Monday, February 3, 2025
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मशहूर टीवी एंकर रोहित सरदाना की हृदय गति रुकने से मौत। सहयोगियों का रो-रोकर बुरा हाल।

(मनोज इष्टवाल)

उस हँसमुख व्यक्ति से मेरी तब मुलाकात हुई थी जब वह अपनी पत्रकारिता की पारी की शुरुआत करने हरियाणा से दिल्ली आया था। रोहित तब सिटी केबल में वहीं काम किया करते थे। मैं उस दिन ग्रीन पार्क में स्थित अपने कार्यालय “परख” से बाहर निकल रहा था। विनोद दुआ जी या संदीप चौधरी जी से मिलने की उन्होंने मुझसे गुजारिश की थी। शायद 2002 के आस पास की बात होगी या उससे पहले की। ढंग से याद नहीं। उनके कंधे में लटका एक पत्रकारों वाला बैग था, जैसे हर स्ट्रगल करते व्यक्ति के कंधे पर लटका होता है। मैंने रोहित को बताया था कि दोनों लोगों में से संदीप भी अक्सर दो बजे बाद ही मिलते हैं। हम बाहर आये परिचय हुआ कि वे हरियाणा से हैं और मैं गढ़वाल से। हमने नम्बर साझा किए जरूर लेकिन कभी कॉल नहीं कर पाए।

यह व्यक्ति अचानक 2004 के बाद सहारा समय के असिस्टेंट प्रोड्यूसर के रूप में मुझे दिखाई दिये तो लगा हो न हो, विनोद दुआ जी के सहारा न्यूज़ लाइन्स में काम करते हों लेकिन तब आश्चर्य हुआ जब रोहित को सहारा समय में देखा। तब मैं देहरादून में स्टेब्लिस हो चुके सहारा समय के लिए कभी कभार स्ट्रिंगर के रूप में खबरें दे दिया क़रता था। मनुष्य में ईर्ष्या के गुण होते ही हैं, मुझे लगा रोहित मेरी खबरें देखेगा तो बोलेगा कल तक जो मुझे न्यूज़ सेंस समझाने की बात क़र रहा था आज कहाँ से कहाँ पहुंच गया। मैंने सहारा समय को खबरें देना बंद कर दिया।

रोहित सरदाना ने तो जैसे ठान लिया था कि वह हर उस सीढ़ी को चढ़ता हुआ आगे बढ़ेगा जिस पर मेरे कदम पड़े। सहारा में मेरा मित्र नवीन डोभाल सम्पादक रहा। उससे नोएडा स्टूडियो में मुलाकात हुई तो रोहित कर बारे में पूछा कि रोहित सरदाना से मुलाकात हो सकती है। वह हंसा और बोला-रोहित सरदाना अब कोई छोटा मोटा आदमी नहीं है। बहरहाल वह सहारा छोड़कर जीटीवी में चला गया है। फिर देखता हूँ रोहित “आजतक” पहुंचते पहुंचते एक वरिष्ठ पत्रकार व सुप्रसिद्ध टीवी एंकर हो गए हैं।

बर्ष 2018 में पत्रकारिता दिवस पर एक सम्मान समारोह में रोहित सरदाना जी से ताज पैलेस में मुलाकात हुई। वह उचककर कभी कभी मुझे देखते फिर नजरें फेर लेते। मैं स्वयं यह हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि जाकर रोहित से मिलूं क्योंकि अब तक वह पत्रकारिता की आइकन पर्सनैलिटी हो गए थे।

आखिर झिझकते झिझकते मैं रोहित सरदाना के पास पहुंच ही गया। बोला-हेलो सर, मैं मनोज इष्टवाल हूँ। रोहित बोले- लगता है तुम्हे कहीं देखा जरूर है। मैंने याद दिलाया तो उन्हें एकदम याद हो लिया बोले-आज भी आपका जूस याद है मुझे। स्ट्रगल का समय भूला नहीं जाता। फिर पूछा कहाँ रहते हैं। मैं बोला – देहरादून। बड़े खुश हुए बोले-चलो अपने राज्य में सेवा तो दे रहे हो। फिर बोले- ओके मनोज, मैं जरा जल्दी में हूँ। मेरा नम्बर ले लो। हमने नम्बर साझा किया और फिर वह हुआ कि कभी बात नहीं हुई।

आज यह हृदय विदारक घटना सुनी तो स्तब्ध रह गया। आजतक खोला तो सारे सहयोगियों को रोते-बिलखते देखा। सच कहूं आंसू नहीं रोक पाया।

पूरे हिंदुस्तान में ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं है जिसने रोहित सरदाना की असामयिक मृत्यु पर दुःख व्यक्त कर ट्वीट न किया हो। कोरोना संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती रोहित सरदाना की हृदय गति रुकने से मृत्यु होनी बताई जा रही है। रोहित अपने पीछे अपनी दो छोटी मासूम बेटियां छोड़ गए हैं,जिनकी फोटो वे अक्सर साझा करते थे। बेटियों में गायत्री मंत्र के संस्कार डालने वाले रोहित हम सबके लिए आसमान का वह सितारा बन गए जो दूर तो है लेकिन हृदय पटल पर सबके विराजमान हैं।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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