गौमूत्र से जन्में हिन्दू धर्म अनुयायी ! इसीलिए गाय कहलाई गौमाता..! क्या इसलिए पसंद करते हैं मुस्लिम गौ मांस खाना! या ये बड़ा मिथक है..?
(मनोज इष्टवाल )
कृष्ण की द्वारिका कहें या फिर सम्पूर्ण बृजधाम मथुरा…! देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु श्री गिरिराज जी यानी गोवर्धन की परिक्रमा के लिए श्रद्धा-भक्ति भाव से गोवर्धन परिक्रमा के लिए वृंदावन आते हैं। परिक्रमा मार्ग में कई स्थान मिलेंगे, जिन में दान घाटी, मानसी गंगा, अभय चक्रेश्वर मंदिर, सुरभी कुंड, कुशुम सरोवर, पूंछरी का लौठा, जतीपुरा, राधा कुंड , गोविन्द कुंड, संकर्षण कुंड, और गौरीकुंड इन सब स्थानों के अलग-अलग महत्व है। वैसे तो गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा सात कोस यानि 21 किमी० की होती है। 84 कोस के ब्रज-मंडल में 250 सरोवर मौजूद हैं, जो राधा-कृष्ण की लीलाओं से सम्बंधित हैं परिक्रमा मार्ग के रास्ते में कई सरोवर में बने मंदिरों के अलौकिक दर्शन होंगे, जैसे सुरभि कुंड, संकर्षण कुंड, गौरीकुंड, गोविंद कुंड, राधा कुंड, उद्धव कुंड, ललिता कुंड आदि प्रमुख स्थान है। आप आप पूछेंगे कि इन सबका गौ-मूत्र या सनातन हिन्दू परम्पराओं से क्या सम्बन्ध और इस उल्लेख की आवश्यकता ही क्या है। वैसे तो तर्क बहुत हैं लेकिन आज मथुरा वृन्दावन की स्थिति देखेंगे तो हम पायेंगे कि विश्व भर के विभिन्न धर्म अनुयायी हिन्दू सनातन धर्म से नाता जोड़कर इस्कोन व अन्य माध्यमों से लगातार हिन्दू बनते जा रहे हैं। वे गौ को माता स्वरुप मानकर न सिर्फ उसका दुग्ध का पान कर रहे हैं अपितु गौ-मूत्र का विधिवत सेवन भी किअरते हैं। चलिए इस सब की तय तक जाकर देखते हैं और ढूंढते हैं कि क्या सचमुच गौमूत्र से जन्में हैं हिन्दू धर्म अनुयायी ?
अगर आप किसी बात की तह तक जाने का प्रयास करेंगे तो सम्भवत: आपके प्रयास सफल होंगे ऐसा मेरा मानना है! बहुत लम्बे समय तक में गाय को माता क्यों कहा जाता है? इस बिषय पर आवश्यक सामग्री तलाश रहा था आखिर मुनीश चन्द्र जोशी के एक लेख “ मानस-केदार के इतिहास में खस” नामक लेख हाथ लग ही गया जिसमें महाभारत (१.१६५.३६) में कुछ यों वर्णन मिलता है!:-
“मूत्रतश्चा सृजत कांश्चिच्छवरांश्चैव पार्श्वत:!
पौंड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान्!!”
(अर्थ- कितने ही शबर उसके मूत्र से प्रकट हुए! उसके पार्श्व भाग से पौण्ड्र, किरात, यवन, सिंहल, बर्बर और खसों की उत्पत्ति हुई!)
वहीँ एक अन्य उदाहरण के अनुसार ब्राह्मण ग्रन्थ, जैसे पुराण, महाभारत एवं अन्य में खसों का स्पष्ट उल्लेख है! बिष्णु पुराण दक्ष प्रजापति की खसा नाम्ना पुत्री का उल्लेख करता है, जिसका विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था एवं जिसके यक्ष एवं राक्षस नामक दो पुत्र थे! (खसातु तू यक्षरक्षांसि….बिष्णु पुराण २१.२५ व अटकिन्सन १८८४:२९९)
(गौमूत्र सेवन करते योगी आदित्यनाथ)
इसी प्रकार की एक परम्परा महाभारत (१.१६५.३५-३७ आदिपर्व: पांडे १९३७:५३३) में मिलता है जिसके अनुसार विश्वामित्र और वशिष्ठ के प्रथम टकराव में वशिष्ठ मुनि की पवित्र गाय नंदिनी को विश्वामित्र द्वारा बलात हरण करने पर उसके शरीर से उसके रक्षकों के रूप में खस, पह्लव, पारद, द्रविड़, यवन, किरात, पुलिंद, चीन, हूण आदि पैदा हुए!
