Thursday, February 6, 2025
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चकबंदी प्रेणता गणेश सिंह गरीब…! अरे कहाँ जा रहे हो उस पागल के यहाँ……?

(मनोज इष्टवाल 23 अक्टूबर 1994)

आज थोड़ा मौसम के मिजाज में ठंडक थी। मैं पौडी से मुंडनेश्वर भेटी वाली बस से मुंडनेश्वर बाजार में उतरा था। जहां सड़क के नीचे मुंडनेश्वर बाजार व सड़क के अंतिम सिरे पर कल्जीखाल की ओर उनियाल जी की राशन की दुकान व भेटी छोर पर 4 से पांच दुकानें हैं। सड़क मार्ग से खैरालिंग महादेव जाने वाले रास्ते पर भी कुछ मकान व दो एक दुकानें। गिरधारी लाला के यहां बड़े बड़े बकरे…! गोरा चिट्टा यह व्यक्ति प्रथम दृष्टा बात करने के अंदाज में आकर्षक लगा। कोई बकरियों का खरीददार उनसे मोल तोल कर रहा था।

पास की ही एक चाय की दुकान में जब मैंने पूछा कि ये गणेश सिंह गरीब जी का घर सूला गाँव में है या सड़क पर ही है?
तब जवाब मिला था- अरे कहाँ जा रहे हो उस पागल के यहाँ..! अच्छा ख़ासा दिल्ली लोधी कालोनी में अपना कारोबार करता था।  पता नहीं क्या सूझी…! घर आया और लगा चकबंदी-चकबंदी चिल्लाने..! गाँव वालों ने बोला इतना खेत व खेती का जानकार है तो अपने नगद खेत हमें दे दे और ऊपर डांडा की बंजर जमीन आबाद करके दिखा तब माने! हम क्यों अपने उपजाऊ खेतों की जगह दोयम जमीन लें या फिर बंजरों को खोदें।

बीड़ी को दांतों तले दबाकर चाय की केतली से कांच के गिलास में धार बनाकर चाय उड़ेलते वह लाला जी का नाम लेकर बोले-है न दिदा…! इस सनकी बुढे ने अपनी सनक के कारण अपने बाप-दादाओं के नगद खेत गांव वालों को  दे दिये और यहाँ ऊपर सड़क किनारे के बंजर व दोयम भूमि में मजदूरों की तरह लगा अपना हाड-मांस खपाने …। घरवाली बेचारी खानदानी घर की है… ..! अरे वो तल्ला खांडा की असवालों की बेटी जो इस के साथ कंधे से कंधा मिलाये चलती है….! गाँव बिरादरी ने इसकी इसी सनक के कारण इसे गाँव से एक तरह से बेदखल कर रखा है। तुम कहाँ जा रहे हो वहां…!  उसे तो चाय भी अपने पल्ले से पिलानी पड़ती है। जब आडू-खुमानी का समय होता है तो झोले में भरकर ले आता है बेचने यहां बाजार में । उसी से जो भी ढेला-पाई मिला उसी से चला लेता है अपना व परिवार का हर्चा-खर्चा।

मैं चाय की चुश्कियों के साथ बड़े ध्यान से उस व्यक्ति को सुन रहा था जो चाय की दुकान में बैठा हुआ था फिर वह गणेश सिंह गरीब की जगह उनके लड़के का व्याख्यान
सुनाने लगा। मेरी उनके लड़के में दिलचस्पी नहीं थी इसलिए मैंने उन्हीं के प्रसंग को आगे बढ़ाया, क्योंकि मुझे दूरदर्शन के लिए उनका इंटरव्यू जो लेना था।  कुछ रुककर वह व्यक्ति किसी को पुकार कर बोला- अरे उ पागल छैन्छ घारम की न…? (अरे वह पागल घर मैं हैं भी या नहीं) ।जवाब में पता चला कि वह घर पर ही हैं।  मैंने शुकून की सांस ली, लेकिन उस व्यक्ति का टेप रिकॉर्डर बंद नहीं हुआ ..! जाने कहाँ की खुन्नस निकाल रहा था वह गणेश सिंह गरीब पर। 

