(मनोज इष्टवाल)
पहाड़ों में एक नयी परम्परा तो शुरू हुई है विगत कुछ बर्षों से पहाड़ को पहाड़ की मानसिकता के जिलाधिकारी मिले हैं जिनमें कुछ जिलाधिकारी फिंगर टिप्स पर गिने जा सकते हैं! और तो और कल तक एक जनपद के निवासी जहाँ अपने जिले के जिलाधिकारी का नाम नहीं जानते थे आज उन्हें ऐसे कर्मठ युवा और जुझारू कई जिलों के जिलाधिकारियों के नाम मुंहजुबानी याद हैं! मंडल मुख्यालय पौड़ी जाने कब से ऐसे ही किसी जिलाधिकारी का इन्तजार कर रहा था जिसे बिखरते उजड़ते पौड़ी को संवारने सम्भालने का तौर तरीका आये! आखिर उनकी खोज पूरी हुई और मात्र अपने सात माह के कार्यकाल में जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल की पहाड़ी मानसिकता की सोच ने उन्हें जनता के पलक-फावड़े पर ला बिठा दिया है!
विगत कुछ दिन पूर्व जब जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल से उन्हीं के कार्यालय में मुलाक़ात हुई तो उनकी कार्यशैली का प्रथम इम्प्रेशन यह दिखने को मिला कि उनके बांयें और दांयी ओर उनके अधिकारी जनता की शिकायतों पर त्वरित कार्यवाही के लिए बैठे हुए थे! बमुश्किल कुछ पलों में ही वह बेहद सहस हृदय से एक एक व्यक्ति की बातें सुनते व उनकी समस्या के निराकरण के लिए तुरंत पत्र अग्रेसित करते नजर आये! मैंने उन्हें उनकी दो मुख्य सोचों के लिए शुभकामनाएं अर्पित की! पहली यह कि उनके द्वारा श्रीनगर के आगे बने बाँध पर वाटर स्पोर्ट्स व पर्यटन विकास हेतु कार्यवाही व दूसरा मानसून मैराथन!
मेरी शुभकामनाओं के साथ उनकी उचकती नजर मेरी तरफ पड़ी ! शायद उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि कोई पत्रकार भी ऐसी निगहबानी के साथ बेबाकी से किसी अधिकारी के कार्यों की प्रशंसा कर सके! जिलाधिकारी को मिलने वाली इस टीम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा, पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल, वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कंडवाल, अजय सिंह रावत व राकेश बिजलवाण इत्यादि शामिल थे!
यहाँ बात सिर्फ इन दो कार्यों की ही होती तो बात आई गई हो जाती! बर्षों से पौड़ी में साहसिक पर्यटन के रूप में विश्व मानचित्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाले मनीष जोशी व साथियों का एक वीडिओ जब पौड़ी की सड़कों पर साइक्लिंग करता दिखाई दिया तब मैंने मनीष जोशी से पूछा था कि ये पर्यावरणीय मित्र की सवारी कहाँ को जा रही है! ऐसे में मनीष ने जब जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल के बारे में जानकारी देना शुरू किया तो गर्व हुआ कि अब राज्य निर्माण के बाद पौड़ी की सूनी हुई मांग में सिन्दूर सजाने वाला अधिकारी तो मिल ही गया है!
मैंने जिलाधिकारी से कहा- सर, मुझे आपकी कार्ययोजनाओं पर एक आर्टिकल लिखना है! वे हंसे और बोले- मनोज, फिलहाल कुछ कार्य तो करने दो! अभी तो शुरूआती चरण है! क्या पता कब आप ही लोग बोरिया बिस्तर बंधवा दो! फिर अनिल बहुगुणा की तरफ मुंह करके बोले- क्यों बहुगुणा जी सही बोल रहा हूँ न! यह एक चुहल थी जिसका चुहल में ही अनिल बहुगुणा ने भी जबाब दिया लेकिन वह अन्तस् की पीड़ा उजागर करने का एक माध्यम भी साफ़ साफ़ दिखाई दिया! मुझे लगता है कि जिलाधिकारी पौड़ी जरुर कुछ ऐसे सपनों के साथ पौड़ी में कार्ययोजनाओं पर काम कर रहे हैं जिन्हें उन्हें क्षितिज पर लाकर खुद को उस पहाड़ी मेंटलिटी का अफसर साबित करना है जिसका नाम जिलाधिकारी कार्यालय की तख्ती पर दर्ज न होकर लोगों के दिलों में दर्ज हो!
जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल ने निजी प्रयासों से जिस तरह अपने गृह जनपद के गृह क्षेत्र गुंजी (पिथौरागढ) व उसके आस-पास के क्षेत्रों को पर्यटन मैप में शामिल करवाकर छोटा कैलाश यात्रा मार्ग से जोड़ा वह उनके निहायत ही निजी प्रयासों के बूते ही सम्भव हुआ क्योंकि उन्होंने उस रूट पर जितने भी घर आते हैं उन्हें होम स्टे में कन्वर्ट करने हेतु व उन्हें मोडिफाई करने के लिए अपनी जेब से लाखों रूपये शुरुआत के लिए खर्च किये! उन्होंने यात्रा रूट के वे सारे सरकारी गैर सरकारी इंतजामात हटवाये जो सिर्फ और सिर्फ किसी व्यक्ति बिशेष या सरकारी महकमें का पेट भर रहे थे! उन्होंने पिथौरागढ़ के बॉर्डर क्षेत्र से उखड़ते ग्रामीणों के उन पैरों को वहीँ थाह दी जो पलायन की जद में आ खड़े हुए थे उसका नतीजा यह निकला कि वह पूरी घाटी फिर से सरसब्ज हो गयी!
पौड़ी जनपद के लिए उनकी कार्ययोजना लाजवाब है क्योंकि पौड़ी जैसे खूबसूरत शहर के बारे में कभी किसी आम नागरिक की सोच में भी यह बात नहीं आई होगी कि इसमें कोई माल रोड हो जहाँ इको टूरिज्म का विकास हो सके! जिस पर शुकून के साथ कोई भी व्यक्ति बिना मोटर गाड़ियों की प्वां-प्यां, टिंई-पिई के विचरण कर अपने पैदल मार्ग पर खरीददारी कर सके! चाय कॉफ़ी पी सके या फिर गप्पें मारने हुए प्रकृति के इस अनमोल खजाने को निहार सके! यही नहीं गर्मियों के लिए एक ऐसी ठंडी सडक का निर्माण हो जिस पर लोग मीलों पैदल टहल कर सकें! पहाड़ की बेजोड़ कास्तकारी का कोई ऐसा भवन हो जिसे निहारकर यहाँ के धन्नासेठ व आम आदमी पहाड़ में ऐसा ही सपनों का घर निर्माण कर सके! विश्व मानचित्र पटल पर पौड़ी की खूबसूरती पहुंचाने के लिए मानसून मैराथन व श्रीनगर झील में वाटर स्पोर्ट्स का आयोजन कर इसे देश दुनिया के पर्यटन से जोड़कर उजड़ते पौड़ी गढ़वाल के भूतवा व बंजर पड़े/पड़ने जा रहे गाँवों की बसासत के लिए नयी कार्ययोजना प्रारम्भ करवा सकें! बर्षों से गगवाडस्यूं में बनने वाली झील की फाइल पर कार्यवाही करवाकर उसे मुख्यमंत्री के ध्यान में लाकर न सिर्फ परियोजना को मंजूरी दिलाना बल्कि शिलान्यास करवाना भी जिलाधिकारी की कार्यकुशलता का परिचायक है! पौड़ी के पचास बर्षों को यादगार बनाने के लिए कैबिनेट के लिए जीरो हावर्स पर तैयारियां करवाना व उसका लोहा मनवाना जैसे जाने कितने कार्य जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल अपने मात्र सात माह के कार्यकाल में जनता के समक्ष रख रखकर उसका दिल जीत चुके हैं!
