Thursday, December 12, 2024
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क्या हम जानते हैं कि “भारत क़े संविधान” की मूल प्रति में प्रथम हस्ताक्षर किसके हैं?

क्या हम जानते हैं कि “भारत का संविधान” की मूल प्रति में प्रथम हस्ताक्षर किसके हैं ?

(मनोज इष्टवाल)

यह गलती से हुआ या जानबूझकर लेकिन “भारत क़े संविधान” की हस्तलिखित मूल प्रतिलिपि पर देश क़े प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सबसे पहले हस्ताक्षर कर दिये, जबकि यह अधिकार संविधान सभा क़े अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का था।

अपनी यादें ताजा करते हुई पूर्व सचिव लोकसभा व पार्लियामेंट लाइब्रेरी क़े सर्वेसर्वा रहे एस क़े शर्मा बताते हैं कि उन्होंने भी पहली बार यह मूल प्रति तब देखी थी जब 1990 में लाल कृष्ण आड़वाणी ने लोकसभा अध्यक्ष से संविधान की मूल प्रति देखने की इच्छा जताई थी।

पूर्व सचिव बताते हैं कि जो मूल प्रति थी वह पार्लियामेंट क़े गुप्त तहखाने क़े एक बड़े से ट्रंक में रखी गई थी। जिसका साइज सिखों की आस्था का प्रतीक “गुरुग्रन्थ” क़े लगभग बराबर होगा। जब इस संविधान को अपने सिर पर कपड़ा बांधे एक कर्मचारी लाया तब आडवानी जी फ़ौरन कुर्सी से उठे व सिर पर रुमाल रखकर आदर पूर्वक उसे नमस्कार करते नजर आये। पास ख़डी महिलाकर्मी ने भी फ़ौरन अपना दुपट्टा सिर पर रखकर उसे वही आदर दिया जो एक धर्मग्रंथ को दिया जाता है।

उन्होंने एक एक न्यूज़ चैनल को जानकारी देते हुए बताया कि फिर इसे देश क़े राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद ने देखा व अंतिम पृष्ठ देखते हुई उन्होंने उनसे प्रश्न किया कि – “Why is the President of the constitution assembly has sign like this?” इसके उत्तर में पूर्व सचिव लोकसभा एस क़े शर्मा बताते हैं कि उन्होंने जबाब देते हुए क़हा कि यहाँ नेहरू जी अति उत्साह में यह गलती कर बैठे जिसके कारण संविधान सभा क़े अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को नेहरू जी क़े हस्ताक्षर क़े ऊपर आड़े तिरछे ही अपने हस्ताक्षर करने लगे। तब राष्ट्रपति महोदय ने मुस्कराकर उनकी पीठ में हाथ रखते हुए कहा – You are excellent story teller.

पूर्व सचिव लोकसभा एस क़े शर्मा बताते हैं कि उसके बाद ही तहखाने से संविधान की मूल प्रति को बाहर निकाला गया व उसके लिए वैज्ञानिकी सलाह पर कांच का एक स्पेक्टिकल बनाया गया व उसे उसमें पार्लियामेंट अनेक्सी में बेहद संभालकर रखा गया है। काँच क़े स्पेक्टिकल से बराबर गैस बाहर निकाली जाती है व भरी जाती है। साथ ही भारत क़े संविधान की मूल प्रति का स्वास्थ्य परिक्षण भी किया जाता है ताकि उसकी मूल प्रति में खराबी न आये।

बहरहाल प्रश्न यह उठता है कि क्या संविधान की मूल प्रति इसलिए तहखाने में रखी गई ताकि उस पर छपे मूल चित्र सामने प्रकट न हो सकें क्योंकि भारत क़े संविधान की प्रतिलिपि टंकण में उसके 22 अध्याय (bhaag) में किसी पर भी उसके मूल चित्र अंकित हों यह कहना जल्दबाजी होगी। और अगर अकेले संविधान क़े रचियता डॉ भीमराव अम्बेडकर थे तब प्रश्न यह उठता है कि भारत क़े संविधान की मूल प्रति पर पहले हस्ताक्षर उनके क्यों नहीं हैं? क्या हमें पाठ्यक्रम में गलत अब तक जानकारी दी जाती रही है, जबकि  भारत  का संविधान लिखते समय डॉ भीमराव अंबेडकर ने विश्व के महत्वपूर्ण 60 देशों के संविधानों का अध्ययन करने की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए भारत का संविधान लिखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे

ज्ञात हो कि संविधान को बनाने में दो साल 11 महीने और 18 दिन लगे थे, लेकिन छह महीने में इसे लिखा गया। संविधान की मूल प्रति के प्रत्येक पृष्ठ पर उसके लेखक प्रेम बिहारी नारायण रायजादा का नाम लिखा हुआ है और अंतिम पृष्ठ पर प्रेम बिहारी नारायण रायजादा और उनके दादा का नाम अंकित है। क्योंकि इसी शर्त पर उन्होंने संविधान को लिखे जाने की जिम्मेदारी ली थी और उसके बदले में उन्होंने मेहनताने के रूप में ₹1 भी नहीं लिया।

बहरहाल 24 जनवरी 1950 को, 284 सदस्यों भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर किए। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। संविधान सभा में शुरू में 389 सदस्य थे। संविधान सभा की मांग पहली बार 1935 में इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा उठाई गई थी। भारत क़े संविधान की मूल प्रति में कुल 469 पृष्ठ हैं, जिसमें अंतिम हस्ताक्षर फिरोज गांधी क़े हैं।

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