- चंद्रयान 3 मिशन टीम में उत्तराखंड के दर्जन भर वैज्ञानिक व इंजिनियर व अन्य थे शामिल। पौड़ी गढ़वाल के सबसे अधिक टीम मेंबर्स।
(मनोज इष्टवाल)
हमारे पौड़ी गढ़वाल में जब हम बाल्यवस्था में थे व मां को सर्द रात में खुले आकाश में तारा मंडल दिखता था या फिर गर्मियों में मसूर, चना, मटर, क़लौs की फलियां ठूँगते हम आँगन की चारदिवारी में बैठे आँगन के बीचों-बीच जली आग में मालू के पत्तों पर लिपटे ढूंगल्ये पकने का बेसब्री से इन्तजार करते व हमारे बड़े अपने छोटे बच्चों के रोते मुंह में हंसी भरने का यत्न करते दिखते तो तब वह कक्षा तीन में उस दौर की कविता “चंदा मामा दूर के, पुवे पकाये चूर के” नहीं कहते थे बल्कि अंगुली आसमां की तरफ उठाकर बच्चे की नजर चाँद पर केंद्रित कर अंगुली को घड़ी की सुई की तरह घुमाकर चन्द्रमा के माप की परिक्रमा करवाकर कहा करते थे.. “इन्दा बिन्दा रांगण झोली, घीये कमौली टपक बिंदा”। सच कहूं तो जब बच्चे की इस प्रक्रिया में चाँद पर नजर पड़ती थी तो वह इतना खुश होता था कि उसके हाथों की धगुली, पैरों की झंवरी व गले की हँसूली में बंधे घुँघरू उस छटपटाहट से सुंदर झंकार पैदा कर देते थे। मानों माँ या पिता जी की अंगुली के अग्रिम भाग में चाँद समा गया हो व बच्चे के माथे पर लगी अंगुली माथे के तिलक में चाँद सी शोभायमान हो गई हो और चंदा अपनी शीतलता से धगुली, झंवरी, व हँसूली में समा उसकी धमक बढ़ा गया हो।
हमारे गढ़वाल ने करुवा चौथ तो कभी नहीं देखा था लेकिन सुना है अब अब ये मैदान छोड़ पहाड़ में भी सरकने लगा है। करुवा या कडुवा चौथ तो पहाड़ की धर्म संस्कृति में शामिल नहीं था लेकिन शंकट चौदस जरूर यहाँ घर घर में था। इस दिन मां बहनें निर्जला व्रत रखती थी व चाँद के आने के पश्चात उर्खळी (ओखली) में जो तिल धूल धूप पुष्प मोती का अर्ध्य चाँद को अर्पित करती व तिलड्डू का भोग लगाकर हम सबको खिलाती। बहुत सी दंत कथाएं भी इस सबसे जुडी हैं। अक्सर जब माँ गाय का दूध दुहने जाती तो मैं गिलास या कटोरा लेकर पहुँच जाता। गौ थन का ताजा ताजा गुनगुना झाग भर दूषित माँ मुझे देती व मैं तृप्त हो जाता लेकिन माँ की इस प्रक्रिया से हैरान होता की जब भी वह दूध की ठेकी लेकर गौ शाला से बाहर निकलती तो उसे पल्लू से ढक़ देती। फिर घर के द्वार में पहुँच टीका लगाने वाली अंगुली को दूध के उठे झाग में रखकर चाँद को टीका करती। उनकी इस सतत प्रक्रिया पर मैं माँ को अक्सर टोकता कि वह ऐसा क्यों करती हैं। एक दिन जिद करने पर माँ नें कहा कि चंदा मामा दिखने में जितनी शीतल छाँव देते हैं उतने ही बुरे उस लोक के आस पास विचरण करने वाले प्राणी भी होते हैं। अगर उनकी नजर दूध पर पड़ जाय तो गाय दूध देना बंद कर देगी व सारा दूध तो वही पी लेंगे फिर तू क्या पियेगा। पिता जी हँसे व बोले – अरे ऐसा क्यों नहीं बोलती कि अक्सर रात के समय बुरे अदृश्य प्राणी जिनमें कीट पतंगे व कई बुरी नजरें होती हैं उनकी नजर से दूध खराब हो जाता है। खैर वह बचपन था और मुझे संतुष्ट करने के यही शब्द काफी थे लेकिन आज यही शब्द चौकन्ना होकर मुझे माँ की बात की याद दिलाते हैं कि चन्द्रमा पर वायुमंडल न होने के कारण उनसे अक्सर कई ग्रहों के उल्का पिंड आकर टकरा जाते हैं व उसकी परत को नुक्सान पहुंचाते हैं, तब लगता है कि उस दौर अर्थात आज से आधी सदी पूर्व तक भी, जब कोई देश चाँद पर नहीं पहुंचा था, हमारे बुजुर्गों के खजाने में कितने सटीक तथ्य शामिल थे।
