(अजय रावत ‘अजेय’)।
त्रिवेंद्र का विधायक चुनाव न लड़ने और हरक का भाजपा से बेदखल होने के बाद प्रदेश भर में सतपाल महाराज के कद के कम ही नेता भाजपा में शेष रह गए हैं। ऐसे में उनके द्वारा वीर बाला तीलू रौतेली की भूमि चौबट्टाखाल का किला फ़तह करने और भाजपा का बहुमत में आने या बहुमत के करीब आने पर महाराज किन्ही परिस्थितियों में सीएम मटेरियल भी साबित हो सकते हैं।
2017 में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे महाराज ने करीब 7 हज़ार वोटों से राजपाल बिष्ट को शिकस्त दी थी। इसमें दो राय नहीं कि महाराज को लेकर क्षेत्र में एन्टी इनकमबेंसी थी, राजपाल जो लगातार दो मर्तबा यहां से चुनाव लड़े थे, वह लगातार जमीनी तैयारियों पर भी जुटे थे। लेकिन बावजूद क्षेत्र में स्थानीयता के भावनात्मक मुद्दे के हमेशा हावी रहने के ट्रेंड को देखते हुए, कांग्रेस के स्थानीय छत्रपों की मांग थी कि उन्हें ही सतपाल से दो दो हाथ करने का अवसर दिया जाए। लेकिन कांग्रेस हाई कमान ने चौंकाते हुए पूर्व जिपं अध्यक्ष केशर नेगी को महाराज से लोहा लेने चौंदकोट की रणभूमि पर उतार दिया। इस फैसले के तुरंत बाद क्षेत्र में कांग्रेस में जो जबरदस्त उबाल आया भले ही वह बाद में सतह पर नहीं दिखाई दिया लेकिन तब तक शीशे पर बाल पड़ ही चुके थे।
राजपाल बिष्ट पौड़ी विस् में सक्रिय हो गए तो राजेश कंडारी लैंसडौन में। वहीं कवीन्द्र इष्टवाल स्वयं के लिए महासचिव पद लेकर तकरीबन नैपथ्य में चले गए। शुरुआती एक सप्ताह श्रीनगर से लौट कर सुरेंद्र सिंह रावत ही क्षेत्र में मौजूद रहे। ज़ाहिर है, केशर सिंह नेगी को पूरे संगठन का व्यापक समर्थन जमीनी तौर पर नहीं मिल पाया।
इसके विपरीत मतदान आते आते महाराज के प्रति संगठन के कुछ धड़ों में जो असंतोष था वह कम ही नही हुआ बल्कि अधिकांश कैडर वापस भी लौट आया।
अब वोटों के गणित की बात करें तो पिछली बार कवीन्द्र इष्टवाल भाजपा के बागी बन मैदान में थे, जिन्होंने 2339 मत पर कब्ज़ा किया था। इस मर्तबा आप के दिग्मोहन मजबूती से चुनाव लड़े हैं, निश्चित रूप से वह यदि मुकाबले के करीब पंहुचे या न पंहुचे, लेकिन परिणाम को प्रभावित अवश्य करेंगे। वहीँ यदि ईवीएम का मुकाबला बेहद करीब पंहुच गया तो पोस्टल बैलेट निर्णायक हो सकते हैं। 2017 में 1497 में से 1299 भाजपा के खाते में जुड़े थे, इस मर्तबा भी वही रिपीट होना तय है।
यदि इस मैदान से विजयी होकर महाराज विस् पंहुचते हैं और मैजिक फीगर (36) पार करने में भाजपा विफल होती है अथवा हंग असेम्बली गठित होती है तो हैरानी नहीं होनी चाहिए कि धामी के विकल्प की संभावनाएं बन सकती हैं, जिसमें महाराज का नाम भी शामिल हो सकता है।