तरक्की की राह के बढ़ते कदम अक्सर उन चीजों को हमेशा प्रभावित करते हैं जो हमें दिखाई नहीं देते। अब चाहे सड़क मार्ग हो, या फिर बाँध व बड़ी बड़ी इमारतें । ये सभी विकास के साथ जुड़े ऐसे मुद्दे हैं, जो दीखते हैं वह आँखों को शुकून तो देते हैं लेकिन विनाश के मुद्दे तब दिखाई देते हैं जब वे विकराल रूप लिए मानव विनाश की इहलीला लिखने को आतुर दिखाई देते हैं। जिन आँखों ने 2013 की विनाशलीला अपनी खुली आँखों से देखी वे आज भी वह सब याद करके सिहर जाते हैं। ठीक ऐसा ही मानव दखलंदाजी वन्य जीवों के लिए भी डरावनी साबित होती है। उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में बिना तय हवाई रूट के जंगलों के बेहद निकट से गुजर रहे हैलीकॉप्टर की भड़भड़ाहट ने जंगली जानवरों को के अंदर दहशत पैदा की हुई है। यह दहशत यात्रा सीजन के दौरान उस दौर में ज्यादा देखने को मिलती है जब ज्यादात्तर वन्य जीवों का ब्रीडिंग का समय होता है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सह्त्रधारा, जौलीग्रांट के हैलीपैड से केदारनाथ उड़ान भरने वाले हैलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट व तय हवाई रूट की जगह शोर्टकट रूट अपनाने के कारण राज्य पक्षी मोनाल के अस्तित्व को ज्यादा संकट पैदा हो गया है क्योंकि हिम तेंदुवा, हिम भालू के बाद सिर्फ मोनाल ही ऐसा पक्षी है जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में विचरण करता है। अक्सर हैलीकॉप्टर का सटीक मार्ग मौसम, हेलीकॉप्टर ऑपरेटर, और उड़ान नियमों पर निर्भर करता है। लेकिन सामान्यतः हैलीकॉप्टर कम ऊँचाई पर उड़ते हैं ताकि यात्री हिमालय के दृश्यों का आनंद ले सकें, जिससे रिजर्व फॉरेस्ट और वन्यजीव क्षेत्रों का दृश्य दिखता है। लेकिन इस अपने मनोरंजन व यात्रियों के आनंद के चक्कर में हैली कम्पनियां यह भूल जाती हैं कि इससे वन्य जीवों के निजी जीवन में क्या खलल पद रहा हैलीकॉप्टर का सटीक मार्ग मौसम, हेलीकॉप्टर ऑपरेटर, और उड़ान नियमों पर निर्भर करता है। सामान्यतः, हैलीकॉप्टर कम ऊँचाई पर उड़ते हैं ताकि यात्री हिमालय के दृश्यों का आनंद ले सकें, जिससे रिजर्व फॉरेस्ट और वन्यजीव क्षेत्रों का दृश्य दिखता है।
क्या है हेली रूट
देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे या सहस्त्रधारा हैलीपैड से हैलीकॉप्टर उड़ान भरता है। यह उड़ान आमतौर पर सिरसी, फाटा, या गुप्तकाशी जैसे नजदीकी हेलीपैड तक जाती है। देहरादून से सिरसी या गुप्तकाशी तक की उड़ान में लगभग 30-45 मिनट लग सकते हैं, जो मौसम और हेलीकॉप्टर के प्रकार पर निर्भर करता है। इन हेलीपैड्स से केदारनाथ धाम के लिए दूसरी हेलीकॉप्टर उड़ान ली जाती है। यह उड़ान लगभग 10-15 मिनट की होती है, क्योंकि केदारनाथ इन स्थानों से अपेक्षाकृत नजदीक है। देहरादून से सिरसी/गुप्तकाशी तक का हवाई मार्ग हिमालय की तलहटी और घाटियों से होकर गुजरता है, जिसमें मनोरम दृश्य जैसे पहाड़, नदियाँ (जैसे अलकनंदा), और घने जंगल दिखाई देते हैं। सिरसी/गुप्तकाशी से केदारनाथ तक का मार्ग ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों से होकर गुजरता है, जहाँ बर्फीले शिखर और केदारनाथ मंदिर का नजारा दिखता है। इस मार्ग में हेलीकॉप्टर हिमालय की तलहटी और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं, जिनमें कुछ रिजर्व फॉरेस्ट और वन्यजीव क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।
