Friday, July 26, 2024
Homeलोक कला-संस्कृतिकपकोट विधायक सुरेश गढ़िया ने सपत्नी मीरा आर्या द्वारा डिज़ाइन किये "दानपुरिया"...

कपकोट विधायक सुरेश गढ़िया ने सपत्नी मीरा आर्या द्वारा डिज़ाइन किये “दानपुरिया” वस्त्राभूषणों का किया प्रदर्शन। गढ़िया बोले- लोकसंस्कृति व लोकसमाज का संवर्द्धन जरूरी।

विधायक बोले- हमें अपनी लोकसंस्कृति के मूल्यों को वर्तमान लोकसमाज के समक्ष लाना होगा।

◆ मीरा आर्या की डिज़ाइन की गई टोपी, मिर्जई, घाघरा चोली व साफा (खंडेली) मचाएगी धूम।

◆ दानपुर लोककला सांस्कृतिक संगम की अध्यक्ष मीरा आर्या ने पुराने वस्त्राभूषणों में वर्तमान का निखार लाने हेतु किया हल्का सा रंगों का प्रयोग। निखर पड़ी वस्त्र सज्जा।

◆ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मीरा आर्या के प्रयासों की सराहना की।

(मनोज इष्टवाल)

इतिहास गवाह है कि जब-जब हिमालयी भू-भाग के किसी भी परिवेश पर संकट आया तब तब यहां की मातृशक्ति ने घर से बाहर निकलकर न सिर्फ बुलन्द आवाज उठाई बल्कि उस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने तक उन्होंने चैन की सांस नहीं ली। बैदिक काल में से लेकर वर्तमान तक इस देवभूमि उत्तराखंड में जन्मी मातृशक्ति के कई बलिदान, त्याग, तपस्या व सांस्कृतिक स्वरूपों को लोकसमाज समाज में उकेरने के बहुत से किस्से कहानियों व इतिहास के पन्नों में दर्ज नामों से भरा पड़ा है। विश्व के इतिहास के पन्ने पलटकर देखिये जहां जहां जिस जिस विकसित देश ने अपनी लोकसंस्कृति लोक समाज को खोया वह धरती से ही मिट गया अब उसमें चाहे यूनान, मिश्र या रोम ही क्यों न रहा हो लेकिन इस देश की परंपरायें इतनी अक्षुण हैं कि सदियों से कई संस्कृतियों के आक्रमण झेलने के बाद हम पुनः अपनी पुरातन धर्म संस्कृति तरफ लौट ही आते हैं।

यों तो सम्पूर्ण विश्व लोक समाज व लोक संस्कृति के संक्रमणकाल से गुजर रहा है व हिन्दू सनातन संस्कृति को खंडित करने के लिए न सिर्फ अन्य धर्म व जातियां बल्कि सेकुलरिस्म के नाम पर जन्मे हिन्दू नामावली के बहुतेरे नाम भी जूटे पड़े हैं लेकिन वे जितना अधिक कुत्सित प्रयास करते हैं उसके उतने ही सुंदर परिणाम सामने आते हैं। आज इस्कॉन की गीता व कृष्ण पूरे विश्व भर में फैलकर प्रेम का संदेश दे रहे हैं।

देवभूमि उत्तराखंड भी वर्तमान में बेहद संक्रमण काल से गुजर रहा है, प्रदेश के 10 पर्वतीय जिले बदस्तूर पलायन की जद में हैं। राज्य निर्माण के बाद से वर्तमान तक उत्तराखंड के लगभग 3000 गांव खाली हो चुके हैं। हजारों हैक्टेयर खेतिहर भूमि बंजरों में तब्दील हो गयी है। वीरान गांवों में सियार, बानर, रीछ, गुलदार सुवर इत्यादि ने डेरा जमा दिया है । युवा नशे की लत में भौतिक युग के चर्मोत्कर्ष पर है और यहां का लोक समाज लोक संस्कृति रसातल पर…!

