Wednesday, November 20, 2024
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ब्रिटिश काल में जौनसार व देहरादून में होती थी अफीम की खेती!

1982 में उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे गुलाब सिंह को अफीम के कारण देना पड़ा था पद से इस्तीफ़ा

1982 में उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे गुलाब सिंह को अफीम के कारण देना पड़ा था पद से इस्तीफ़ा

(मनोज इष्टवाल)

इस जनजातीय क्षेत्र में ब्रिटिश शासन काल के दौरान पोस्त की खेती ब्यापक मात्र में की जाती थी, जिसकी बिक्री के लिए हिमाचल एवं सहारनपुर की मंडियां हुआ करती थी लेकिन वर्तमान में इस खेती पर कानून लागू कर दिए जाने के कारण अब यह छुटपुट तरीके से ही की जाती है।

पूर्व में जौनसार-बावर के काश्तकारों को पोस्त की खेती का विशेषाधिकार रहा है और आबकारी विभाग के कानून उन पर बाध्यकारी नहीं है। प्राचीनतम अभिलेखों से पता चलता है कि यहां पोस्त की खेती अंग्रेजी हुकूमत के आने से पहले से ही मौजूद थी। वर्ष 1850 में काश्कारों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया, लेकिन बाद में उन्हें आदेश दिया गया कि राजस्व की बढ़ोत्तरी की खातिर वे पोस्त केवल विदेशी व्यापारियों को ही बेच सकते हैं । उसी वर्ष दून के अधीक्षक मिस्टर ए रौस ने जौनसार-बावर में उगाई जाने वाली अफीम के व्यापार का एकाधिकार कालसी के एक ठेकेदार को बेचने का प्रस्ताव किया लेकिन सरकार इस सुझाव से सहमत नहीं हुई। वर्ष 1861 में सहायक उप अफीम एजेंट मिस्टर बिंटल ने, जो मसूरी में छुट्टी बिता रिहा था, देखा वहां अफीम की खेती हो रही थी। उसने रिपोर्ट दी कि जौनसारी लोग अफीम के उत्पाद फेरी वाले व्यापारियों को बेच रहे हैं जो बाद में उन्हें पहाडी राज्यों को बेच रहे थे। उसने सुझाव दिया कि पोस्त की खेती का प्रसार दून में भी किया जाए और देहरा में एक सहायक उप एजेंट तैनात किया जाए।वर्ष 1866 में अधीक्षक मिस्टर स्लैडन ने फिर यह प्रश्न उठाया लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।

वर्ष 1876 में प्रति एकड़ 2 रूपयें लाइसेंस शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया गया। मिस्टर एच.सी. रौस ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि यह कर लगाए जाने से लाभ की मात्रा घट जाएगी। उसका यह भी मानना था कि ऐसा करने के लिए बंदोबस्त को संशोधित करना होगा। यह प्रस्ताव आबकारी विभाग द्वारा जब-तब उछाला जाता रहा और यह कहा जाता रहा कि पोस्त की खेती को या तो प्रतिबंधित किया जाए या उसे विनियमित किया जाए।

स्थानीय अधिकारियों ने इस मामले में किसी परिवर्तन का समर्थन नहीं किया और सरकार ने उनके विचार को स्वीकार कर लिया है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि पोस्त ऐसे इलाकों में उगाई जा रही है जहां की जलवायु अदरक और हल्दी के लिए माफिक नहीं है और पोस्त पर भी लोग राजस्व भगुतान के लिए पैसा कमाने के वास्ते उसी तरह निर्भर हैं, जिस तरह अदरक और हल्दी की खेती पर…।  इस फसल को निर्बाध उगाने के विशेषाधिकार को जौनसारी लोग बड़े गर्व से देखते हैं और किसी भी कारण इस अधिकार को न खोने के प्रति सतर्क हैं। यहां से मैदानों को तस्करी का कोई मामला सामने नहीं आया है और पोस्त को, दवा के अलावा, लोग ज्यादा मात्रा में स्थानीय तौर पर इस्तेमाल नहीं करते हैं। यह पहाडी राज्यों को बेचा जाता है और इसके जारी रहने से राजस्व का कोई नुकसान नहीं होता है। पोस्त यहां 35 में से 14 खेतों में बोई जाती है और इसके खेती के क्षेत्र में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है।

मिस्टर रौस के जौनसार के बंदोबस्त के अनसार यहां 185 एकड़ में पोस्त उगाया जा रहा था जो अब 193 एकड़ में लगाया जाता रहा है। इसका रस साधारण तरीके से एकत्र किया जाता है और इसका शोधन का उत्पादन (मूल्य संवर्धन) नहीं किया जाता। इसलिए यह बहुत अच्छी स्थिति में रहता है और मैदानी लोग इसे पसंद नहीं करते। औसत पैदावार ज्यादा नहीं है। प्रति एकड़ यह दो से ढाई सेर पैदा होता है और इस तरह कुल वार्षिक उत्पादन 400 सेर बैठता है। जौनसारी इसे 8 रूपये या 10 रूपये प्रति सेर बेचता है और यही कारण है कि वह आबकारी विभाग की 5 रूपया प्रति सेर की पेशकश स्वीकार नहीं करता है। सरकार ने हाल बंदोबस्त की शेष अवधि के लिए भी जौनसारियों की पोस्त की खेती के विशेषाधिकार का फिर से नवीकरण कर दिया है।

ब्रिटिश काल में पोस्त यानि अफीम भले ही जौनसार बावर क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में उगाई जाती रही है, लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में कहा जाता है कि क्षेत्रीय सांसद गुलाब सिंह के खेतों में उगी पोस्त की खेती को प्रमाणिक करने के लिए इस क्षेत्र में पहली मर्तबा हैलीकाप्टर उतारे गए और पोस्त को यहाँ पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया। वर्तमान में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रीतम सिंह के पिता जी 1982 के दौरान चकराता के क्षेत्रीय विधायक गुलाब सिंह, जो तब उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री थे, को अफीम की खेती के चलते मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि बाद में हुई जांच में वे निर्दोष पाए गये थे।

सन 1951 से सक्रिय राजनीति में उतरने वाले गुलाब सिंह भी बावर के एक स्याणा परिवार से संबधित थे। सन् 1957 से लेकर, (1974 के अलावा) सन् 1991 तक गुलाब सिंह लगातार लखनऊ विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। जौनसार बावर में गुलाब सिंह का समर्थन और विरोध भी कमोवेश स्याणों तक ही सीमित रहा, आम जनता यहां भी स्याणो के पीछे ही थी। जौनसार बावर में ऐसी अनेकों घटनाएं हुई हं

वर्तमान में यदा-कदा कहीं यह पोस्त किसी खेत में लहलहाती दिखाई दे सकती है जिसके बारे में यहाँ का वर्तमान मानुष तक नहीं जान पाता कि आखिर यह पोस्त आती किस काम है।

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