Thursday, August 21, 2025
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इगास की डल्ली अर पैणा कि पकोड़ी।

इगास की डल्ली अर पैणा कि पकोड़ी।

(मनोज इष्टवाल)

सोशल  मीडिया के युग और आधुनिकता की कभी न खत्म होने वाली दौड़ में हम सभी लोग निरन्तर भाग रहे हैं। समय के साथ -साथ बदलते परिवेश और सामाजिक आवश्यकताओं के चलते हमने अन्य भाषाओं तथा संस्कृतियों को भी स्वीकार किया है….!
लेकिन कहीं न कहीं हम अपनी बोली, परम्पराओं और लोकपर्वों को भूलते चले गए…जिसके कारण हमारी ये सभी अमूल्य धरोहरें धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर हैं।
आइये मिलकर अपनी संस्कृति और लोकपर्वों को सहेजने की शुरुआत करते हैं। इगास हमारा लोकपर्व है…आइये इसको मिलकर मनाते हैं।
#HappyEgaas

(इंडिया टुडे के एसोसिएट आर्ट डायरेक्टर चन्द्रमोहन ज्योति व हिमालयन डिस्कवर के सम्पादक मनोज इष्टवाल)

माउंटेन फ़ूड कनेक्ट (फील द टेस्ट) व माउंटेन विलेज स्टे (धराली, हर्षिल, उत्तरकाशी) द्वारा उत्तराखंडी लोकपर्व इगास पर सौगात के रूप में इगास की ड़ल्ली के रूप में हमें यह सुंदर सी टोकरी उपहार स्वरूप भेंट की। कल ठाकुर रतन सिंह असवाल के घर से भी शुद्ध उड़द की दाल की पकोड़ी इगास की पैणा की पकोड़ी के रूप में प्राप्त हुई। मन तृप्त हो गया क्योंकि अपनी लोक संस्कृति की मूल जड़ों की ओर लौटते हमारे ये वे लोग हैं जो सिर्फ हवाई बातें नहीं करते बल्कि उसको मूल रूप में प्रस्तुत भी कर रहे हैं।

(बांयें से दायें अखिलेश डिमरी, हिमांशु अग्रवाल को ड़ल्ली देते अरण्य रंजन व अंत में विनय केडी)

हैप्पी इगास के शब्दों के साथ सौगात में टोकरी में स्थानीय उत्पादों की वानगी प्रस्तुत करने वाले मित्र अखिलेश डिमरी, अरण्य रंजन व विनय केडी  (माउंटेन फ़ूड कनेक्ट/माउंटेन विलेज स्टे) में अपनी भावनाओं का इजहार भी उसी मिठास के साथ प्रस्तुत किया है जितनी मिठास हमारे इस लोकपर्व में है।
इन युवाओं की जिजीविषा को देखिए कि ये सर्व सम्पन्न होने के बावजूद भी अपने लोकसमाज की जड़ों का आभास करवाते हुए रिवर्स माइग्रेशन के लिए हम सबको लालायित करते नजर आ रहे हैं। इनके द्वारा हर्षिल, धराली व उत्तरकाशी की खूबसूरत वादियों में होम स्टे की एक चेन शुरू की है, जो अप्रितम है। यहां ठहरने वाले मेहमानों को अतिथि देवो भव: परम्परा का आभास कराते ये युवा मैदानी भू-भाग तक अपनी शांत प्रकृति, खूबसूरत वादियों घाटियों के रैबासियों के आचार व्यवहार की भाषा को उनके उत्कंठ में उतारकर उसका बेहद सुंदर स्वरूप प्रस्तुत करते हैं। ताकि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में रहने वाले हिमवासियों की दिनचार्य व मृदु स्वभाव के साथ यहां कम संसाधनों में भी प्रेम प्यार के साथ परोसें गए व्यंजन व सुंदर रात्रि विश्राम से जुड़ी यादें उनके साथ उनके समाज तक पहुंचें।
अखिलेश डिमरी व विनय केडी नामक ये शख्स देहरादून में रहकर ठीक ठाक भौतिकवादी जीवन यापन करने वाले ठहरे वहीं अरण्य रंजन ने टिहरी के खाड़ी नामक अपने पैतृक आवास के ही हमारी संस्कृति की अनमोल परम्पराओं को अमलीजामा पहनाने का एक यत्न किया और वह सुंदर चल पड़ा। अरण्य रंजन लेखन के साथ हमारे पहाड़ी व्यंजनों को परोसने का काम बखूबी कर रहे हैं, उनके उत्पाद राजधानी देहरादून के बाजार की शान कहे जाते हैं।
वहीं दूसरी ओर अखिलेश डिमरी व विनय केडी की जोड़ी ने कहा कि उन्होंने सोचा कि हम कागजी बातें करके कागजी महल न बनाकर इसे सबके सामने मूर्त रूप में परोसें ताकि लोग सिर्फ शब्द जाल में न उलझें व हमारी तरह यहां के पलायनवादी रैबासी पुनः रिवर्स माइग्रेशन कर अपनी जड़ों में लौटें। हम एक मुहिम की तरह इसे लेकर आगे बढ़ें हैं व हमारे द्वारा अपनी अमूल्य जमापूंजी इस पर खर्च की गई है। हम सफल होंगे इसी मूल मंत्र के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
ज्ञात हो कि ये मित्र तीन अलग अलग जिलों से एक चौथे जिले में अपने कार्य क्षेत्र को बढ़ाने का यत्न कर रहे हैं। अरण्य रंजन टिहरी जनपद से तो अखिलेश डिमरी चमोली गढ़वाल से वे विनय केडी सतपुली पौड़ी जनपद से हैं व इन्होंने अपना कार्यक्षेत्र सुदूर उत्तरकाशी जनपद की वे वादियां चुनी हैं जहां कभी राजकपूर की फ़िल्म “राम तेरी गंगा मैली” की शूटिंग हुई थी। वहीं इन्होंने एक खूबसूरत आशियाने को होम स्टे के रूप में सँजोया है, जहां सेबों के बागीचे में झूला-झूलते हर्षिल के सेब, शांत प्रकृति को संगीत सुनाती देवदार के पेड़ों के झुरमुट से गुजरती हवा, आंगन के परिवेश में कल-कल, छल-छल करती हिमनदी और चांदी का मुकुट धारण किये यहां के दारुण यानि उच्च हिम शिखरों के मध्य निवास करते श्रम साध्य खूबसूरत यहाँ के मानस। अब भला आपको शांति व शुकुन के कुछ पल गुजारने के लिए लिए और चाहिए भी क्या। यहां आकर आप हिमालयी पक्षियों के झुंड, यदाकदा हिम तेंदुवे, झबरू-गबरू भोटिया नस्ल के कुत्ते व शानदार मृग व मृग छौने आपका ध्यान अपनी ओर खींचते दिख जाएंगे।
बहरहाल इन परिश्रम के धनी हाथों द्वारा माउंटेन विलेज स्टे व माउंटेन फ़ूड कनेक्ट के रूप में उपहार स्वरूप इगास लोक पर्व पर भेजी गई ड़ल्ली (भेंट) जिसमें अरसे, रोट, तिल्लडू व मीठे नमकपारे शामिल थे ने मन मोह लिया।

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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