लेकिन नहीं! फिर से माँ बहने उठ खड़ी हुई। जो रामलीलाएं पुरुष करते थे उन्हें महिलाओं ने प्रारंभ करना शुरू कर दिया है। जो आंगन लोकगीतों लोकनृत्यों से गुंजायमान होते थे उन्हें प्रवासी उत्तराखंडी महिलाएं फिर जीवित करने में जुट गई। माँगल गीत हों या फिर वस्त्र व आभूषण विंहास…हमारी मातृशक्ति फिर से ठेठ अपने ट्रेंड पर लौटकर इस सबके प्रति आकर्षण पैदा करवा रही हैं। ऐसे में सीमांत जनपद बागेश्वर की “दानपुरिया” श्रीमती मीरा आर्या अपने क्षेत्र की लोक परम्पराओं की जीवंत बनाये रखने के लिए आगे बढ़ती है  व शुरू होता है दानपुरिया वस्त्राभूषणों का नया युग।

इस तरह जन्मा दानपुर लोककला सांस्कृतिक संगम।

दानपुर लोककला सांस्कृतिक संगम की अध्यक्षा मीरा आर्या कहती हैं कि राजधानी देहरादून के बड़े बड़े मंचों पर जब मैं सम्पूर्ण उत्तराखंड के लोक कलाकारों की प्रस्तुति देखती थी तो दुःख होता था कि काश…हमारा कोई  दानपुरिया भी होता जो उच्च हिमालय क्षेत्र पिंडारी, कपकोट, दानपुर की लोकसँस्कृति का परिचायक बन पाता। सोचती रही और एक दिन ऐसा आया कि हमने अपने दानपुर के लोक कलाकारों के साथ मिलकर दानपुर लोककला सांस्कृतिक संगम 2015 में पंजीकृत करवाकर ही चैन लिया।

हिमालयन समीर द्वारा बनाई गई टोपी देखी। समीर शुक्ला व उनकी पत्नी श्रीमती शुक्ला की उत्तराखंड की सँस्कृति व उसकी सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति लगन देखी तो सच कहूँ जलन भी हुई और खुशी भी। कानपुर लखनऊ से आकर मसूरी बसे इस जोड़े ने जिस तरह हमारी थाती माटी की खूबसूरत विधाओं को अपने घर संग्राहलय में उकेरा उसने विवश कर दिया कि मैं कहाँ से शुरू करूं। फिर हिमालयन डिस्कवर में ही गोपेश्वर चमोली के भट्ट जी के बारे में जाना कि वह ठेठ उत्तराखंडी टोपी व मिर्जई को समाज के बीच लाकर अपनी जड़ों तक वापस ले जाने का काम कर रहे हैं तो लगा हमें भी कुछ करना चाहिए।

मैंने भी अपने दानपुर की सफेद टोपी को अपने लोककलाकारों के माध्यम से पहच्चान देने के लिए सैकड़ों टोपियाँ बनवाई। कई तरह की टी शर्ट पर दानपुर लिखकर उसका प्रचार प्रसार करना शुरू किया लेकिन उस समय बड़ा आश्चर्य होता था जब उत्तराखंड के लोग ही कहते थे कि यह दानपुर पड़ता कहाँ है। मैं जिस मोहल्ले में पहले रहती थी वहां बहुत सारे जौनसारी समाज के लोग रहते थे जो अपने मंगल कार्यों में अपना ढांटू, चोड़ी, कुर्ती व घाघरा पहनकर अपने लोक समाज की झलक बिखेरते थे। सच में वे सब मन को तब बहुत भाते थे। मुझे लगा कहीं ऐसा न हो कि हम दानपुरिया पीछे राह जाएं। इसलिये पिछले बर्ष ठानी कि मैं अपने दानपुर का प्रतिनिधित्व करने कुछ ऐसा कर गुजरुँ जिस में हमारा लकक समाज व लोकसँस्कृति पूरे प्रदेश नहीं बल्कि पूरे विश्व पटल पर दिखाई दे। इधर मंजू टम्टा दीदी ने पिछोडी पर रंगोली का काम करना शुरू कर दिया तो मनोरमा मुक्ति अपने तरीके से इसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं।

मीरा आर्या बोली- सर अब यह देखकर बड़ा शुकून मिलता है कि गढ़वाल कुमाऊँ की बहनें अपने लोकसमाज व लोकसँस्कृति के विभिन्न बिम्बो पर काम कर उसे जीवित रखने का प्रयास कर रही हैं। मैंने मन बनाया कि जब जौनसार बावर की बाहर सम्भ्रान्त घरानों की महिलाएं अपनी पारम्परिक पोशाकों में सभी मंगलकार्यों में राजधानी में शिरकत कर सकती हैं तब हम दानपुरिया क्यों नहीं।