मनुस्मृति (X.१०.४३.४४) खसों को पौण्ड्रक, ओड्र, शक, यवन, पारद, पह्लव, चीन आदि के साथ व्रात्य क्षत्रीय बताती है अत: यह आभास कराते हैं कि खस रूढ़िवादी ब्राह्मण समाज से बाहर के हैं!
वहीँ “सैदवली” नामक तांत्रिक ग्रन्थ में मुसलमान की उत्पत्ति ब्राह्मणी के पेट से हुई बताती हैं! जो स्पष्ट संकेत देता है कि कहीं यह पुत्र दक्ष कन्या खसा नाम्ना का ही तो नहीं!
“हिलकद में हिला विस्मिला रहमानी रहमतुल्ला है कमदरी, हे मेरे मेहरबान गैवि बादशाह, गुरु बादशाह अल्लाद्दीन-मुल्लाद्दीन खोरदीन, खबरद्दीन, एक लाख अस्सी हजार चार सौ चवालीस जवान को सलाम…!
एक सलाम दो सलाम तीन सलाम चार सलाम पांच सलाम…………..! आलम गढ़ की दाई अल्मा को सलाम! आँखों की अंधी कानों की बहरी उस दाई अल्मा को सलाम! तुम्हारी ब्रह्मपुरी को सलाम, जिस ब्रह्मपुरी में गौड़ ब्राह्मण रहते थे ! उन गौड़ ब्राह्मण को सलाम…..! बूढ़े गौड़ ब्राह्मण को सलाम, बूढी ब्राह्मणी को सलाम ! जो जन्म से औते कर्म से नाटे थे!….! वह बूढी ब्राह्मणी अस्सी बरस की थी मुंह में दांत नहीं पेट में आंत नहीं!
(सैद्वाली बहुत लम्बी है अत: अब इसके सन्दर्भ पर आकर बात करते हैं)
दोनों बमुश्किल जीवन यापन कर रहे थे एक दिन बूढी ब्राह्मणी ने गौड़ ब्राह्मण से अनुरोध किया कि हमारी शक सन्तान नहीं! हम मर भी जायेंगे तो कोई आग देने वाला नहीं चलो किसी घनघोर जंगल में चले जहाँ हमें जानवर अपना निवाला बना कम से कम अपना पेट तो भरें! घनघोर जंगल में खुदा ने उन्हें अमरफल दिया जिसे खाते ही ब्राह्मणी १५ साल व ब्राह्मण २५ साल का हो गया! ब्राह्मणी का गर्भ ठहर गया ! ब्राह्मण मायारूपी गाय के आले चाम में बैठकर भक्ति करता था! ब्राह्मणी के गर्भ को १० माह हो गए लेकिन बच्चा नहीं जना! ब्राह्मणी के मांस खाने की इच्छा होने लगी ! वह बोली हे –स्वामी मेरी मांस खाने की इच्छा है गौ मांस लाओ!
ब्राह्मण बोला- हे ब्राह्मणी हम गौड़ ब्राह्मण मांस नहीं खाते ! तुझे आज क्या हो गया है क्यों अपने कई बर्षों के ताप कर्म को भंग करना चाहती है! लेकिन ब्राह्मणी अपने को रोक नहीं पाई व ब्राह्मण ज्यों ही पूजा में बैठा उसने गाय की चाम काटकर खा ली! ब्राह्मण को जब ज्ञात हुआ तो वह बोला- हे ब्राह्मणी तूने हमारा धर्म नष्ट कर दिया इसलिए तेरे से बेरहमी व चुफकटा जात पैदा होगी ! इस तरह बाबा दरगाई पैदा हुआ जिसे गंगा स्नान के बहाने ब्राह्मण ने जमुना में बहा दिया जहाँ से वह दिल्ली पहुंचा! सम्पट बहते बहते दिल्ली पहुंचा वहां आपरुपी ताली खुली और स्वर्ग से अल्लाह की पुकार होने लगी! जहाँ से हलाल की छुर्री और कुरआन की पोथी छूटी! कुरआन कल्मा पढ़ते ही बाबा दरगाई व सम्पट मुसलमान धर्म पैदा हुआ!