बोला- चलो घारम ही च, वैसे वो घर पर नहीं मिलता, कभी झोला उठाकर कभी किसी गाँव कभी किसी गॉव…। लोग खाना खिला-खिला कर और उसकी बकवास सुन-सुन कर पक गए हैं। मैं तो कहता हूँ वहां जाने की जगह आप मेरे घर चलो ..।

मेरी चाय समाप्त हो गयी थी।  मैंने दुकानदार मंजेडा जी को उनके और अपने चाय के पैंसे दिए और मुस्कुरा कर उन्हें इस बात का धन्यवाद दिया कि उन्होंने मुझे अपने घर चलने का न्यौता तो दिया।

जब मैं उनके घर पहुंचा अधिंयारा गहराने लगा था..आपसी परिचय के बाद एक पास ही पड़ी टूटी कुर्सी बैठने के लिए नसीब हुई और बिना दूध की चाय लिए उनकी अर्धांगिनी प्रकट हुई। बोली नाराज मत होना आजकल गाय दूध नहीं देती और यहाँ आस-पास मिलता नहीं है।

चाय की चुस्कियों के साथ मैंने अपने आने का मंतव्य बताया तो लगा जैसे गणेश सिंह गरीब अपना एक-एक मिनट जाया नहीं जाने देंगे। उन्होंने आधे घंटे के अंदर अपने सारे पोथी-पोतड़े खोलकर मेरे सम्मुख रख दिए और लगे पूरा चकबंदी का प्रोजेक्ट समझाने। खाना खाया तो सोचा अब निजात मिलेगी और कल इंटरव्यू करके निकल जाऊँगा लेकिन यह क्या वे पेन कागज़ लेकर बैठ गए और मुझसे कई चिट्ठियाँ ड्राफ्ट करवाने लगे। लगभग 11:30 बजे रात्रि जब हम इस कार्य से फ्री हुए तो मुझे लगा कि वह व्यक्ति भी शायद इसी तरह इस आदमी को झेला होगा।

मैं भी सोच रहा था कि आखिर फंस कहाँ गया मैं ! लेकिन सुबह तरोताजा होकर जब मंडवे की रोटी का नाश्ता मिला तो दिल खुश हो गया। अब मुझे लग रहा था कि यह व्यक्ति वास्तव में इस धरा के लिए ही बना है। कहीं कोई बनावट नहीं..निर्विवाद रूप से जो घर में है वही परोसो। मैंने सच्चे दिल से दुआ की कि हे भगवन गणेश सिंह गरीब की इस मेहनत को साकार करना। ऐसे सच्चे सचेतक और मातृभूमि के इस कर्मठ यौद्धा को मेरा नमन। जो अभावों के बावजूद भी चकबंदी लागू करवाने के लिए रात-दिन एक पागलपन की हद तक जाकर काम कर रहा है। उन से ज्यादा मुझे उनकी धर्मपत्नी पर फक्र हुआ जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाए उनका सहयोग कर रही हैं। 

(नोट- आज लगभग 24 बर्ष पुरानी वह डायरी हाथ लगी जिसमें यह सब मैंने नोट किया था तो लगा यह दस्तावेज प्रकाशित किया जाना चाहिए क्योंकि विगत कांग्रेस सरकार ने चकबंदी के लिए डॉ. हरक सिंह रावत के दृष्टिकोण के साथ बड़ी पहल की भी थी जिसमें गणेश सिंह गरीब को चकबंदी का उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन लगा कि वर्तमान सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डालकर सभी जन भावनाओं की इतिश्री कर ली है। कुछ समय पूर्व जरूर यह चर्चा थी कि प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने गांव से चकबंदी का बिगुल फूंकेंगे लेकिन वह सब भी हवा-हवाई घोषणा ही निकली। अभी कुछ दिनों पूर्व ही चकबंदी सम्बन्धी नियमावली लागू की गई है, जिस से पुनः यह आसार पैदा हुए हैं कि अभी न सही आने वाली सरकार इसे जरूर अपनाएगी। प्रश्न मेरा वहीं खड़ा है कि क्या चकबंदी प्रेणता गणेश सिंह गरीब के जीते जी प्रदेश में चकबंदी कानून लागू किया जा सकेगा?)

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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