फ्रांस : रेडिकल ह्यूमनिस्ट, ओपन, सैक्युलर एंड डेमोक्रेट बनाम उम्मा-खिलाफत, वामपंथी और लिब्रान्दू।
(सुरेंद्र आर्य जी की कलम से )
समूचा यूरोप सुलग रहा है और फ्रांस धधक रहा है। यह वही भूभाग है जिसने सदियो तक नस्लीय और मज़हबी खून-खराबे के साथ दो विश्वयुद्धों की विनाशलीला से उपजा विष पिया।
यही वह भूभाग है जिसने सत्ता प्रतिष्ठानों को विशुद्ध मानवतावादी और मज़हब निरपेक्ष गठन का दर्शन दिया और उस पर चल विकसित व सहृदय समाज तथा राष्ट्र का निर्माण किया।
यही वह स्थान है जहाँ कार्लमार्क्स ने मजहबो को गैर जरूरी बताते हुवे श्रम,पूंजी, सर प्लस वैल्यू, भूमि, के समाज और सत्ता से संबंधों को परिभाषित करते हुवे एक क्रांतिकारी दर्शन दिया।
यहां हुवे अचंभित कर देने वाले परिवर्तनों से प्रभावित प्रेरित और अनुकरणीय स्वीकारते हुवे दुनिया भर में अनेक देश उस रास्ते चल पड़े। अविकसित और विकासशील देशों के प्रबुद्ध मानस के लिए इन देशों में जाकर रहना, उनसे सीखने की प्रबल इच्छा हिलोरे मारने लगी।
परिपक्व लोकतंत्र के आधार, समता, स्वतंत्रता, समाधिकार और धर्मनिर्पेक्षिता के साथ वैज्ञानिक खोजो व तकनीकी कौशल से विकसित उद्योग तथा इंफ्रास्ट्रक्चर की नीवं पर खड़ी जन्नत को जी लेना लोगो का ख्वाब बन गयी।
इस चकाचौंध, उदार मानवतावादी दृष्टिकोण से शक्तिशाली हुआ लोकतंत्रीय यूरोप उन लोगों को जो पूंजी और पूंजीवाद से नफरत करते हैं। जो समरस समृद्ध पारिवारिक सहअस्तित्व के
मूल्यों से संरचित ग्रामीण/नगरीय व्यवस्था के विपरीत श्रमिक कम्यून पर खड़ी पोलिट्रेट की तानाशाही को पसंद करते हैं।
उन लोगों को जो डेमोक्रेसी को सबसे बड़ा शिर्क ( पाप ) मानते और दुनिया मे खिलाफत व उम्मा को जेहाद के दर्शन के साथ कायम करने को प्रयत्नशील है को उपलब्धियों से सज्जित, सौंदर्य से दमकती यूरोपीय जन्नत की हूरों (देशों ) को बर्दाश्त नही कर पा रहे हैं और इसे दोज़ख/जहन्नुम में बदल देना चाहते हैं।
आश्चर्य यह है कि बात-बात पर अभिव्यक्ति की आज़ादी और मज़हब पर स्वतंत्र रूप से जीने के अधिकार पर यकीन आवाज़ बुलंद करने वाले और नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान सजाने वाले एक भी ग्लोबल मसीहा ने इन घटनाओं पर चिंता व्यक्त नही की। निंदा नही की। सिर्फ रूस के राष्ट्रपति कॉमरेड वलदामिर पुतिन ने उन ताकतों जो वेगनर ग्रुप के एक्शन को देख उन्हें फ्रीडम फाइटर बता रहा थे फ्रांस के धधकने पर आड़े हाथ लेते हुवे कहा कि इसे वे शरणार्थियों द्वारा तख्त पलट प्रयास क्यो नही कहते ?
जलते सुलगते यूरोप को देख कर एक बात तो साफ समझ आती है कि अति उदार मानवतावाद, खुला और स्वतंत्र लोकतंत्र-आर्थिक व भौतिक उन्नति से प्राप्त शक्ति तथा पराक्रम जे सज्जित किसी देश व समाज की सुरक्षा की गारंटी नही हो सकती।
(संलग्न चित्र फ्रांस और स्विट्जरलैंड की हिंसा के हैं जो गूगल से साभार लिए गए)