नहीं! देखते है इसके लिए इंतज़ार कितना करना होगा!
हिन्दू धर्म गुरुओ की नगरी हरिद्वार के लोगों ने स्वतन्त्र भारत में ऐसा धार्मिक प्रदर्शन पहली बार देखा है। आवेश कुरैशी नामक एक नवयुवक की फेसबुक प्रोफाइल में वीडियो शेयर करते हुए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है उससे तो यही लगता है कि हमारे धर्म गुरु हमें धर्म की अफीम चट्टा कर नौजवान पीढ़ी के समक्ष एक ऐसा माहौल तैयार कर रही है कि आने वाले समय में वह धर्म का अफीमची बन कोई भी गुस्ताखी कर ले।
आवेश कुरैशी लिखते हैं कि “इतनी धूप में भी आज ज्वालापुर जटवारा पुल पर नूपुर शर्मा को रेस्ट करने के लिए अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा नबी के लिए हम अपनी जान देने के लिए तैयार है नबी की शान में गुस्ताखी नहीं सहेंगे अगर यह जल्दी रेस्ट नहीं होती इससे भी बड़ा आंदोलन होगा इंशाल्लाह🇸🇦🇮🇳”
सब तो ठीक है लेकिन ऐसे उग्र शब्दों के साथ तिरंगे से आगे ये हरा झंडा किसका खड़ा कर आखिर यह अबोध सा दिखने वाला बच्चा क्या साबित करना चाहता है। लगता है अब यह समय गुप्तचर एजेंसियों को और सक्रिय करने का आ गया है क्योंकि हो न हो यह प्रदर्शन यह जांचने के लिए किया गया हो कि उत्तराखंड में और क्या क्या गुंजाइश हो सकती है। धरना प्रदर्शन करने का अधिकार उस हर भारतीय को है जो यहां का नागरिक है लेकिन अपनी बात रखवाने के लिए बीच में धर्म लाकर विवाद खड़ा करना क्या देश हित में है? यह बात हम सभी को सोचनी होगी। उग्रता के स्थान पर एक ज्ञापन देनेके लिए शांतिपूर्ण ढंग भी अपनाया जा सकता था। ऐसे प्रदर्शन की इजाजत इस दौरान देनी क्या जायज थी कब हिंदुओं की चारधाम यात्रा चल रही हो व उस यात्रा का यह भी एक वैकल्पिक मार्ग हो