आखिरकार बहुत सोच समझकर फैसला लिया कि अगर हमने अपने वस्त्र थोड़ा मोडिफाई नहीं किये तो उनका चार्म वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाना सम्भव नहीं होगा इसलिए मैंने अपनी दानपुरिया टोपी को कई कलर्स देकर उनमें उच्च हिमालयी क्षेत्र दानपुर का बुरांश व राज्य पक्षी मोनाल का फ़ोटो उकरने के साथ-साथ ऐपण रंगोली की एक खड़ी पट्टी टोपी में लगाकर अपनी कुमाऊं की लोकपरंपराओं को दर्शाने का यत्न किया है। गहन शोध में यह जानकारी जब हासिल हुई कि हमारा उत्तराखंडी समाज कुर्ते के स्थान पर पूर्व में मिर्जई पहनते थे तो पुरुषों का अंग वस्र मिर्जई डिज़ाइन किया व उसे दानपुरिया मर्दाना भेषभूषा में सम्मिलित किया। दानपुरिया घाघरा जौनसारी घाघरे से हटकर होता है क्योंकि दानपुरिया घाघरा 7 पाट का होता है व उसमें प्लेट की जगह चुन्नट होती हैं। बाकी घाघरे की खूबसूरती बढाने के लिए उसमें निचले हिस्से पर तीन अंगुल चौड़ी पट्टी लगाई जाती है। मेरे डिज़ाइन घाघरे में पट्टी के साथ मेरे द्वारा ऐपण रंगोली का भी प्रयोग किया जा सके ताकि हम गर्व महसूस कर सकें कि यह घाघरा “दानपुरिया” है। और हां इस घाघरे पर 07 पाट की जगह 06 पाट रखे हैं । चूंकि दानपुरिया मां बनने अक्सर घाघरे के पिछले हिस्से के निचले हिस्से को कमर के पिछले हिस्से में ठूंस देती हैं जबकि मेरे घाघरे में ऐसा नहीं है। इससे कपड़े की बजत के साथ घाघरे की खूबसूरती बरकरार रहेगी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व उनकी पत्नी को भेंट किया पहला जोड़ा।

मीरा आर्या अपने क्षेत्रीय विधायक (कपकोट विधान सभा) सुरेश गढ़िया की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि यह उन्ही का प्रयास है जो मैं “दानपुरिया” लोक संस्कृति की धरोहर के रूप में अपने डिज़ाइन किये हुए वस्त्र प्रदेश के पहले नागरिक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व उनकी श्रीमती को भेंट कर सकी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मेरे प्रयासों की जिस तरह से प्रशंसा की उससे काफी ऊर्जा मिली है। धामी जी ने टोपी पर अंकित चिह्न को पहचानते हुए कहा यह मोनाल है ना। उन्हें बड़ी खुशी हुई व वे उसी टोपी को पहनकर नैनीताल के लिए रवाना हुए।

विधायक सुरेश गढ़िया व उनकी पत्नी हेमलता गढ़िया ने वस्त्राभूषण पहनकर किया प्रदर्शन।

यह देखना यकीनन अद्भुत लगता है जब कोई जनप्रतिनिधि अपने लोक समाज व लोक संस्कृति के प्रति सच्ची ईमानदारी के साथ अपनी दीवानगी दिखाता है। ऐसा ही कुछ कपकोट विधायक सुरेश गढ़िया व उनकी धर्मपत्नी हेमलता ने भी किया। जब मीरा आर्या उन्हें भेंट स्वरूप “दानपुरिया” अंग वस्त्र भेंट करने गयी तब बिना देरी किये विधायक व उनकी धर्मपत्नी ने वस्त्राभूषण पहने व अपना फोटो सेशन किया। विधायक गढ़िया बोले- मीरा आर्या जी ने जिस तरह लोक संस्कृति की अलख जगाने के लिए दानपुरिया वस्त्र विंहास डिज़ाइन किया है वह अद्भुत है। मुझे लगता है कि अपने लोक समाज के प्रति हमारा यह दायित्व बनता है कि हम अपनी जड़ों को न भूलें। उस से जुड़कर आगे बढ़ें ताकि हमारी वास्तविक पहचान के साथ हम समाज मे बीच जाने जा सकें। हमें अपनी लोकसंस्कृति के मूल्यों को वर्तमान लोकसमाज के समक्ष लाना होगा।

बहरहाल मीरा आर्या द्वारा डिज़ाइन ये “दानपुरिया” वस्त्र जल्दी ही मार्केट में उपलब्ध होंगे जिन्हें सम्पूर्ण देश ही नहीं विश्व में कोई भी पहनकर कह सकता है कि मैं हिमालय के बेहद नजदीक स्थित कपकोट दानपुर से हूँ।

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES

ADVERTISEMENT