Monday, October 20, 2025
Homeउत्तराखंडउत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के किसानों के लिए पशुधन के साथ बकराव...

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के किसानों के लिए पशुधन के साथ बकराव व मत्स्य पालन बाजार सजा। अब बकरी व मछली मांस बिक्री का सरकार खुद तलाशेगी बाजार।

(मनोज इष्टवाल)

“बकरौ-उत्तरा” राजधानी में आयोजित दो दिवसीय ग्रांड फ़ूड फेस्टिवल में जहां प्रदेश के बड़े होटलों के काउंटर सजे हैं, वहीं फ़ूड शौकीन बड़ी मात्रा में पैसिफिक माल के B3 पार्किंग ग्राउंड में लगे इस ग्रांड फ़ूड फेस्टिवल का खूब आनंद भी उठा रहे हैं। आज इस फ़ूड फेस्टिवल का अंतिम दिन है, जिसमें पहाड़ी बकरे का स्वादिष्ट मांस, हिमालयी नदियों में पाई जाने वाली महाशीर व ट्रॉट मछली के साथ पहाड़ी उखड़ में उगने वाले शुद्ध ऑर्गेनिक चावल व अन्य का भरपूर आनंद ले रहे हैं। सबसे मुख्य बात यह है कि प्रदेश भर के होटल व्यवसायी बकरौ व फिश की कूकिंग से कई तरह के ब्यंजन बनाकर उन्हें बेहतरीन तरीके से परोसने का काम कर रहे हैं। ट्राउट मछली और पहाड़ी बकरे के मीट से बने व्यंजनों के शौकीन हैं तो दो दिन तक दून में आप इनका स्वाद ले सकते हैं।

उत्तराखंड सरकार के सचिव पशुपालन एवं सहकारिता आर मीनाक्षी सुंदरम ने बातचीत में जानकारी देते हुए बताया कि पशुपालन और सहकारिता विभाग के तत्वावधान में 17 दिसंबर से यहां राजपुर रोड स्थित एक माल में दो दिवसीय ‘बकरो-उत्तरा फिश ग्रैंड फूड फेस्टिवल’ का आयोजन किया गया है। राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना के अंतर्गत प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में बकरी और मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इनके मीट को बकरो और उत्तरा फिश के नाम से बेचा जा रहा है।

उन्होंने बताया कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के उत्पादों को दूनवासी बखूबी जानें, यह भी फेस्टिवल का उद्देश्य है। फेस्टिवल में देहरादून और मसूरी के प्रसिद्ध होटलों के सेफ ट्राउट मछली और बकरे के मीट से व्यंजन तैयार करेंगे। इसके अलावा दूनवासियों के लिए कुकी कंप्टीशन भी रखा गया है, जिसमें भाग लेने वालों को प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार दिए जाएंगे। फेस्टिवल में दोनों दिन शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे।

मीनाक्षी सुंदरम ने इस फेस्टिवल के पीछे का मकसद समझाते हुए कहा कि यह एक बृहद योजना है जिसे पहाड़ी जनपदों के कृषकों तक पहुँचाने के लिए सरकार विगत बर्षों से प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद है कि जो कम पढ़े लिखे युवा रोजगार की तलाश में शहरों की खाक छान रहे हैं व जैसे तैसे शहरों में जीविकोपार्जन कर रहे हैं उन्हें सरकार 10 बकरियों के साथ 10बकरियां फ्री, मछली उत्पादन के लिए महाशीर, गोल्डेन महाशीर, ट्रॉट सहित पहाड़ी नदियों में पैदा होने वाली समस्त मछलियों के बीज तालाब इत्यादि मुहैय्या करवा रही है एवं सरकार स्वयं ऊंचे दामों पर उनसे बकरे व मछली खरीदकर उसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचा रही है। उन्होंने कहा कि इस से न सिर्फ रोजगार के संसाधन बढ़ेंगे व युवा स्वरोजगार से जुड़ेगा बल्कि रिवर्स माइग्रेशन भी करेगा। पहाड़ सरसब्ज होंगे व बंजर पड़े खेत आबाद होंगे, खंडहर होने वाले गांवों सजेंगे। पहाड़ खुशहाल होंगे।

सचिव सुंदरम ने कहा कि भेड़-बकरी पालन उत्तराखंड का परंपरागत व्यवसाय है। इसे बढ़ावा देने में राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। पूर्व में इसे रुद्रप्रयाग व अल्मोड़ा जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था, अब पौड़ी और बागेश्वर में भी इसे विस्तार दिया गया है। परियोजना के अंतर्गत भेड़-बकरी पालकों को 10 बकरी और एक बकरा उपलब्ध कराने के साथ ही इन्हें वैज्ञानिक ढंग से पालने को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन्हीं बकरियों का मीट बकरो के रूप में देहरादून, चंडीगढ़, दिल्ली और एनसीआर में भेजा जा रहा है।

