Friday, October 18, 2024
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आख़िर ढूंढ ही लिया गोलज्यू देवता के पिता राजा झलराई का उक्कू राजमहल।

आख़िर ढूंढ ही लिया गोलज्यू देवता के पिता राजा झलराई का उक्कू राजमहल।

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 11 मार्च 2018)

उक्कु महल के अधिपति थे गोल्जू देवता के पूर्वज़ ! इसी महल में जन्मे थे गोल्जू देवता ! यहां उन्हे हुनैनाथ के नाम के नाम से जाना जाता है ।

 

उक्कू महल के खंडहरों के अवशेष।

 

आखिर आज वह कार्य पूरा करने में सफल हो ही गया जो 26 सितंबर 2015 को शुरू किया गया था। गोलज्यू देवता नाम से एक वृत्त चित्र निर्माण के लिए जीवन चन्द जोशी व कविता जोशी ने मुझे साइन किया था। तब मुझे लगा था कि मैं बमुश्किल एक माह में इस प्रोजेक्ट को नत्थी कर दूंगा लेकिन यह क्या जब गोल्ज्यू देवता पर शोध करना शुरू किया तो पर्त दर पर्त उसका विस्तार बढ़ता गया।

 

बिंता उदयपुर के गोल्ज्यू देवता के दरबार में जब डांगरिये द्वारा उक्कू महल की बात अपनी वार्ता में रखी गयी।  तब माथा ठनका और इस स्थान की तलाश करनी शुरू कर दी। आखिर लगभग दो बर्ष बाद मैं जब यह खोजने में सफल रहा कि उक्कू महल नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र के महाकाली आँचल के दार्चुला जिले में है।

आज यानि 11 मार्च 2018 को मैं अपने सहयोगी जीवनचन्द जोशी व दिनेश भट्ट के साथ लगभग 4.50 किमी. पैदल चलकर जौलजीवी झूला पुल पार कर हम उक्कू पहुंच ही गए, जहां महल के खंडहरों का विशाल आकार दिखाई दिया। यह बात समझ नहीं आई कि जाने क्यों नेपाल सरकार ने आज तक इस महल के भग्नावेशों पर अभी तक पुरातत्विक सर्वे नहीं करवाया।

 

 

 

कुछ तरासे हुए  इतने बड़े-बड़े तरासे गए शिलाखंड हैं कि इन्हें उठाने के लिए आज 50-50 आदमी लगाए जाएं तब भी यह इन पाषाण शिलाओं को हिला डुला नहीं सकता। ये पाषाण बिल्कुल उसी आकार के हैं जैसे आप जागेश्वर मंदिर समूह या फिर केदारनाथ मंदिर पर लगे पाषाण देखते हैं।

 

इन्हें बेहद खूबसूरती से तराशा गया है। इनमें ब्रह्म बिष्णु महेश की मूर्तियों में बिष्णु लक्ष्मी की मूर्तियां भी दिखाई दी। अभी यह समझ पाना बेहद कठिन है कि ये मूर्तियां किस काल खण्ड की हैं व इनका पुरातन इतिहास कितने हजार बर्ष पुराना होगा लेकिन यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये पाषाण लगभग 8वीं सदी या उसके आस-पास के हो सकते हैं।

 

नेपाल राष्ट्र की उक्कू ग.वि.स. महाकाली आँचल के बांए छोर में एक वैभवशाली गांव है, जिसके कई हैक्टेयर तक खेतों में खड़ी हरी फसल लहलहाती हुई यह प्रमाणिक करती है कि क्यों यहां कत्यूरी काल या उस से पूर्व के रजवार या पाल वंशजों ने यहीं से नेपाल से लेकर अफगानिस्तान तक राज किया।

 

उक्कू ग.वि.स. में पाल, माहरा, टम्टा, तिरुआ, सामन्त,चन्द और लौहार जातियां रहती हैं। गांव के प्रेम सिंह माहरा बताते हैं कि यह महल किस काल का है और कब बसाया गया इसके बारे में उनके पूर्वज भी ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं और न ही वह जानते हैं, लेकिन इतना जरूर है कि इसी महल के नाम से हमारे गांव का नाम उक्कू पड़ा है। उन्होंने बताया कि बचपन में उन्होंने इस महल को बुनियाद के रूप में खंडहर के रूप में देखा है लेकिन वर्तमान में यह ऐसा लगता है मानों इसके पाषाणों को इकट्ठा कर एक जगह रखने की किसी ने कवायद की हो।

 

वे कहते हैं कि अभी तक नेपाल सरकार के पुरातत्विक सर्वेक्षण विभाग ने इस पर कोई रुचि नहीं दिखाई इसलिए ग्रामीणों ने सोचा है कि वे इसे मलिकार्जुन का मंदिर बनाकर नया रूप देंगे। उनका मानना हैं कि इन तराशे गए पत्थरों व मूर्तियों को क्रमबद्ध तरीके से लगाना भी अपने आप में महाभारत है।

 

प्रेम सिंह माहरा के अनुसार इस महल में पहले कुछ शिलालेख थे जो पढ़ने में नहीं आते थे आज वे या तो कहीं नीचे दबे हैं या फिर उन्हें कोई उठा ले गया है।

 

उन्होंने बताया कि जैसे भारत में गोलज्यू देवता न्याय का देवता माना जाता है वैसे ही यहां हुनैनाथ न्याय के देवता हैं। उनका वाहन भी घोड़ा है और वे भी खड्गधारी हैं। उनका मंदिर फिलहाल उक्कू ग.वि.स से मात्र एक किमी आगे है जिसे सलेती गांव कहते हैं। वहां के विद्वान व्यक्ति भवानी दत्त इतिहासकार हैं व इस क्षेत्र की लोकसंस्कृति पर बेहद महत्वपूर्ण जानकारी भी रखते हैं।

 

वहीं यहां के बुजुर्गों का मानना है कि यह महल ढोकावीरसाटन भड्ड ने एक ही रात में पूरा किया। जिस पर भारत के अस्कोट क्षेत्र के चमलेख क्षेत्र से लाये गए पाषाणों से निर्मित किया गया है। ऐसा बताया जाता है कि पश्चिमी नेपाल के महाकाली आँचल के ज़िला दार्चुला के गौरी नदी व काली नदी जोकि जौलजीवि भारत में एक दूसरे से मिलती है के मध्य स्थित नेपाल राष्ट्र की उक्कु गा.वि.स. के महल में गोरिल देवता के दादा हलराई झलराई के वंशजों का किला है ज़िसके पाषानों में खुदी भाषा आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है।

वहीं उक्कू के राजवंशी सुरेंद्र पाल सिंह जो कि वर्तमान में नेपाल की राजधानी  काठमांडू में पुलिस महकमे में उच्च पद पर कार्यरत हैं बताते हैं कि यह महल उनके राजवंश का भग्नावशेष हो सकता है जिसमें उनके कुल देवता निवास करते थे। इस आधार को भी अगर सत्य माना जाय तब भी यही साबित होता है कि यह सूर्यवंशी राजाओं के आधिपत्य की निशानी है। 

मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि एक बर्ष के कठोर शोध के पश्चात मैं गोलजू देवता का जन्म स्थान ढूँढ़ने में सफल हुआ। आखिर लोक जागरों ने मुझे उस महल तक पहूँचा दिया।

कई बुद्धिजीवियों का मानना है कि पश्चिमी नेपाल के अधिकांश हिस्सों में गोलज्यू को हुनैनाथ या गौर भैरव माना जाता है। उक्कू गाविशा से कुछ किमी. दूरी पर हुनै गांव है। हुंनैनाथ के नाम से हुनै गाँव में इनका मन्दिर है ज़हां इनका हिन्डोला है। कहा जाता है कि झूला घाट के पास रतवाडा व नेपाल के ज़िला बैतड़ी के सेरा ग. वि. स. के पास आज भी उनका वह बक्सा काली नदी में दिखाई देता है ज़िसमें बन्द करके उन्हे बहाया गया था और वह वहीं अटक गया था। सेरा में महाकाली नदी के बीच में आज भी वह एक पत्थर के रूप में विराजमान है। लोकमान्यता है कि काली नदी में कितनी भी बाढ़ क्यूँ न आ जाये वह पत्थर डूबता नहीं है। भारत के तालेश्वर नामक स्थान के पास यह स्थान माना गया है।

नेपाल में हुंनै नाथ के नाम से प्रसिध गोलजू देवता धामी, अवस्थी इत्यादि कई जातियों के कुल देवता हैं। वहीं उक्कु महल के रजवार इन्हीं के वंशजो में गिने ज़ाते हैं। ज़िन्हे पाल भी कहा जाता है। “वहीँ नेपाल राष्ट्र निर्माण होने के बाद वहां के प्रथम प्रमाणिक राजा मानदेव हुए। जिन्होंने अपने नाम का सिक्का प्रचलित किया था। नेपाल नाम से पूर्व इसे गोरखा कहा जाता था जिसे गुरु गोरखनाथ के नाथ सम्प्रदाय द्वारा चलाया गया। कहा तो यह भी जाता है कि यहाँ के नाथ सम्प्रदाय द्वारा भारत के जोशीमठ में दीक्षा ली गयी थी।

बिंता-उदयपुर में स्थित गोलज्यू देवता के डांगरिये द्वारा गाई गई जागर ने आखिरकार मुझे दो साल के अथक शोध के बाद गोलज्यू देवता के दादा/पिता हलराई-झलराई के उस महल तक पहुंचा ही दिया जिसे आज तक कोई भी इतिहासकार ढूंढ नहीं पाया था। एक डांगरिया जब काली व धवली (गौरी) नदी के संगम के बामांग में बसे उक्कू-बाकू महल की चर्चा करता है और बिना देखे ही उसका वृतांत सुनाता है तो सचमुच अचंभित करने वाली बात है। मेरा अपने सभी प्रबुद्ध लेखकों व इतिहासकारों से अनुरोध है कि जहाँ ऐतिहासिक सन्दर्भों को खंगालने में दिक्कत महसूस हो रही हो, वहां अपने लोकसमाज में प्रचलित किंवदंतियों, पाँवड़ों, जागरों, भड़वार्ताओं का सन्दर्भ लें तो आप इतिहास के साथ-साथ ऐतिहासिक घटनाक्रम सजीव कर देंगे। न कि उन इतिहासकारों के बेतुके संदर्भो का सन्दर्भ लेकर लिखें जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ दूसरे की चारणी के लिए सम्पूर्ण इतिहास व ऐतिहासिक सन्दर्भों को छिपाकर हिन्दू सनातन परंपराओं को चोट पहुंचाकर यह साबित करने की कोशिश की है कि हमारी धर्म संस्कृति व परम्पराएं रूढ़िवादी हैं। उक्कू-बाकू पर अभी भी काफी रिसर्च की आवश्यकता है लेकिन इस पर तभी काम हो सकता है जब नेपाल सरकार अपनी वास्तुविदों, पाषाण कार्बन डेंटिंग की टीम के साथ साथ इतिहासकारों व शोधार्थियों को यहां भेजे। यकीन मानिए जौलजीवी भारत व उक्कू-बाकू महल विश्व भर के धर्म संस्कृति से सम्बंधित अनुयायियों व पर्यटकों को यहां न्यौता दे सकता है व इसे साहसिक व धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित कर नेपाल सरकार अच्छा राजस्व अर्जितकर सकती है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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