Friday, October 18, 2024
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लखवाड़ का देवधारा… जहाँ बारिश न होने पर लड़कियां सोती थी काँटों के बिस्तर में।

लखवाड़ का देवधारा… जहाँ बारिश न होने पर लड़कियां सोती थी काँटों के बिस्तर में।

(मनोज इष्टवाल)

यों तो सम्पूर्ण देवभूमि उत्तराखंड अपनी लोक व धर्म संस्कृति व अनूठी परम्पराओं के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे अद्भुत प्रसंग होते हैं जिन पर विश्वास किया जाना संभव सा नहीं लगता। और… ऐसे में अगर तमसा यमुना से घिरे लगभग अंडाकार क्षेत्र जौनसार बावर की लोक व धार्मिक परम्पराओं की बात हो तो उसकी एक अलग ही पहचान होती है।

देहरादून जिले का यह जनजातीय क्षेत्र आज भी सम्पूर्ण उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हुआ अपने लोक समाज में व्याप्त परम्पराओं व अवधारणों को अंगीकार कर उसका अक्षरत: पालन करता है लेकिन विगत पांच बर्षों के अंतराल में इस क्षेत्र में भी पलायन की आंधी ने अपना रूप लेना शुरु कर दिया है। यहाँ भी आलिशान बड़े बड़े घरों पर ताले लगने शुरु हो गए हैं और लोग शहरों में बसने लगे हैं। बस… शुक्र मनाईये कि इन्होने पौड़ी व अल्मोड़ा जैसे जनपदों की भांति अपने घर खलिहान खेत अभी बंजर नहीं छोड़े।

इसी क्षेत्र का एक बेहद खूबसूरत गाँव है लखवाड़…। जो ब्रिटिश काल से ही पढ़े लिखे गाँव के रूप में एक सभ्य समाज वाला गाँव माना जाता रहा है। इस गाँव की एक क्षेत्रीय कहावत यह थी कि “मेरे घर या गाँव आएगा तो क्या लाएगा? मैं तेरे गाँव आऊंगा तो क्या देगा?” यह कहावत क्यों बनी मैं नहीं जानता लेकिन यहाँ का सभ्य समाज यकीनन दर्शनीय है। इतिहास के पन्नों में जाने कितनी लोक कहानियां व किंवदंतियाँ इस गाँव के बारे में प्रचलित हैं लेकिन यहाँ से सुदूर पर्वत क्षेत्र उत्तरकाशी जनपद के जखोल गाँव गए “जीन्दा लखवाड़ी” का लोक पहलु बेहद ही मार्मिक है, जो जखोल के सोमेश्वर देवता का पुजारी था।
बहरहाल हम लखवाड़ गाँव के चालदा देवता के उस बिहंगम मंदिर की बात करते हैं जिसके देव पानी से जुड़ी धार्मिक व ऐतिहासिक अछूती गाथा का मैं यहाँ बर्णन करने जा रहा हूँ।

“ई ई पाणी आईना देव देवता पाणी आईना देवा, गोरू बाकरू तिसाई प मरों पाणी आईना देवा”… ये उस लोकगीत की पंक्तियाँ हैं, जिसे कुंवारी लड़कियां शांयकाल को गाती हुई देवधारा अर्थात लखवाड़ गाँव के थोड़ा ऊपर देवता के पानी के जलस्रोत में तब जाती थी, जब क्षेत्र में गर्मियों में सूखा पड़ता था। पानी नहीं बरसता था तब गाँव के पशुधन के लिए जल संकट हो जाता था। साथ ही गाँव पेयजल संकट मंडराने लगता था। ऐसे में दिन में ग्रामीण कसमो/कसमोई (एक तरह का किनगोड़ा) की झाडियां अपनी दरांती से काटकर देव धारे के पास ले जाते थे व संध्या काल में उन काँटों के बिछौने में कुंवारी लड़कियां लेटती थी व इंद्र देवता से प्रार्थना करते हुए गीत गाती थी कि ‘हे देव पानी नहीं बरस रहा है देवता, पानी नहीं बरस रहा है। गर्मी से आस पास के सब स्रोत सूख रहे हैं। ऐसे में हमारे पालतू जानवर गाय, भैंस, भेड़ बकरियां बिना पानी के प्यासी हैं। जीव जंतु सब बेहाल हैं। हे देव बारिश कर… तेरे से हम प्रार्थना करते हैं। उनकी इस प्रार्थना को इंद्र देव सुन लेते और फिर जोरदार बारिश होती।

वहीं गाँव की ही ड़याँटुडी (बेटी) रीना चौहान बताती हैं कि ‘@बचपन में हम भी जाते थे। जब हम छोटे थे तब जाते थे. लड़कियां गाना लगा गांव से पानी के स्रोत तक जाती थी। फिर देवता के पानी से सब लड़कियां आपस में भीगती थी। उसके बाद एक लड़की को घोड़ा बनाया जाता था, और दूसरी लड़की को उसके ऊपर बिठाकर उसके ऊंगली में कसमोई का कांटा चुभाया जाता था। उसके बाद उसके ऊंगली से निकले खून का टीका लगाया जाता था। तब वही लड़की बोलती थी कि कब बारिश होगी और हां जब वापिस घर को आते थे तो रास्ते में जितने घर पड़ते थे। वो सब भी हमारे ऊपर पानी डालते थे। सच में यकीन मानो जिस दिन वो लड़की बोलती थी कि बारिश होगी बारिश हो ही जाती थी।’

लखवाड़ का चौतरु परिवार के समाज सेवक दिग्विजय सिंह चौहान इस बारे में बताते हैं कि ‘जब कभी बारीश नहीं होती थी तो गांव की लड़कियों सामूहिक रूप से इन्द्र देवता से गीत गाते देवता के पानी के ओर जाती है।और देवता से बारिश के लिए प्रार्थना करती है। यह सब तब होता है जब रात पड़ने वाली होती है। आपने कांटों का बिस्तर लगाने का उल्लेख किया है ऐसा जौनसार के रीति-रिवाज में है जब भी देवता से किसी मन्नत की पुकार लगाई जाती है तो वहां पर कांटों का बिस्तर लगाया जाता है।’

यकीन मानिये काँटों का बिस्तर लगाकर पूरी रात उसमें लेटकर महासू देवता को पुकार लगाना यहाँ की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है। आज भी महासू मंदिर हनोल में लोग अपनी मन्नत माँगने या किसी द्वारा बेवजह परेशान किये जाने से देवता को पुकार लगाते हैं व देवता उनकी सुन भी लेते हैं। लखवाड़ के देव पानी का जुड़ाव स्वर्ग लोक में बैठे इंद्र देवता से है, ऐसा माना जाता है। यह सच भी है कि कुंवारी कन्याओं की ऐसी प्रार्थना से खुश होकर इंद्र देव प्रसन्न होकर खूब बारिश करते व उस बर्ष अन्न धन खूब होता व पशुधन में समृद्धि बनी रहती है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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