Wednesday, May 28, 2025
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151 बर्ष पूर्व बनाई गई दारमा घाटी की जसूली शौक्याण धर्मशालाओं को मूर्त रूप देने में जुटा दारमा घाटी का ही बेटा धिराज गर्ब्याल जिलाधिकारी नैनीताल।

मेरी श्रीगोल्ज्यू संदेश यात्रा पार्ट-1

(मनोज इष्टवाल यात्रावृत्त 23 अप्रैल 2022)

सचमुच यह अद्भुत था क्योंकि आज हम वहां के सफर पर निकले थे जहां पृथ्वी और आकाश आपस में मिलते जुलते दिखाई देते हैं। जहां नीले काले बर्फीले पहाड़ों की आवोहवा में खिलते ब्रह्मकमल, सतरंगी बुराँस और सैकड़ों प्रजाति की वन औषधियों के हिमालयी बागान कहे जा सकते हैं। जहां पार्वती ताल, देवताल, रागस ताल, छिपला केदार, हुश्कर महल की गोद में बसा खूबसूरत धर्तीधार (धारती धार) है। इस धर्तीधार कि कल्पना मात्र से जहां प्रकृति के प्रति रोमांच पैदा होकर तन मन प्रफुल्लित हुआ वहीं गोलज्यू देवता के उतुंग हिमालय निवास के दर्शन के प्रति श्रद्धा भाव भी उमड़ पड़ा।

पिछली 20 तारीख को अचानक स्मरण हुआ कि मुझे तो कुमाऊं निकलना है। टिकट ढूँढी तो देखा ट्रेन फुल है। सोर्स ढूंढें तो माना मन मांगी मुराद मिल गयी हो। पिथौरागढ़ की ही रेलवे पुलिस में सेवारत पुष्पा बोहरा से अनुरोध किया तो उन्होंने 21 रात की तत्काल में टिकट बनवा ही दी। हृदय ने उन्हें छक कर धन्यवाद।

22 सुबह हल्द्वानी होता हुआ घोड़ाखाल पहुंचा। मुझे देख श्रीमति कविता जोशी व जीवन जोशी प्रफुलित हुए। उन्हें मेरा ही इंतजार था। अगली सुबह हम यानि जीवन जोशी, कैलाश चन्द्र सुयाल जी, बीरेंद्र भट्ट जी व मैं, जीवन जोशी जी की कार से निकल पड़े एक लंबी यात्रा रुट पर…! उम्र में मैं सभी से छोटा…! लेकिन सबकी आपसी ट्यूनिंग ने भवाली से जोहार घाटी के सफर को आसान बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

उहापोह ये हुई कि धानाचूली होकर निकला जाय या फिर अल्मोड़ा होकर…! जीवन चन्द्र जोशी जी का मानना था कि भवाली हल्द्वानी रोड खराब है लेकिन भट्ट जी व सुयाल जी यह मन बनाकर चले थे कि हमें आज ….रुकना है। खैर सफर के दौरान चर्चा जोहार-दारमा घाटी अर्थात धौली-काली नदी घाटी के शीर्ष पर अवस्थित धर्तीधार पर ही शुरू हुई। यह बात तब शुरू हुई जब हमने बाबा नीम करौली का तीखा मोड़ काटा व अब कोसी नदी के सामांतर आगे बढ़ने लगे। मुझे अचानक याद हो आया कि यहीं कहीं जोहार दारमा घाटी की जसुली शौक्याणी द्वारा बनाई गई एक धर्मशाला के खंडहर मौजूद है जिसे उन्ही की शौका जाति के वर्तमान जिलाधिकारी नैनीताल धिराज गर्ब्याल ने हाल ही में रिनोवेट किया है। मैंने सुयाल जी को बोला- देखिए आपकी सुयाल बाड़ी भी आ गयी है लेकिन वह स्थान कहाँ होगा जहां जसुली देवी ने धर्मशाला बनाई थी।