उन्होंने बताया कि ट्राउट फिश के उत्पादन के लिए पहाड़ की जलवायु अनुकूल है। इस मछली की मांग भी बहुत अधिक है। राज्य में उत्पादित ट्राउट फिश को उत्तरा फिश नाम से बेचा जा रहा है। ट्राउट फिश का उत्पादन 6 से 18 डिग्री तापमान के बीच साफ-सुथरे अविरल पानी में होता है। विभाग ने अब तक इसके 28 क्लस्टर बनाए हैं। अगले साल तक इनकी संख्या 50 हो जाएगी। राज्य के छह जिलों चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में ट्राउट फिश का 2000 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है, जिसे 10 हजार मीट्रिक टन तक बढ़ाने की योजना है। उन्होंने बताया कि कई प्रवासी भी उत्तराखंड लौटकर ट्राउट पालन से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि बर्तमान में इसकी बाजार खपत 6000 मीट्रिक टन तक पहुंच गई है जो शीघ्र ही 10 हजार मीट्रिक टन को पार कर जाएगी ऐसी उन्हें उम्मीद है।

पहाड़ी बकरी पालन से पशुपालकों की आय में बढ़ोतरी होगी। पहाड़ी नस्ल की बकरियों का मांस हिमालयन मीट ब्रांड से देश-विदेश में भेजा जाएगा। इससे पूर्व उनका विभाग “हिमालयन गोट मीट” को दुबई के अंतररराष्ट्रीय बाजार में लांच कर चुका है, जिसके प्रारम्भिक रिजल्ट सुखद रहे लेकिन देश के बड़े बड़े स्लॉटर हाउसों की मनमानी में हम इसे सफलता पूर्वक जारी रखने में नाकाम रहे लेकिन अब सम्पूर्ण योजना के साथ हम दुबारा पूरी जिम्मेदारी के साथ इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार देने की प्रबल दावेदारी करेंगे। केंद्र सरकार ने राजकीय सहकारिता विकास निगम के माध्यम से उत्तराखंड के लिए कुल 3200 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की है। योजना के तहत बकरियों के नस्ल सुधार का कार्य भी होगा।

उन्होंने बातचीत में बताया कि एक रिसर्च से पता चला है कि पर्वतीय क्षेत्र में काश्तकार हिमालयी भू-भाग के मखमली बुग्यालों भरे जंगलों, खेतों, मुंडेरों व ढालों में अपनी बकरियों को चुगान के लिए ले जाते हैं। जहां बकरियां विभिन्न किस्म की घास, डल घास व आयुर्वेदिक औषधि पादपों को चुगती हैं, और शारीरिक रूप से बेहद स्वस्थ होती हैं। वहां वह शुद्ध रूप से 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक पादपों का भक्षण करती हैं, यही कारण है कि मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा पहाड़ी बकरियों का मांस अधिक पौष्टिक होता है।

उन्होंने बताया कि राजकीय सहकारिता विकास निगम के माध्यम से सरकार पर्वतीय क्षेत्र में बकरी पालन को पशुपालकों की आजीविका का साधन बनाएगी। योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में जिन पशुपालकों को पास 10 से अधिक पहाड़ी नस्ल की बकरियां हैं, विभाग ऐसे पशुपालकों की सोसायटी गठित कर रहा है। एक सोसाइटी में कम से कम दस पशुपालकों को शामिल किया जाना है।

मीनाक्षी सुंदरम के अनुसार अल्मोड़ा जिले में पशुपालन विभाग अब तक 50 सोसाइटियां गठित कर चुका है। सोसाइटियों के माध्यम से पहाड़ी बकरियों के नस्ल सुधार का कार्य भी किया जाएगा। जिसमें सिरोही, बरबरी, ब्लैक बंगाल, जमनापारी नस्ल शामिल है। पहाड़ी बकरियों का मांस हिमालयन मीट ब्रांड से बिक्री किया जाएगा। उत्तराखंड देश का पहला पर्वतीय राज्य है। जिसने पशुपालकों की आमदनी बढ़ाने के लिए हिमालयन के नाम से बकरे के मीट और उत्तरा फिश की ब्रांडिंग की है। इससे जहां पशुपालकों की आय का साधन बढ़ेगा।

उन्होंने बताया कि आने वाले समय इस योजना को नैनीताल, ऊधमसिंह नगर समेत अन्य जिलों में शुरू किया जाएगा। राज्य में 7000 से अधिक महिला पशुपालकों की आजीविका इसी से चलती है। मंत्री ने फिश व मीट ऑफ व्हील्स का निरीक्षण किया।

सचिव पशुपालन आर मीनाक्षी सुंदरम ने कहा कि बेहतर मार्केेटिंग व्यवस्था से पशुपालकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा रहा है। इस परियोजना को एनसीडीसी राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम द्वारा फंडिंग की व्यवस्था की जा रही हैं। उत्तरा फिश व बकरौ के तहत प्रदेश में 500 से ज्यादा लोग मछली पालन और बकरी पालन का व्यवसाय करने वालों के साथ संपर्क में रहेंगे और बकरी के तैयार होने पर उसे खरीद लेंगे।

मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि “हिमालयन गोट मीट” देश भर में ₹800 प्रति किलो की दर से अच्छी कीमत पर बिक रहा है। जिसे आधुनिक मशीनों से ग्लब्ज पहने दस्तानों से बेहद सफाई के साथ बाजार तक पहुंचाया जाता है, जिसे आपके हाथ पहली बार छूते हैं। उन्होंने बताया कि देश के कई प्रतिष्ठित होटलों में “Bakraw” नाम से “हिमालयन गोट मीट” सप्लाई हो रहा है व उसके स्वाद का सभी आनंद उठा रहे हैं।

प्रबन्ध निदेशक डॉ अभिनाश आनन्द ने कहा सच कहिये तो यह ड्रीम प्रोजेक्ट इसलिए लाया गया है ताकि हम उत्तराखंड के उस आखिरी व्यक्ति तक पहुंच पायें जिसे हम रोजगार उपलब्ध नहीं करवा पाये। बकरी पालन या मत्स्य पालन को पढ़ा लिखा व्यक्ति ही नहीं बल्कि अनपढ़ व्यक्ति भी अपने गांव में आसानी से रोजगार में अब बदल सकता है क्योंकि उसे मार्केट स्वयं सरकार दे रही है, वह भी बाजार मूल्य से ज्यादा रेट पर खरीदकर। साथ ही बकरी व फिश पालन का प्रशिक्षण व स्वास्थ्य जानकारियों के साथ। उम्मीद है यह विश्वसनीय योजना आने वाले समय में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहाड़वासियों के लिए शानदार मार्केट तलाशेगी व युवा का इस दिशा में रुझान बढ़ेगा।

वहीं समाजसेवी उदित घिल्डियाल के अनुसार यह एक शानदार व स्वागत योग्य पहल है । इससे उत्तराखंड के उन 10 जिलों के लोगों को फायदा पहुंचेगा जिनके विकास के लिए मूलतः यह राज्य बनाया गया था। इससे दोहरे फायदे यह होंगे कि दिल्ली एन सी आर में  रह रहे मूल उत्तराखंडी की जब यह समझ में आएगा कि ऐसे रोजगार से उन्हें घर बैठे आमदनी का जरिया मिल जाएगा तो स्वाभाविक तौर से उनका रुझान अपनी थाती माटी की ओर होगा व वे खुद या परिजनों के लिये ऐसे मौके तलाशेंगे जिससे उन्हें लाभ पहुंचे। उन्होंने कहा पहाड़ी बकरा सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं होता बल्कि यह स्वास्थ्य बर्द्धक भी है अतः यह सत्य की देश की राजधानी दिल्ली से राज्य की राजधानी देहरादून पहुंच आप इसके स्वाद का आनंद ले सकते हैं।

ज्ञात हो कि देेश में इस समय जमनापारी, बरबरी, सिरोही, मारवाड़ी, शेखावाटी, लोही, परबतसरी, झखरानी, ब्लैक बंगाल, तोतापुरी, कच्छी बकरी, गद्दी, बीट इत्यादि व विदेशी बकरियों में अल्पाइन, अंगलोनुबियन, सानन, टोगेन वर्ग बकरियां पाई जाती हैं जिनमें कुछ बकरियों की कीमत 50 हजार से लेकर 03 लाख तक होती है। जबकि पहाड़ी नस्ल की बकरियों की कीमत 2000 से लेकर 15000 तक की कीमत में उपलब्ध होती हैं लेकिन अब उत्तराखंड के निम्न हिमालयी क्षेत्रों के बकरी व्यवसायियों द्वारा राजस्थान से विभिन्न प्रजाति की बकरियों का व्यापार शुरू कर दिया है जिस से उन बकरियों की कीमत में इजाफा हुआ है व पहाड़ी मूल की कम बालों वाली बकरियां घटती जा रही हैं। जबकि स्वास्थ्य व पौष्टिकता के आधार पर पहाड़ी मूल की बकरियों का मांस सेहत के लिए सबसे लाभप्रद है और यही कारण भी है कि उसका बाजार भाव कीमत सरकार द्वारा ₹800 प्रति किलो तय किया है जो आम बकरों के बाजार भाव मूल्य से 200 से 250 रुपये ज्यादा है।

बहरहाल “बकराव-उत्तरा” ग्रांड फ़ूड फेस्टिवल में “द फर्न ब्रेंटवुड रिसोर्ट मसूरी, द एटलांटिस क्लब देहरादून, द टेस्ट ऑफ कश्मीर, इंस्टीटूट ऑफ होटल मैनेजमेंट देहरादून, मोनेस्ट्री द व्यू पॉइंट, वाक इन वुड्स देहरादून, पंजाब ग्रिल, फ़ॉर पॉइंट बाय शेरेटन, ताज ऋषिकेश रिसोर्ट एन्ड सपा, जे डब्लू मॉरिट मसूरी सहित कई नामी होटल्स ने अपनी भागीदारी निभाई है।

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES