(मनोज इष्टवाल)
एक गीत जो प्रकृति के सजीले श्रृंगार यशोगान करता है। एक गितार जो अपने बोलों में ढालकर गीत की आत्मा तृप्त करता है। एक संस्कृति जो अपनी प्रकृति, समाज, देवता, मेले व सबसे अधिक महत्वपूर्ण उन फूलों का गुणगान करती है जो उन्हें प्रकृति ने मनोरम बुग्यालों में देवताओं की क्यारियों में खिले फूलों को ऊंचने व उनकी मदमाती खुशबू के संग नृत्य करने खुशी मनाने को प्रदत्त किये हैं।
उत्तरकाशी जनपद के भागीरथी नदी घाटी क्षेत्र के इस गीत को यूं तो बरसों से इस क्षेत्र के आंगन, थौळ, मेले, कौथिग में सामूहिक स्वर गाते आ रहे हैं लेकिन पहली बार लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी इस गीत को तब आम जन तक सुनने के लिए लाए जब वे उत्तरकाशी में सूचना विभाग में कार्यरत थे व इसे ऑडियो के माध्यम से देश समाज के सामने लाये। बर्षों तक यह गीत विभिन्न स्कूली कार्यक्रमों की प्रस्तुति व लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की मंच प्रस्तुति में उपस्थिति दर्ज करता रहा। अपने खूबसूरत बोलों को ठेठ उत्तरकाशी की भागीरथी घाटी के शब्दों के साथ पिरोती शब्दमाला कर्णप्रिय तो हमेशा रही है लेकिन आम गढ़वाली के लिए इन शब्द विन्यास को समझना बड़ा मुश्किल सा काम है।
अब जब सुप्रसिद्ध गायक रजनीकांत सेमवाल ने गीत की अंतरात्मा से बात करते हुए इसके शब्दों को अपने संगीत में ढालकर उसके फिल्मांकन के साथ उसे बाजार में उतारा है, तब यह गीत सचमुच एक गीत नहीं बल्कि एक समाज उसके लोक व लोक संस्कृति के साथ प्रकृति का गुणगान कर भागीरथी नदी घाटी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता दिखाई दे रहा है।
फ़ूलों को गीतों का माध्यम तो हम अनवरत हर काल में हर बोली- भाषा में बनते देखते आ रहे हैं लेकिन प्रकृति और फूलों को इतना पूजनीय स्वरूप किसी और समाज ने दिया होगा यह कहना मुश्किल है। रजनीकांत के गीतों के विषयवस्तु की यह खूबसूरती रही है कि वे गीत की अंतरात्मा जब तक तृप्त नहीं कर देते तब तक उन्हें आराम नहीं मिलता। यहां रजनीकांत की विजुअल फिल्मांकन टीम ने बहुत मेहनत की है। इसमें कई बर्षों पूर्व के वे रॉ स्टॉक भी जोड़े गए हैं जिसमें उत्तरकाशी के ग्रामीण क्षेत्रों जुटने वाले मेले, थौळ व कौथिग शामिल हैं। इसीलिए विजुअल क्वालिटी भी मौसम के साथ रंग बदलती दिखाई दे रही है जो आंखों को शुकुन व उसका संगीत कानों को कर्ण प्रिय बना देता है। सिनेमाफोटोग्राफर शुभम कैंतुरा व अजय गौनियाल ने यकीनन अब कई विषयों में अलग से मेहनत करनी शुरू कर दी है। एडिटर गोविंद नेगी ने न सिर्फ सुंदर वादियों घाटियों की लोकलुभावन छटा में उस गैप को भरने का काम किया है जो गीत के बोलों के बाद बजने वाला संगीत में होता है बल्कि उन्होंने यहां भी फिलरों के साथ भरपूर मेहनत कर इस गीत में चार चांद लगा दिए हैं।
गीत के बोलों के बीच बिर्थी झरना, शेल्कू भाद्रपद मेला, आषाढ़ी थौळ, खरसाड़ी के थडिया चौंफला, मायके आती बेटियों के छमोरा त्यौहार व ऊंचे बुग्यालों, घाटियों में खिलने वाले नीले-पीले जयांण पुष्प व ब्रह्मी कमल पुष्पों का जो गुणगान कर उस सबको सोमेश्वर देवता (कुबेर) से जोड़कर उसकी स्तुति की गई है वह अप्रितम है।
चूंकि रजनीकांत सेमवाल स्वयं भी सोमेश्वर व माँ गंगा के पुरोहित होने के साथ-साथ भागीरथी नदी घाटी के हैं तो स्वाभाविक है भाषाई बोलों की आत्मा उनसे भी बात करती होगी तभी तो उन्होंने हर बोल को न्यायोचित्त सम्मान देते हुए उसका विजुअलाइजेशन करवाया है। इस गीत ने सचमुच एक लोक समाज, लोकसंस्कृति व प्रकृति पर्यावरण के साथ देवस्थान का गुणगान कर पूरी भागीरथी नदी घाटी का प्रतिनिधित्व कर सम्पूर्ण विश्व के सामने अपने समाज का वह स्वरूप सामने रखा है जिसमें यहां सिर्फ देवता ही नहीं पूजे जाते बल्कि प्रकृति के अमूल्य उपहार फूलों की भी यहां पूजा होती है।
निर्मात्री श्रीमती मातेश्वरी सेमवाल की यह अनुपम भेंट यकीनन हम सबको पसन्द आएगी क्योंकि इस गीत से आप सिर्फ आनन्द नहीं लेंगे बल्कि भागीरथी नदी घाटी सभ्यता व संस्कृति से भी जुड़ेंगे। निर्देशन पक्ष में रजनीकांत सेमवाल व सह निर्देशक सोहन सिंह चौहान की मेहनत दिखाई दे रही है। इस गीत का संगीत संयोजन का काम रंजीत सिंह ने किया है। प्रोडक्शन कंट्रोलर के रूप में अब्बू रावत व मुख्य किरदार की भूमिका में रजनीकांत सेमवाल के साथ जागृति कोठारी के शानदार अभिनय ने गीत के साथ उस लोकसंस्कृति की सभ्यता संस्कृति को अपने वस्त्र सज्जा, रूप विन्यास व आभूषण सज्जा से बखूबी सजाया है। पूरी टीम को शुभकामनाएं।