भट्ट जी बोले पड़े- सुयाल गाड़ (नदी) के आस पास है। कोसी की सहायक नदी हुई। जीवन जोशी बोल पड़े- मुझे लगता है आगे विवेकानन्द आश्रम के पास है। बात धर्मशाला से गुजरती अब जिलाधिकारी धिराज गर्ब्याल पर केंद्रित हो गयी। सुयाल जी बोले- जिलाधिकारी की आम जन प्रशंसा करता नहीं थक रहा है। सब यही कहते सुनाई दे रहे हैं कि उनकी धरातलीय योजनायें गजब की हैं। उन्होंने खोए सोये पहाड़ी शिल्प को पुनः पुनर्जीवित करने का बड़ा काम किया है। भट्ट जी बोले- सुना ही नहीं देखने को भी मिल रहा है। जीवन जोशी बोल पड़े- अभी हमारी मुलाकात तो नहीं हुई लेकिन इष्टवाल जी उनसे मिलने की प्रबलतम इच्छा इसलिये भी है क्योंकि वह आम जन से काफी सौहार्दपूर्ण ढंग से मिलते हैं, ऐसी फीडबैक आये दिन मिलती रहती है।

यह मेेरे लिए इसलिए खुशी की बात थी क्योंकि इस से पहले मैंने कभी किसी जिलाधिकारी की प्रशंसा आम चर्चा में होती नहीं सुनी थी। बातों-बातों में कब खीना पानी आ गया पता भी नहीं चला। अचानक गाड़ी पर ब्रेक लगे तो देखा हम जसुली शौक्याण द्वारा बनाई गई धर्मशाला में खड़े थे।

खीनापानी की जसुली शौक्याणी की 151 पुरानी धर्मशाला।

जिलाधिकारी धिराज गर्ब्याल ने जब से नैनीताल जिले का प्रभार सम्भाला तब से ही वे बेहद योजनाबद्ध तरीके से नैनीताल की वादियों, घाटियों, शहर, सड़क, शमशान व कब्रिस्तान को संवारने में जुट गए हैं। अब उसमें जसुली देवी की धर्मशालाओं की जर्जर हालात को सुधारकर ठेठ उसी पहाड़ी काष्ठ या पाषाण शिल्प को प्रस्तुत कर आगे बढ़ाना जिसे हम पीछे छोड़ चुके थे वह अद्भुत है। तल्ली ताल मल्ली ताल के रिक्शा स्टैंड, भटेलिया मुक्तेश्वर के पहाड़ी शिल्प में बनाये जा रहे रेस्तरां, केएमवीएन मुक्तेश्वर का गेस्ट हाउस, सरगाखेत पुलिस थाना, लगभग सवा दो किमी लम्बी मुक्तेश्वर सरगाखेत ट्रेल, जो हिमालयी घाटियों, ब्रिटिश स्मारकों, मेथोडिस्ट चर्च व लोकलुभावन प्रकृति के सौंदर्य से रूबरू करवाती आगे बढ़ेगी।, नैनीताल स्थित बस स्टैंड व नाव स्टैंड का पहाड़ी शिल्प के साथ रिनोवेशन, विभिन्न प्रजाति के सेब व अन्य फलों के उद्यान सहित दर्जनों योजनाएं कुछ समय बाद ही आपको नैनीताल में दिखने को मिल जाएंगी।

अब आते हैं दांतू गांव दारमा घाटी पिथौरागढ़ की जसुली शौक्यांणी पर…! कहानी कुछ ऐसी है कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी की । सेठाणी जसुली शौक्याणी, वह महिला हैं, जिन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल व नेपाल में अपने जीवन काल में सैकड़ों धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। ऑन रिकॉर्ड 151 बर्ष व ऑफ रिकॉर्ड 175 बर्ष पुरानी जसुली देवी द्वारा निर्मित आज ये धर्मशालाएं भले ही जीर्ण-शीर्ण हो गई हों, लेकिन कभी यह यात्रियों के लिए आश्रय स्थल हुआ करती थीं।

कुमाऊं की दारमा घाटी के दातूं गांव में जसुली दताल यानि जसुली शौक्याणी रहा करती थी। वो उस शौका समुदाय से थीं, जिनका तिब्बत के साथ व्यापार चलता था। उस वक्त जसुली शौक्याणी की गिनती गढ़वाल-कुमाऊं के सबसे संपन्न लोगों में होती थी। जसुली के पास सब कुछ था, लेकिन दुर्भाग्य से वह कम उम्र में ही विधवा हो गईं। उनका इकलौता बेटा भी चल बसा।

(अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाइवे के किनारे खीनापानी में स्थित जसुली शौक्याणी की धर्मशाला जिले हाल ही में जिलाधिकारी नैनीताल धिराज गर्ब्याल ने पुनर्निमित किया)

हताशा भरे जीवन ने जसुली को तोड़ कर रख दिया। एक दिन उन्होंने फैसला लिया कि वह अपना सारा धन धौलीगंगा नदी में बहा देंगी। संयोग से उसी दौरान उस दुर्गम इलाके में कुमाऊं के कमिश्नर रहे अंग्रेज अफसर हैनरी रैमजे का काफिला गुजर रहा था। यह किस्सा 1856 का बताया जाता है।  गढ़वाल-कुमाऊं के कमिश्नर रहे रैमजे नेकदिली के लिए मशहूर थे। रैमजे को जब जसुली के मंसूबों के बारे में पता चला तो वह तुरंत ही उनके पास पहुंचे व उनसे इस तरह धन नष्ट करने की वजह पूछी। जसुली ने रोते-बिलखते इस कठोर फैसले के कारण अर्थात अपनी हताशा भरी जिंदगी की पूरी कहानी अंग्रेज अफसर को सुनाई जिस पर कुमाऊं कमिश्नर रैमजे ने जसुली को पैसे को नदी में बहा देने के बजाय किसी जनोपयोगी काम में लगाने का सुझाव दिया।अंग्रेज अफसर का विचार जसुली को जंच गया। कहते हैं कि इसके बाद दारमा घाटी से वापस लौटते वक्त अंग्रेज अफसर के पीछे-पीछे जसुली की अकूत संपदा लेकर बकरी और मवेशियों का एक लंबा काफिला चला।

रैमजे ने इस धन से कुमाऊं-गढ़वाल और नेपाल-तिब्बत में व्यापारियों और तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाएं बनवाईं। उन्हीं धर्मशालाओं में एक धर्मशाला खीनापानी स्थित यह धर्मशाला भी है जिसे जिलाधिकारी धिराज गर्ब्याल ने पुनः पुनर्जीवित करवाकर भवाली-अल्मोड़ा सड़क मार्ग पर पुनः आकर्षण का केंद्र बना दिया है। जितनी भी धर्मशालायें जसूली द्वारा निर्मित करवाई गई ये सभी मुगलों की सराय शैली की भांति ही निर्मित दिखाई देती हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानों ब्रिटिश काल में भी मुगलों की सराय शैली की छाप कहीं न कहीं दिखाई देती थी। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि मुगलों की सराय शैली के इसमें कुछ अंश अवश्य मिलते हैं लेकिन ज्यादात्तर पाषाण निर्मित इन धर्मशालाओं में ठेठ पहाड़ी भवन शैली दिखाई देती है। खीनापानी की धर्मशाला कुछ इस तरीके से निर्मित है ताकि यहां ठहरने वाला व्यक्ति लकड़ी व पानी का आराम से जुगाड कर सके क्योंकि कोसी नदी यहां से मात्र डेढ़ सौ से 200 मीटर की दूरी पर बहती है।

जसुली दताल ने कुमाऊं गढ़वाल से लेकर नेपाल-तिब्बत तक निर्मित इन धर्मशालाओं का निर्माण मुगलों की सराय शैली में किया गया था। तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर रैमजे ने सम्पूर्ण कुमाऊं-गढवाल सहित नेपाल के महेन्द्रनगर और बैतड़ी जिलों के अलावा तिब्बत में भी ऐसी कुछ धर्मशालाओं का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि जसुली दताल की संपत्ति से निर्मित कुल धर्मशालाओं की संख्या 200 से अधिक थी। इन धर्मशालाओं में ठहरने के साथ ही पीने के पानी वगैरह की भी समुचित व्यवस्था थी। जसुली के इस नेक सत्कार्य ने उसे खासा सम्मान और एक नई पहचान दी। इसके बाद जसुली दताल को क्षेत्रवासी जसुली लला (अम्मा), जसुली बुड़ी और जसुली शौक्याणी जैसे नामों से पुकारने लगे। कहा जाता है कि एक ज़माने तक ये धर्मशालाएं ठीक-ठाक हालत में थी लेकिन समय के साथ-साथ ये धर्मशालाएं खंडहरों में बदलती गईं, फिलहाल इनमें से कुछ ही लगभग सौ-डेढ़ सौ संरचनाएं बची हैं जिनमें दो अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर खीनापानी में भी स्थित है।

हल्द्वानी हाइवे के किनारे खीनापानी में स्थित धर्मशाला में दस कमरे हैं। जिनकी लंबाई व चौड़ाई चार फीट तथा गोलाकार ऊंचाई छह फीट है। देखरेख के अभाव में इनमें से कुछ कमरे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं तो कुछेक आज भी दुरुस्त हैं, वहीं दूसरी धर्मशाला हाईवे से करीब सौ मीटर ऊपर स्थित है। इसमें करीब चार कमरे हैं। जिसकी लंबाई-चौड़ाई एवं ऊंचाई छः-छ: फीट है। हाईवे के ऊपर बनी धर्मशाला झाड़ियों से छिपी होने के कारण दिखाई नहीं पड़ती है। पर्यटन विभाग का यह भी कहना है कि बीस लाख रुपये से जर्जर हालत में पहुंच चुकी इन धर्मशालाओं को बेहतर रूप दिया जाएगा और इसके साथ ही रानी जसुली से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां लोगों तक पहुंचाने के लिए एक संग्रहालय भी तैयार किया जाएगा।

जोहार दारमा घाटी का रं समुदाय वर्तमान में लगातार जसूली शौक्याणी द्वारा निर्मित की गई लगभग पौने दो सौ साल पुरानी धर्मशालाओं पर शोध कर रहा है व उसका मानना है कि अकेले दारमा घाटी में निर्मित 350 धर्मशालाओं में से वे 130 धर्मशालायें ढूंढने में सफल हो चुके हैं।

सन 1870 में कुमाऊं कमिश्नर शेरिंग ने इन धर्मशालाओं का जिक्र अपनी पुस्तक में किया है। उसी को आधार बनाकर अगर देखा जाय तो ये धर्मशालाएं तब से लेकर अब तक लगभग 151 बर्ष पुरानी हैं, जिनमें अकेले अल्मोड़ा जिले में 30 धर्मशालाओं का जिक्र है। दांतों यानि बूढ़ा राठ में अब अगर 130 धर्मशालायें मिली हैं तो यह अचंभित करने वाली बातें हैं।

अल्मोड़ा से कैलाश मानसरोवर तक, टनकपुर-बनबसा से महेंद्र नगर बैतड़ी तक सम्पूर्ण पश्चिमी नेपाल में भी ऐसी ही धर्मशालाओं का जाल बिछाया हुआ है। इसके अलावा भोटिया पड़ाव अल्मोड़ा, शतगढ़, चंडाक, धारापानी, अस्कोट, चौंदास घाटी, नाभीढांग (पिथौरागढ़), खीनापानी, कफड़खान, बाडेछीना, धारानौला व 3 धर्मशालाएं चम्पावत में आज भी जीर्णशीर्ण अवस्था में दिखाई देती हैं।

लोगों का मानना है कि इन धर्मशालाओं का निर्माण कार्य तत्कालीन जाने-माने ठेकेदार बच्ची गौड़ से करवाया गया था जिन्होंने नैनीताल कचहरी का निर्माण किया था। हैनरी रैम्जे व जसुली देवी शौक्यांण ने उन्हें यह कार्य सौंपा था। बच्ची गौड़ के बारे में यह प्रचलित था कि वे अपनी कमाई का एक निश्चित हिस्सा मन्दिर में चढ़ा देते थे। वे बेऔलाद थे।

बहरहाल आज हम उसी जोहार दारमा वैली के सफर पर निकले हैं जहां की एक देवी ने पैदल यात्रियों के लिए कुमाऊं मंडल में  हल्द्वानी से मानसरोवर तक व गढ़वाल में चारधाम यात्रा पड़ाव की चट्टियों में धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। फिलहाल यह असमंजस बना हुआ है कि हम आज का यात्रा बिश्राम चौकोड़ी करें या मुनस्यारी…..!

क्रमशः…..

 

 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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