यमकेश्वर (पौड़ी गढ़वाल) 13 सितम्बर 2020 (हि. डिस्कवर)
विगत 18 मार्च 2020 में हिमालयन दिग्दर्शन ढाकर शोध यात्रा के बाद बने सम्राट भरत जन्मस्थली समूह ने अब मालन नदी घाटी सभ्यता पर एकजुट होकर कार्य करना शुरू कर दिया है। उससे पूर्व भी इस घाटी के लोग समय समय पर अपनी आवाज उठाते रहे लेकिन उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार की बेरुखी के कारण तत्कालीन समय में मांग ठंडे बस्ते में रख दी गयी। अब जबकि केंद्र व प्रदेश में भाजपा की सरकार है व उसका एक लक्ष्य व मुद्दा राष्ट्रवाद भी है, तब ऐसे में मालन नदी घाटी के लोगों में एक नई आस विकसित हुई है।
सम्राट भरत जन्मस्थल समूह द्वारा आज बेबिनार के माध्यम से मालन नदी घाटी के वैदिक काल के वृतांत से लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध अधिवक्ता अमित सजवाण ने किया। मालन नदी घाटी पर अपना पक्ष रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार व हिमालयन डिस्कवर के सम्पादक मनोज इष्टवाल ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि जो नदी माँ गंगा से भी पुरानी यानि वैदिक काल से उत्तराखंफ की पावन धरती से बहती आ रही है व जो नदी घाटी ऋषि कण्व, विश्वमित्र, बशिष्ठ, दुर्वासा सहित सप्तऋषि मण्डप के ऋषियों की तपस्थली व स्वर्ग अप्सरा मेनका विश्वामित्र, राजा दुष्यंत व शकुंतला की प्रणय स्थली रही है, जिस भूमि ने हमें चक्रवर्ती सम्राट भरत को दिया है, जिनके नाम से भारत बर्ष पड़ा है वही घोर उपेक्षाओं में देश दुनिया के लिए बेहद अनजान सा बन गया है। इसके समग्र विकास के लिए प्रयास होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम अपने लोकसभा सांसद व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल “निशंक” राज्य सभा सांसद व केंद्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व सांसद तीरथ सिंह रावत के माध्यम से इस राष्ट्रवाद के मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष रख सकते हैं ताकि इस नदी घाटी में शोधार्थी आयें व देश दुनिया इसकी महत्तता को जाने! साथ ही यह घाटी पर्यटन के रूप में विकसित हो!
कार्यक्रम का संचालन कर रहे अधिवक्ता अमित सजवाण का मानना है कि जब तक एक ठोस रणनीति के तहत हम कार्य की रूपरेखा तैयार नहीं करते तब तक कुछ भी कह पाना बेईमानी है इसलिए हमें इस नदी घाटी सभ्यता को अंतराराष्ट्रीय फलक तक ले जाने के लिए बहुत ठोस प्रयास करने होंगे!
उत्तराखंड सरकार में अधिकारी व सामाजिक व्यक्तित्व के धनि यमकेश्वर विधान सभा क्षेत्र के प्रमोद रावत ने मालन नदी घाटी पर चर्चा के लिए सम्राट भरत जन्मस्थली समूह का आभार व्यक्त करते हुए उत्कंठ मन से प्रशंसा करते हुए कहा कि हमें इस पहल पर गम्भीरता से कार्य करने होंगे व कई मापदंडों के साथ साथ इसके अस्तित्व के प्रमाण जुटाने की बेहद संजीदगी के साथ पहल करनी होगी! उन्होंने कहा कि हमारे पास डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जैसा आदर्श चेहरा है अगर हम उन तक बात पहुंचाए तो उन्हे विश्वास है कि डॉ. निशंक इस पर ठोस कार्यवाही के लिए प्रधानमन्त्री के संज्ञान में इस प्रकरण को लायेंगे!
डॉ. अरविन्द कुमार गौड़ जोकि मालन नदी घाटी क्षेत्र के ही वाशिंदे हैं, उन्होंने सम्पूर्ण घाटी का संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए कहा है कि आज भी दुष्यंत शकुन्तला, विश्वामित्र मेनका या शकुन्तला भरत व कण्व ऋषि सम्बन्धी कई क्षेत्रों के नाम व ग्रामों के नाम इस बात को इंगित करते हैं कि इस नदी घाटी का वैदिक काल का इतिहास हजारों-हजार बर्ष बाद भी अपनी उपस्थिति के सबूत प्रस्तुत करता है! उन्होंने कहा कि मथाणा गाँव मालिनी घाटी पर्यटन के लिए एक बड़ा जंक्शन बन सकता है! वहां से चारों ओर ट्रेकिंग की जा सकती है, अब चाहें हम मालिनी के उद्गम स्थल मलनिया किमसेरा की ओर ट्रैक करें या फिर मालिनी नदी बहाव चौकिसेरा की ओर! इस घाटी क्षेत्र में महाब गढ़ पर्यटन व धर्मस्व पर्यटन की रीड साबित हो सकती है! मथाणा से ईड गाँव व चरेक क्षेत्र में भी ट्रैकिंग के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है!
सांसद प्रतिनिधि चंडी प्रसाद कुकरेती ने कहा कि इस समय प्रदेश व केंद्र में भाजपा सरकार है व दोनों ही सरकारें राष्ट्रवाद पर गंभीरता से काम कर रही हैं इसलिए इस क्षेत्र को भरत शकुन्तला ऋषि कण्वा से जोड़कर इस पर कार्ययोजना बनाना वर्तमान में पूर्व से सुगम कार्य है! उन्होंने सांसद व विधायक के माध्यम से यह बात हर राजनैतिक व सरकारी मंच तक ले जाने की पैरवी करते हुए कहा है कि वे स्वयं भी पूरी निष्ठा के साथ मालन नदी घाटी सभ्यता को पर्यटन से जोड़कर इस क्षेत्र को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए पूरे समूह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार हैं! उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल की इस बात का समर्थन करते हुए कि पूर्व में इस क्षेत्र की ग्राम सभाओं का प्रपोजल पूर्व पर्यटन मंत्री मेजर ले.ज. टीपीएस रावत के माध्यम से सरकार को दिया गया है जिसमें 92 ग्राम सभाओं के ग्राम प्रधानों की मुहर लगी है, फिर भी कोई उत्तरोत्तर कार्यवाही नहीं हो पाई है! उन्होंने कहा कि समूह में मालिनी नदी उद्गम तट के किसी गाँव में अगली बैठक की बात कही गयी थी, उस पर अगले माह तक कोई समय तय करें! बाकी व्यवस्थाओं की बातें हो जायेंगी! उनकी बात का समर्थन करते हुए गौड़ बोले- जो कुछ भी व्यय व्यवस्था होगी वह सब देखा जाएगा!
ज्ञात हो कि मालिनी नदी का उद्गम चंड़ा की पहाड़ियों से माना जाता है जिसके दाहिनी ओर मालनियाँ गाँव व बांयी ओर बडोलगाँव पड़ते हैं! बहाव की दिशा में मांडई, बिजनूर, सौंठ, अमोला, जुड्डा रौडियाल, फलनखेत, कीमसेरा, सिमलना बिचला, चुना मयेड़ा, पोखरिधार, सौंटियालधार, चौर-लदोखी, मंज्याडी, सिमाल्खेत, चौर, मैतकाटल, चौंडली, मथाणा, सिमलना मल्ला, सिमलना तल्ला, सिमलाना बिचला, जोगी झलड, खुंडरा, भरपूर, धूरा, कंडवाल गाँव, मवासा स्यलड़, बिस्तर काटल रेंज, उलियाल, तिमलियाल, धूरा,पौड़ी, केष्टा, खलेक, स्यालनी, बडरौ, जौरासी, स्यालकंडी,घमतपा, महाबधार, मौला टटोली, मानपुर, मुणगाँव, हर्षु, सकन्यूल, नाथूखाल,धनाई धुरा, खोलकंडी, पठूड अकरा, पौखाल, कठुडधार, बागी इत्यादि गाँव हैं!
बेबनार में तय किया गया कि आगामी अक्टूबर माह में मालिनी नदी उद्गम स्थल के गाँव मालनियाँ या बड़ोलगाँव में एक बैठक आहूत की जायेगी जिसमें मालन नदी घाटी सभ्यता से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों को ग्रामीणों के समक्ष रखकर एक ठोस कार्ययोजना बनाई जायेगी ताकि यह क्षेत्र पर्यटन, धर्म संस्कृति व लोक संस्कृति से जुड़कर विश्व के मानचित्र पटल पर वैदिक काल की धरोहरों का एक समग्र इतिहास दर्ज करवाए व क्षेत्र में तेजी से हो रहे पलायन पर अंकुश लगे व लोग रिवर्स माइग्रेशन के साथ अपने क्षेत्र में रोजगार के संसाधन विकसित कर सकें!
सम्राट भरत जन्मस्थली समूह की इस बेबनार में रमेश चन्द्र गौड़, शशि भूषण अमोली, विनोद डोबरियाल, विनोद कुकरेती, लोकपाल सिंह बिष्ट, जितेन्द्र खर्कवाल, हरिमोहन देवलियाल इत्यादि ने शिरकत की व अपने विचार व्यक्त किये!