सैद्वाली पूरा ग्रन्थ है जिसका मामूली सा उदाहरण मैंने इसलिए पेश किया ताकि हमें तथ्यों का ज्ञान हो सके! यों तो उद्योग पर्व (१५८.२०), द्रोंण पर्व (९७.३७), कर्ण पर्व (५१.१८), उत्तर वैदिक साहित्य (अग्रवाल २०१२ वि.सं.:७१), रघुवंश (४.७१-८०) सहित जाने कितने ग्रन्थों में इन जाति वर्णों की उत्पत्ति की चर्चा है जिसमें स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि ये सभी जातियां गौ पालक, गौ रक्षक गौ पूजक हुई हैं और इन्होने गौ के विभिन्न हिस्सों से जन्म लेकर उसके बढ़ते रक्तस्राव या मूत्र से उत्पन्न होकर हर काल में उसकी रक्षा की है! ऐसे में यह उदाहरण कि “बिष्णु पुराण दक्ष प्रजापति की खसा नाम्ना पुत्री का उल्लेख करता है, जिसका विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था एवं जिसके यक्ष एवं राक्षस नामक दो पुत्र थे! (खसातु तू यक्षरक्षांसि….बिष्णु पुराण २१.२५ व अटकिन्सन १८८४:२९९)” एक मिथक ही लगता है! क्योंकि गौ मांस खाने वाले को वैष्णव् समाज ने राक्षस माना है ऐसे सैद्वाली से जन्में मुसलमान को भी सम्भवतः राक्षस ही माना गया है जो कहीं न कहीं मिथक ही लगता है!
एक और उदाहरण छत्रपति शिवाजी का मिलता है! हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक के पश्चात् गो ब्राह्मण प्रतिपालक की उपाधि धारण करके स्वयं को गौरवान्वित किया था.
यह घटना शिवाजी महाराज के बाल्यकाल की है. अपने पिता के साथ वे बादशाह के यहाँ जा रहे थे. यह बात बीजापुर की है. शिवाजी महाराज बचपन से हिन्दू लोगों के प्रिय भी थे. जब पिता और पुत्र दोनों रास्ते से गुजर रहे थे तो दोनों देखते हैं कि रास्ते में एक कसाई गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था और वहां के बाजार के हिन्दू सर झुकाए बैठे हुए थे. मुग़ल शासन था, कौन क्या कर सकता था? उस समय शिवाजी की उम्र दस वर्ष की थी. कुछ इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि लोगों के मन में मुग़ल शासन का ऐसा डर था कि वह कुछ नहीं बोलते थे. हिन्दू मंदिर तोड़े जा रहे थे, गायों का क़त्ल हो रहा था और घर से बहू-बेटियां उठाई जा रही थीं. किन्तु कोई भी कुछ नहीं बोलता था.
जब बालक गौ भक्त शिवाजी यह देखते हैं कि कसाई गो-माता पर अत्याचार करते हुए, उनको काटने ले जा रहा है वह तभी अपनी तलवार निकालते हैं और पहले तो गाय की रस्सी काटकर उसे बंधन मुक्त करते हैं और वह कसाई कुछ कहता इससे पहले ही उसका सर धड़ से अलग कर देते हैं.
इतने सन्दर्भों के बाद भी जाने क्यों राहुल सांस्कृत्यान ने अपनी किताब में एक जगह लिख दिया कि हिन्दू पूर्व में गौ-मांस खाते थे! शायद राहुल सांस्कृत्यन कहीं न कहीं किसी ऐसी संगत की सोबत में पड़ गए थे जहाँ उनकी लेखनी प्रभावित हुई है! हिन्दू पहले से ही अपने धर्म कर्म की जानकारी रखने व उसका पालन करने वाला है ! भले ही उसने यह सब उदाहरण न भी सुने पढ़े हों लेकिन कालान्तर से गाय को माता मानकर पूजने वाले हिन्दू को गौ-मांस का भक्षक बताने वाले राहुल सांस्कृत्यन ने यह मात्र धर्म में भ्रम पैदा करने के लिए मिथक जोड़ दिया!
बहरहाल यह तो तय है कि हिन्दू धर्म में ब्याप्त गाय को माता का दर्जा देने वाले हम सभी हिन्दू धर्म अनुयायी ज्यादात्तर गौ मूत्र से पैदा हुए हैं जो ऋषि विश्वामित्र व ऋषि बशिष्ठ के आपसी ध्वन्ध के परिणति हैं! और यही कारण भी है कि गौ में तेंतीस कोटि देवी देवताओं का वास माना जाता है जिन्हें नष्ट करने का हर युग हर प्रारभ्ध में राक्षसों ने हर सम्भव प्रयास किया है!