सहस्त्रधारा हेलीपैड से उड़ान भरने के बाद हेलीकॉप्टर देहरादून के आसपास की घाटियों और हिमालय की निचली श्रृंखलाओं से होकर सिरसी (रुद्रप्रयाग जिले) या गुप्तकाशी की ओर बढ़ता है। यह मार्ग उत्तराखंड के घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरता है। ऐसे में वन्य जीव की दैनिक दिनचर्या में कई बदलाव दिखने को मिलते हैं। कई वाइल्ड लाइफ लवर फोटोग्राफर्स अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि हैलीकॉप्टर की आवाज सुनकर पशु, पक्षी तो छोड़िये कीट पतंगों तक का ध्यान बंट जाता है और वह अपनी निश्चिंतता में दर महसूस करने लगते हैं। आइये जानते हैं कि हैलीकॉप्टर रूट में कौन कौन से वन्य क्षेत्र पड़ते हैं।
संभावित रिजर्व फॉरेस्ट/वन्यजीव क्षेत्र:
राजाजी नेशनल पार्क:
देहरादून के पास स्थित, यह राष्ट्रीय उद्यान सहस्त्रधारा के निकट है। हेलीकॉप्टर इस पार्क के कुछ हिस्सों के ऊपर से उड़ सकता है। यहाँ बाघ, तेंदुआ, हाथी हिरण, काखड सहित दर्जनों अन्य जंगली जानवरों के अलावा विभिन्न प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं।
मसूरी-देहरादून क्षेत्र के वन:
मार्ग में कुछ हिस्सों में देहरादून और टिहरी जिले के संरक्षित वन क्षेत्र दिख सकते हैं, जो सामान्यतः रिजर्व फॉरेस्ट के अंतर्गत आते हैं। यहाँ हिरण, सांभर और छोटे स्तनधारी पाए जाते हैं। अलकनंदा और मंदाकिनी नदी घाटियों के ये क्षेत्र घने जंगलों से घिरे हैं, जो वन्यजीवों जैसे भालू, हिमालयी कस्तूरी मृग, और विभिन्न पक्षियों का निवास स्थान हैं।
सिरसी/गुप्तकाशी से केदारनाथ तक:
यह छोटा मार्ग (लगभग 10-15 मिनट) उच्च हिमालयी क्षेत्रों से होकर गुजरता है, जिसमें केदारनाथ की ओर बढ़ते समय मंदाकिनी नदी घाटी और ऊँचे पहाड़ शामिल हैं। फिर भी हैलीकॉप्टर नदी मार्ग के साथ साथ वन्य मार्ग के निचले स्तर से गुजरकर आगे बढ़ते हैं। जो न सिर्फ वन्य जीवों को बल्कि बड़े बड़े ग्लेशियरों को भी नुक्सान पहुंचाते हैं अपितु उनकी आवाज से ग्लेशियर के टूटने व पिघलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
संभावित रिजर्व फॉरेस्ट/वन्यजीव क्षेत्र:
केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (Kedarnath Wildlife Sanctuary):
यह क्षेत्र केदारनाथ मंदिर के आसपास फैला हुआ है और हेलीकॉप्टर इस अभयारण्य के ऊपर से उड़ता है। यह अभयारण्य हिमालयी वन्यजीवों जैसे हिम तेंदुआ (Snow Leopard),हिमालयी कस्तूरी मृग (Himalayan Musk Deer), हिमालयी थार (Himalayan Tahr), और भालू के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ विभिन्न प्रजातियों के पक्षी जैसे हिमालयी मोनाल (Himalayan Monal) भी पाए जाते हैं।
नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व (आंशिक रूप से):
यद्यपि केदारनाथ इस रिजर्व का हिस्सा नहीं है, मार्ग का कुछ हिस्सा इसके बाहरी क्षेत्रों के पास से गुजर सकता है। यहाँ विविध वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं।
वन्यजीव और पारिस्थितिकी:
प्रमुख वन्यजीव:
हैलीकॉप्टर मार्ग में दिखने वाले क्षेत्रों में हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, हिमालयी थार, भालू, हिरण और विभिन्न पक्षी प्रजातियाँ (जैसे हिमालयी मोनाल, गिद्ध, और बाज) शामिल हैं।
हिमालयी मोनाल:
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स अजय कुकरेती, चन्द्रशेखर चौहान, हरीश भट्ट, हीरा सिंह गढवाली सहित कई अन्य ट्रैकर्स व फोटोग्राफर्स का कहना है कि इन हैलीकॉप्टर की जंगलों व हिमालयी क्षेत्रों में नीची उड़ान के कारण वन्य पशु, पक्षी, वन्य औषधि पादप व हिमशिखरों, तालों, बुग्यालों पर काफी अनुकूल प्रभाव पड़ रहा है। हाल ही में केदारनाथ क्षेत्र से लौटे वाइल्ड लाइफ फ़ोटोग्राफर अजय कुकरेती का कहना है कि यह मौसम ज्यादात्तर पशु, पक्षियों का ब्रीडिंग का समय होता है। ऐसे में हमें भी कई बार तब असहजता होती है, जब हम किसी सहज पशु या पक्षी को कैमरे की आँख से असहज होते देखते हैं। उन्होंने बताया कि इस यात्रा सीजन के दौरान मैंने सबसे अधिक बार मोनाल को ब्रीडिंग के दौरान हैलीकॉप्टर की आवाज के कारण दहशत में देखा है। मुझे लगता है कि इससे मोनाल जैसे राज्य पक्षी की प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
आप यदि ट्रैकिंग के शौक़ीन रहे हैं तो आप जानते ही होंगे कि उत्तराखंड के सीमान्त जनपद चमोली के दशोली विकास खंड में पड़ने वाले वाण गाँव से आगे बढ़ने वाले नंदा राजजात ट्रैक में ही वाण गाँव से लगभग 12 किमी. दूरी पर मोनाल धार अवस्थित है , जिसे अब ट्रैकर्स ने मोनाल ट्रैक का नाम दे दिया है। मोनाल शिखर किसी जन्नत से कम नहीं लगती क्योंकि यहाँ से बिशाल हिमालयी शिखरों का बिशालआलय दिखाई देता है। यहाँ से केदारनाथ,चौखम्बा, नंदा देवी, हाथी घोड़ा पर्वत, त्रिशूली, सहित कई गगनचुम्बी चमचमाती हिम शिखरें दिखती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अप्रैल से लेकर अगस्त माह तक मोनाल शिखर मोनालों से लकदक रहती है। यहाँ उच्च हिमालयी मोनाल बुग्यालों में अवस्थित पेड़ों में घोंसलों बनती हैं, अंडे देती हैं और बच्चे पैदा करते हैं जो अगस्त माह तक इतने बड़े हो जाते हैं कि झुण्ड के साथ सर्दियों में कम हिम वाली पहाड़ियों तक उड़ सकें। उनका मानना है कि अब इस मोनाल धार में भी मोनाल धीरे-धीरे कम हो रहे हैं, जो हिमालयी पर्यावरण के लिए ठीक नहीं हैं। वाण की महिलायें कहती हैं कि घुघूती जहाँ हमारे आम जीवन में साथ-साथ चलने वाली पक्षी है वहीँ जंगलों में खूबसूरती मोनाली हमारे लिए प्रेरणास्रोत है, लेकिन सीजन दर सीजन हर बर्ष अब मोनाल हमसे भी डर कर दूरियां बना रही है। उनके व्यवहार में आ रहे परिवर्तन से उन्हें दुःख होता है क्योंकि मोनाल को भी वह घुघूती की तरह फारेस्ट फैमिलियर मानती हैं।
मानवीय एवं पर्यावरणीय संवेदनशीलता:
केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हैं। हैलीकॉप्टर उड़ानें वन्यजीवों को कम से कम परेशान करने के लिए निर्धारित ऊँचाई और मार्गों का पालन करना जरुरी भी है क्योंकि इससे न सिर्फ पशु पक्षी व्यथित हैं अपितु प्रकृति की प्रजनन क्षमता में गिरावट दिखने को मिल रही है जिससे वन्य पादपों के उत्पादन में कमी आ रही है। मानवीय संवेदनाओं को देखा जाय तो प्रकृति से जुड़ाव पर्वतीय क्षेत्र में वास कर रही हमारी माँ बहनों का अधिक है। उनका घुघूती, घेन्दुड़ी, हिलांस, कफ्फु, मोर, मोनाली जैसे दर्जनों पक्षियों व हिरण कस्तूरा जैसे वन्य जंतुओं से बड़ा लगाव है लेकिन ये ज्यों ज्यों हम तरक्की का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, त्यों-त्यों हमारी माँ बहनों से दूरियाँ बना रहे हैं। मेरी राय में हिमालयी क्षेत्रों में बेवजह की दखल व शोर शराबा न वहां के वन्य जीवों को पसंद है न प्रकृति को । शायद शिवालिक से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में दिखने को मिल रहे पर्यावरणीय बदलाव भी इसी और इशारा कर रहे हैं। राज्य पक्षी मोनाल तो एक निमित मात्र है।
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.