मैंने हंसते हुए पूछा- सर, सुना है कि आप अपने आवास में कुछ लकड़ी के कास्तकारों के माध्यम से अपनी पुरातन संस्कृति की विरासतों के रूप को पुनः जीवंत करवा रहे हैं! वे मुस्कराए और बोले- हाँ, बिल्कुल! इसके लिए मैंने अल्मोड़ा से बमुश्किल ढूंढकर कुछ कारीगार बुलवाए हुए हैं और उन्हें बंगले में ही ठहरवा रखा है ताकि जब तक वे कार्य समाप्त नहीं कर देते तब तक कोई उन्हें बहकाकर अपने साथ न ले जाए क्योंकि मेरा मकसद भी यही है कि क्यों न हम उस पुरातन शैली की अपनी खोली, तिबारी, बाखली को जीवंत बनाए जिसकी काष्ठकला ने विश्व भर को ज्ञान दर्शन दिया है! उन्हें हैरत इस बात की होती है कि यहाँ की पुरानी तिबारियों को शहरों के धन्नासेठ उखाड़कर साथ ले गए और बदले में यहाँ के जनमानस ने सीमेंट सरिया का पहाड़ बनाना शुरू कर दिया! उन्होंने कहा वास्तु व वस्तु ज़िंदा रहे तभी पहाड़ सरसब्ज होते हैं! उनका मकसद है कि कुछ तो पौड़ी में ऐसा नया हो कि यहाँ का तेजी से हो रहा पलायन थमे व जो माइग्रेट हो चुके हैं वे रिवर्स माइग्रेशन (घर वापसी) के बारे में विचार करना शुरू करें! यह तभी सम्भव भी है जब हम घर घर रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए! न कि कागजी व हवाई दावे..! उनकी एक स्वर्णिम पहल में गढवाली सेलेबस की पुस्तकें हंसुली, धगुली, पैजेबी, झुमकी इत्यादि भी शामिल हैं जिन्हें उन्होंने सबसे पहले पाठ्यक्रम में शामिल करवाया है! उनकी यह पहल मुख्यमंत्री को इतनी पसंद आई कि अब यह हर जनपद में शुरू होने जा रही है! जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल ने बताया कि गढ़वाली पाठ्यक्रम की यह पुस्तक आने वाले समय में गढ़वाली बोली-भाषा को संरक्षित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी! पाठ्यक्रम के लिए तैयार पुस्तक में गढ़वाली भाषा में विद्यालय का नाम, जन्म तिथि, गांव, तहसील व ब्लॉक का नाम शामिल किया गया है! पुस्तकों का नाम नाम कक्षावार ‘धगुलि’, ‘हंसुलि’, ‘झुमकि’, ‘पैजबी’ आदि रखा गया है!
1 जनवरी 2019 को बतौर 61 वें जिलाधिकारी पौड़ी का कार्यभार सम्भालने वाले धीराज गर्ब्याल ने अपनी कार्ययोजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में जो छवि बनाई है उसकी जितनी प्रशंसा हो रही है व वह अतुलनीय है! काश..ऐसे अफसर को तब तक उसी जिले में कार्य करने की छूट लगातार मिलती रहती जब तक वह अपने सपनों को साकार करने वाली योजनाओं को तस्वीर के मानिंद पटल पर न ले आता! उम्मीद भी यही की जा रही है कि आगामी दो सालों में पौड़ी की तस्वीर व तकदीर में बदलाव जरुर दिखाई देगा! ज्ञात हो कि पौड़ी के प्रथम जिलाधिकारी वी ए स्टोवेल के 1 अक्टूबर 1908 में यहां पदभार ग्रहण किया था। तब जिलाधिकारी आईसीएस रैंक के हुआ करते थे। अंतिम 14वें आईसीएस जिलाधिकारी के रूप में 15 अगस्त 1947 में यहां पदभार ग्रहण किया व उनके बाद पहले आईएएस व 15वें जिलाधिकारी के रूप में ए जे खान द्वारा 4 अप्रैल 1951 में पदभार ग्रहण किया गया। इस तरह वे पहले आईएएस जिलाधिकारी हुए। धीराज गर्ब्याल यूँ तो 61वे जिलाधिकारी के रूप में जिलाधिकारी पौड़ी हैं लेकिन बतौर आईएएस वे 47वें जिलाधिकारी हुए यानि कि देश की स्वंत्रता दिवस सन 47 हुआ और वे स्वतंत्र भारत के 47वें जिलाधिकारी हुए। है न बड़ा अजीब इत्तेफ़ाक।