अब आते हैं चंद्रयान 3 मिशन की सफलता से जुड़े उस इतिहास में जिसने 23 तारीख सदी के 23वें बर्ष चन्द्रमा के दक्षिणी पोल में भारत का झंडा गाड़ दिया व आदिदेव महादेव के सिर पर सजने वाले चाँद के उस भू भाग को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें शिब शक्ति स्थल के रूप में अलंकृत कर दिया है। इस मिशन में यूँ तो देश भर के सैकड़ों लोग कुरु मेंबर्स के रूप में जुड़े रहे जो देश के विभिन्न प्रदेशों से ISRO में अपनी सेवाएं दे रहे हैं लेकिन इस टीम में उत्तराखंड के लगभग एक दर्जन लोग शामिल हैं जिनमें कोई वैज्ञानिक, कोई इंजिनियर तो कोई अन्य टेक्निकल स्टॉफ के रूप में जुड़ा था। जिनमें अकेले पौड़ी गढ़वाल से सबसे अधिक तीन वैज्ञानिकों का नाम शामिल है जिनमें दुगड्डा के दम्पति दीपक अग्रवाल व उनकी पत्नी पायल अग्रवाल, संगलाकोटि बरगाँव के डॉ कुलदीप नेगी शामिल हैं जबकि हरिद्वार से एक दम्पति नमन चौहान व उनकी पत्नी एकता चौहान, पंत नगर से विनोद जोशी, रुद्रपुर से महेन्द्र पाल सिंह, काशीपुर से तन्मय तिवारी, हल्द्वानी से प्राची बिष्ट, राजेंद्र सिंह सिधवाल इत्यादि शामिल हैं।
पौड़ी गढ़वाल के ये तीन वैज्ञानिक :-
मूल रूप से दुगड्डा के रहने वाले दीपक अग्रवाल और उनकी पत्नी पायल अग्रवाल चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा रही हैं। मिशन की सफलता के बाद दोनों खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है कि यह गौरव के क्षण हैं। पायल विक्रम लैंडर के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के दौरान इसरो के दफ्तर पर ही मौजूद थीं।
वहीं वर्ष 1979 में दुगड्डा के मोती बाजार निवासी गोपाल चंद्र अग्रवाल व कृष्णा देवी के घर जन्मे दीपक की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर दुगड्डा में हुई। राजकीय इंटर दुगड्डा से इंटर करने के बाद बीटेक के लिए दीपक को गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में सीट आवंटित हुई। परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी, इसलिए पिता ने ऋण लेकर उन्हें विवि में प्रवेश दिलाया। सरस्वती शिशु मंदिर में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण के बाद उन्होंने जीआईसी दुगड्डा से इंटर की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने पंतनगर विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग से बीटेक और कानपुर से एमटेक की डिग्री हासिल की। वर्तमान में वह इसरो के चंद्रयान मिशन-3 की टीम में शामिल हैं। दंपति ने 2006 में इसरो ज्वाइन किया था। दुगड्डा उनकी पत्नी पायल अग्रवाल का ननिहाल था, यहीं से दोनों का रिश्ता तय हुआ था। 2004 में इनकी शादी हुई थी।
वर्ष 2004 में आइआइटी कानपुर से एमटेक करने के तत्काल बाद दीपक का चयन इसरो (ISRO) के लिए हो गया। वह माता-पिता को लेकर त्रिवेंद्रम चले गए और इसरो में बतौर विज्ञानी नौकरी ज्वाइन की। यहां भी उन्होंने अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन बनाए रखा। वर्ष 2009 से 2015 तक दीपक ने एयरो स्पेस के क्षेत्र में पीएचडी की।
वर्तमान में वह इसरो में थर्मल इंजीनियरिंग डिवीजन के प्रमुख, थर्मल, सी-25 (भारी क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज) के उपपरियोजना निदेशक, थर्मल, सीयूएस (भारत के पहले क्रायोजेनिक राकेट इंजन) के परियोजना निदेशक और थर्मल, सेमी-क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज के परियोजना निदेशक की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
दीपक अग्रवाल ने दुगड्डा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल को गोद लिया है। इस स्कूल में वह बच्चों की पढ़ाई और संसाधनों के विकास के लिए आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाते हैं। दीपक अग्रवाल ने कहा कि वह जल्द ही स्कूल में आएंगे और लोगों से बातचीत करेंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता से बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि भी जागृत होगी ।
पौड़ी से बरगाँव संगलाकोटि के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कुलदीप सिंह नेगी व अन्य अब ISRO के नये मिशन आदित्य से जुड़ चुके हैं, जो भारत का अगला मिशन है।
मुझे लगता है कि उत्तराखंड प्रदेश में विद्वतत्ता की कोई कमी नहीं है, बस जरुरत है तो इसके शैक्षिक ढाँचे को और मजबूत बनाने की। ISRO के चंद्रयान 3 मिशन के इन सभी पुरोधाओं को नमन।